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धरा पर छा जाएगा यमुनापार का 'वसुंधरा' यानी सोनम चावल

कोरांव खीरी व लेडिय़ारी में अधिक मात्रा में सोनम चावल का उत्‍पादन होता है। इसकी पैकेजिंग कराई जाएगी। साथ ही ट्रेनों से मुंबई भेजा जाएगा। यह सरकारी विभाग की कोशिश है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 19 May 2019 05:20 PM (IST)Updated: Sun, 19 May 2019 05:20 PM (IST)
धरा पर छा जाएगा यमुनापार का 'वसुंधरा' यानी सोनम चावल
धरा पर छा जाएगा यमुनापार का 'वसुंधरा' यानी सोनम चावल

प्रयागराज, ज्ञानेंद्र सिंह। जिले के यमुनापार में धान के कटोरे के नाम से ख्यात लेडिय़ारी, खीरी और कोरांव इलाके के चावल को जल्द ही नई पहचान मिलेगी। यहां उत्पादित चावल की आकर्षक पैकेजिंग होगी और इसकी बिक्री बड़े बड़े माल से लेकर मुंबई तक होगी। 

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 बिचौलियों को खासा मुनाफा होता है

यमुनापार के लेडिय़ारी, खीरी, लालतारा, कोरांव, नारीबारी, जारी, कौंधियारा, लापर व चौरासी इलाकों में सोनम (वसुंधरा) चावल की काफी मात्रा में पैदावार होती है। अन्नदाता काफी मेहनत करते हैं मगर स्थानीय मंडी और बाजार तक ही बिक्री सीमित होने के कारण उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पाता। बिचौलियों को खासा मुनाफा होता है। अब यहां के किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने की दिशा में पहल की जा रही है। इस कड़ी में सोनम प्रजाति के चावल की इलाके में ही पैकेजिंग कराई जाएगी। पांच, 10, 20 व 50 किलो के पैकेट में इसे पैक कराया जाएगा। गांवों में पैकेजिंग प्लांट लगाए जाएंगे। प्लांट किसानों के समूह के नाम खोले जाएंगे। आसानी से प्लांट स्थापित हो सकें, इसलिए ऋण भी मुहैया कराया जाएगा। 

प्लांट में पैक चावल को ट्रेन से मुंबई भेजा जाएगा : सीडीओ

मुख्य विकास अधिकारी अरविंद सिंह बताते हैं कि पैकेजिंग प्लांटों में छोटे-बड़े पैकेट में चावल पैक होगा। यमुनापार से ही होकर मुंबई की ट्रेन भी जाती हैं, इसलिए यहां के चावल को मुंबई तक आसानी से भेजा जा सकेगा, जिससे अच्छी कीमत मिलने की संभावना है। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग, कृषि विपणन, ग्राम्य विकास विभागों की टीमें मार्केट उपलब्ध कराने के लिए लगाई जाएंगी। 

45 हजार से अधिक किसानों को मिलेगा लाभ

यमुनापार में लगभग 45 हजार से ज्यादा किसान धान के उत्पादन से जुड़े हैं। पैकेजिंग प्लांट लगने से इन किसानों को काफी फायदा होगा। अभी किसान 2600-2700 रुपये प्रति कुंतल की दर सोनम चावल स्थानीय स्तर पर बेच देते हैं, जबकि यही चावल शहरों में 60-65 रुपये किलो की दर से पैकेट में बिकता है। पहले यहां बासमती, मंसूरी, दुबराज और सोनाचूर धान की भी पैदावार होती थी। सिंचाई के अभाव में अब यह प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं। हां सोनम के साथ गंगा कावेरी की पैदावार बढ़ गई है। 

कई सिंचाई परियोजनाएं हैं क्षेत्र में

इस इलाके में धान की उन्नत किस्मों के चलते ही काफी पहले सिंचाई की बड़ी परियोजनाएं स्थापित की गईं। बेलन नहर परियोजना वर्ष 1955 में तत्कालीन मुख्यमंत्री संपूर्णानंद ने स्थापित कराई थी। इसकी खासियत यह है कि अब भी नहर का पानी टोंस नदी के ऊपर बनाए गए पुल की गुफा से नदी पार करता है। यह पुल नारीबारी से कोरांव मार्ग पर गऊघाट में है। धान की अच्छी उपज के लिए टोंस नहर पंप परियोजना, कमला नहर परियोजना स्थापित की गई। महात्वाकांक्षी बाणसागर परियोजना भी इसी क्षेत्र में लाई गई है। हालांकि उसका पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। 

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