अस्थमा की चपेट में तेजी आता जा रहा बचपन
अस्थमा सामान्य तौर पर अधिक उम्र के लोगों में होता है। लेकिन आजकल खेलता -कूदता बचपन भी तेजी इसकी चपेट में आ रहा है।
प्रयागराज : सामान्य तौर पर ऐसा माना जाता है कि अस्थमा (दमा) अधिक उम्र के लोगों में ही होता है लेकिन अब ऐसा नहीं है। खेलता-कूदता बचपन भी अस्थमा की चपेट में आता जा रहा है। बच्चों में अस्थमा (पीडियाट्रिक अस्थमा) के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। जिले की बात करें तो बच्चों में अस्थमा के 25-30 नए मामले हर महीने आ रहे हैं।
बीते दिनों कुंभ के दौरान शहर में चारों तरफ निर्माण कार्य चला। शहर तो चमका लेकिन इसका असर लोगों की सेहत पर भी पड़ा। इस दौरान धूल और धुआं श्वांस नली के रास्ते सीधे फेफड़े तक पहुंचा और इसी ने लोगों को अस्थमा का रोगी बना दिया। खास यह है कि इसमें सिर्फ बड़े ही नहीं बच्चे भी शामिल हैं। बात स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल की हो या शहर के प्राइवेट अस्पतालों की ओपीडी की। अस्थमा से पीड़ित बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। लगातार खांसी है तो रहें सावधान
फेफड़ा रोग विशेषज्ञ डॉ. आशीष टंडन कहते हैं कि बच्चों में अस्थमा के लक्षण मिल रहे हैं। छह वर्ष से 10 वर्ष तक के बच्चे अस्थमा की चपेट में अधिक आ रहे हैं। यदि बच्चे को लगातार खांसी आ रही है तो सावधान रहें कहीं अस्थमा न हो। श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष गुप्ता कहते हैं कि अस्थमा पूरे विश्व में तेजी से फैल रहा है। भारत में तीन करोड़ मरीज अस्थमा की चपेट में हैं। यह ऐसी बीमारी है जिसे दवाओं के माध्यम से नियंत्रित कर सकते हैं लेकिन पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है। इसमें श्वांस नलियों में संकुचन होता है और सूजन आ जाती है। इसमें बलगम एकत्रित हो जाता है और यह निकल नहीं पाता है। श्वांस लेने में तकलीफ होती है। खांसी लगातार आती है और सीने में जकड़न हो जाती है। इसे कंट्रोलर या रिलिवर मेडिसिन के जरिए नियंत्रित किया जाता है।