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World Doordarshan Day: मनोरंजन व ज्ञान का दर्शन, ऐसा था दूरदर्शन Aligarh News

एक जमाना था जब टेलीविजन (टीवी) और इसके कार्यक्रमों की इतनी लोकप्रियता थी जिसकी शायद कोई चैनल आज बराबरी कर पाए। शुरुआती दौर की बात करें तो कुछ लोगों के घरों में ही टीवी हुआ करता था। मगर दूरदर्शन ने ही मनोरंजन को नए मायने दिए।

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Sat, 21 Nov 2020 01:54 PM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2020 04:59 PM (IST)
World Doordarshan Day: मनोरंजन व ज्ञान का दर्शन, ऐसा था दूरदर्शन Aligarh News
शुरुआती दौर की बात करें तो कुछ लोगों के घरों में ही टीवी हुआ करता था।

अलीगढ़ जेएनएन। आज की पीढ़ी भले ही यकीन न करें, मगर विश्व दूरदर्शन दिवस पहले का बुद्धू बक्‍सा अब भले ही स्मार्ट और स्लिम-ट्रिम हो गया हो, एक जमाना था जब टेलीविजन (टीवी) और इसके कार्यक्रमों की इतनी लोकप्रियता थी, जिसकी शायद कोई चैनल आज बराबरी कर पाए। शुरुआती दौर की बात करें तो कुछ लोगों के घरों में ही टीवी हुआ करता था। नया टीवी आने पर उत्सव जैसा माहौल होता था। पूरे मोहल्ले में इसकी चर्चा हो जाती थी। बच्चों की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। रामायाण-महाभारत या रंगोली-चित्रहार आने के समय बच्चे ही नहीं बड़े-बुजुर्ग जिस तरह टीवी से चिपक जाते थे, वह अद्भुत था। विश्व टेलीविजन दिवस पर लोगों से बातचीत की गई तो कई खट्टे-मीठे अनुभव स्मृतियों में ताजा हो गए।

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न पहले जैसे सीरियल न प्रमाणिक समाचार

जयगंज निवासी रमेश राज कहते हैं कि टीवी कब खरीदा, यह तो याद नहीं। हां, घर में एंटीना वाला अप्ट्रोन का ब्लैक एंड व्हाइट टीवी आया था। उन दिनों चित्र साफ नहीं आते थे। इसलिए बार-बार एंटीना सेट करना पड़ता था। इसी ब्लैक एंड व्हाइट टीवी पर रामायण और महाभारत सीरियल का आनन्द लिया। कई बार केवल आवाज सुनाई देती थी। अब दूरदर्शन पर पहले जैसी न तो कला फिल्में आती हैं, न अच्छे सामाजिक सीरियल और न प्रामाणिक समाचार। अतः दूरदर्शन को अब दूर से ही नमस्ते कर लिया जाता है। लाॅकडाउन में रामायण व श्रीकृष्णा जैसे सीरियल दोबारा शुरू किए तो पहले जैसा दौर याद आ गया था।

बेटी के जन्मदिन पर खरीदा था टीवी

दीनदयाल अस्पताल के पूर्व सीएमएस डाॅ. बाल किशन ने बताया कि पुरदिल नगर में हमारी ज्वाइंट फैमिली रहती थी। 1984 में बेटी का जन्म हुआ। मैं प्राइवेट प्रैक्टिस करता था। घर में काफी खुशी थी। ऐसे माहौल में मैं अलीगढ़ आया और सटर व स्टैंड वाला क्राउन टीवी खरीदा। स्टेबलाइजर व 13 तीली वाला एंटीना भी साथ ही मिला। एंटीना लगाकर टीवी चालू किया तो दूरदर्शन के दर्शन हुए। उस दिन पूरे परिवार ने मिलकर पहली बार सीरियल-‘ये जो है जिंदगी’ देखा। इसके बाद चित्रहार आया। परिवार में अपार हर्ष छाया हुआ था। अब टीवी कहां से कहां पहुंच गया।? मगर पहले जैसी बात नहीं रही। बुनियाद व हम लोग जैसे सीरियल अपने आसपास ही महसूस होते थे।

सीरियल थे सबकी पसंद

ज्ञान सरोवर निवासी सेवानिवृत्त बैंकर व कवि लव कुमार प्रणय ने बताया कि पहले इक्का-दुक्का रईसों के यहां टीवी होता था। सारा मोहल्ला टीवी पर आ रहे कार्यक्रमों को रोमांचित-सा देखता था। सीरियल बुनियाद ने भारत पाक विभाजन की त्रासदी से परिचित कराया। रामायाण व महाभारत जैसे सीरियल के जरिए पौराणिकता से रू-ब-रू हुए। 1980 के दशक में मालगुढ़ी डेज, ये जो है जिंदगी, रजनी, नुक्कड़, ही-मैन, सिग्मा, स्पीड, जंगल बुक, वाह जनाब, कच्ची धूप, तमस, मुंगेरीलाल के हसीन सपने जैसे सीरियल भी पसंद किए गए। सुरभि व भारत एक खोज जैसे ज्ञानवर्धक कार्यकर्मों की अपनी लोकप्रियता थी।

दूरदर्शन का इतिहास

भारत में पहली बार टीवी प्रसारण 15 सितंबर 1959 को शुरु हुआ। तब दूरदर्शन का नाम टेलीविजन इंडिया था। सप्ताह में तीन दिन ही आधा-आधा घंटा प्रसारण होता था। 1965 में इसका रोजाना प्रसारण शुरू हुआ। 1975 में इसे दूरदर्शन नाम मिला। यह ब्लैक एंड व्हाइट टीवी का दौर था। 1982 में रंगीन प्रसारण शुरू हुआ।


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