नई कविता के हस्ताक्षर शिवकुटी लाल वर्मा का निधन
इलाहाबाद :
सूर्य उदित हुआ
किसी बहुत बड़े नीले दोने में रखी हुई जलेबी
कृषकाय भूखी गर्भिणी प्रतिमा
किसी मरियल कुतिया सी उसकी ओर लपकी और फिर इतनी मार खाई कि
रचना गर्भ में ही मर गई।
इन पंक्तियों के रचनाकार शिवकुटी लाल वर्मा का गुरुवार को निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। नई कविता के इस सशक्त हस्ताक्षर के जाने से हिंदी साहित्य जगत शोकाकुल हो उठा। इलाहाबाद स्थित उनके आवास पर हिंदी साहित्य प्रेमी और साहित्यकार शोक संवेदन व्यक्त करने पहुंचे। कूल्हे की हड्डी टूटने के चलते वह अस्वस्थ चल रहे थे।
इलाहाबाद के चाहचंद मुहल्ले में जन्में शिवकुटी लाल एजी ऑफिस में लंबे समय तक कार्यरत रहे। वह 1994 में सुपरवाइजर पद पर सेवानिवृत्त होने के बाद जगमल का हाता चकमिरातुल में रहते थे। शहर की साहित्यिक गोष्ठियों में उनकी उपस्थिति नए रचनाकारों को प्रेरित करती रही है।
शिवकुटी लाल के नजदीक रहे हरिश्चंद्र पांडेय ने बताया कि उन्हें अपनी तरह के नई कविता के अलग कवि थे। इनकी अलग शिल्प के लिए पहचान की जाएगी। हरिश्चंद्र पांडेय ने बताया कि वह मलयज और श्रीराम वर्मा के नजदीकी मित्रों में से थे। वह साहित्यिक संस्था परिमल के इलाहाबाद से आखिरी सदस्य थे। छंद के बंधन से मुक्त नई कविता के इस रचनाकार को बेहतरीन अनुवादक होने का भी गौरव हासिल है। उन्होंने तीन विदेशी कवियों इंडोनेशिया के डब्ल्यु एस रेनजा, सीजर पावेज व वास्को की कविताओं का हिंदी अनुवाद किया है। उनके कविता संग्रह 'पहचान श्रृंखला', 'हार नहीं मानूंगा', 'समय आने दो' और आखिरी कविता संग्रह 'सितारे साम्राज्यवादी नहीं होते' पाठकों के बीच हैं।
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इनसेट
कीलें बिल्कुल ठीक जड़ी गई हैं
एक कील मेरे सिर के बीचोंबीच जड़ी गई है
दो कीलें मेरी आंखों में
दो कीलें मेरी दोनों हथेलियों में
मेरे पीछे एक चिकना सलीब
मेरे पैरों में दो कीलें ठुकी हुई हैं
समझ में नहीं आता
कि मेरी जीभ में कील क्यों नहीं ठोंकी गई
लोकतंत्र का नसीब क्या धंसी हुई कीलों के बीच जीता है?
- शिवकुटी लाल वर्मा
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