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अलीगढ़ हाथरस में कमजोर हुई बसपा, कई कद्दावर नेता बाहर

लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी बसपा से कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैैं। पहले ठा. जयवीर सिंह ने पार्टी छोड़ी।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 01:18 AM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 04:29 PM (IST)
अलीगढ़ हाथरस में कमजोर हुई बसपा, कई कद्दावर नेता बाहर

अलीगढ़ (जेएनएन)।  लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी बसपा से कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैैं। पहले ठा. जयवीर सिंह ने पार्टी छोड़ी। फिर, पूर्व मंत्री चौ. महेंद्र सिंह व पूर्व विधायक जमीर उल्लाह और अब मुकुल उपाध्याय का निष्कासन। हाथरस में पूर्व विधायक गेंदालाल चौधरी व नगर पालिका परिषद के चेयरमैन आशीष शर्मा भी पार्टी छोड़ चुके हैैं। रामवीर के सिवाय यहां दूसरा कोई चेहरा भी नहीं दिख रहा।

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राजनीतिक सफर
डेढ़ दशक तक अलीगढ़ में बसपा का मतलब ठा. जयवीर सिंह होते थे। दो बार विधायक रहे ठा. जयवीर सिंह चुनाव हारे तो बसपा ने एमएलसी बनाया। 2009 में पत्नी राजकुमारी चौहान को सांसद बनवाकर पहली बार पार्टी का खाता खोला। भतीजे उपेंद्र सिंह नीटू जिला पंचायत अध्यक्ष हैैं। निकाय चुनाव से पहले सपा के पूर्व विधायक जमीरउल्ला बसपा में आए तो महापौर मोहम्मद फुरकान को जीत मिली। पर, जमीर की भी पिछले महीने छुट्टी हो गई। इससे पहले, पूर्व मंत्री चौ. महेंद्र सिंह, इगलास विधानसभा प्रत्याशी रहे राजेंद्र कुमार, खैर प्रत्याशी राकेश मौर्य, शहर प्रत्याशी आरिफ  बॉबी व अतरौली प्रत्याशी इलियास चौधरी भी बर्खास्त किए जा चुके हैैं। वहीं, टिकट कटने से नाखुश तत्कालीन विधायक गेंदालाल चौधरी भी रालोद चले गए तो आशीष शर्मा भाजपा आ गए।

दो साल में सात बार बदले जिलाध्यक्ष
बसपा दो साल में सात बार अलीगढ़ जिलाध्यक्ष बदल चुकी है। 14 अक्टूबर 2016 को अरविंद आदित्य को हटाकर जितेंद्र राही को बनाया। पर, 27 अक्टूबर को ही फिर अरविंद को कमान देनी पड़ी। इसके बाद गजराज विमल, अशोक सिंह, सूरज सिंह, रघुवीर सिंह ऊषवा बने। अब तिलकराज यादव हैैं। कई जोन इंचार्ज भी अदले-बदले निकाले गए। हाथरस में भी सालभर में चार जिलाध्यक्ष बदले गए। सबका कार्यकाल दो-तीन महीने रहा। दो महीने से शहर कमेटी भी भंग है। मुख्य जोन इंचार्ज रणवीर सिंह कश्यप का कहना है कि पार्टी से केवल नेता गए हैं, कोई वोट बैंक नहीं गया। बसपा को इनसे कोई नुकसान नहीं हुआ है। नगर निगम की ऐतिहासिक जीत इसका सुबूत है।

अपने ही घर में अलग-थलग पड़े मुकुल
अपने बड़े भाई व पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय व भाभी पूर्व सांसद सीमा उपाध्याय पर बसपा से बर्खास्त कराने की साजिश रचने और जान का खतरा बताकर सनसनी मचाने वाले पूर्व एमएलसी मुकुल उपाध्याय अपने ही घर में अलग-थलग पड़ गए हैं। सियासी मैदान में उतरे उनके दोनों भाइयों ने इस राजनीतिक लड़ाई में बड़े भाई रामवीर उपाध्याय के साथ जाने का ऐलान कर दिया है। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष व तीसरे नंबर के भाई विनोद उपाध्याय ने यहां तक कहा है कि मुकुल ने भाजपा को खुश करने के लिए भाई-भाभी पर गंभीर इल्जाम लगाए हैं।
दो दिन पूर्व ही रामवीर उपाध्याय के चौथे नंबर के भाई मुकुल उपाध्याय को बसपा ने पार्टी विरोधी गतिवधियों के आरोप में बर्खास्त किया है।
 

भाई पर लगाए आरोप
मुकुल ने शुक्रवार को मीडिया के आगे इसका सारा ठींकरा बड़े भाई रामवीर व भाभी सीमा पर ही फोड़ दिया। इसने सियासी तूफान मचा दिया है। दरअसल, उपाध्याय परिवार ने बीते ढाई दशक में राजनीतिक सफलता के कई कीर्तिमान बनाए हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में परिवार की एकजुटता की मिसाल दी जाती रही है। गाजियाबाद से हाथरस लौटकर रामवीर अपने साथ मुकुल को ही लाए थे। इसके बाद इगलास से विधायक बनवाया। फिर, एमएलसी भी चुने गए। कई निगमों के मुखिया रहे। रामवीर ने कांग्रेस के कद्दावर नेता राजबब्बर को पटखनी देकर पत्नी सीमा को फतेहपुर सीकरी से सांसद बनवाया। तीसरे नंबर के भाई विनोद उपाध्याय को जिला पंचायत अध्यक्ष व पांचवें नंबर के भाई रामेश्वर को ब्लॉक प्रमुख बनवाया। बताते हैैं कि रामवीर अब बेटे को सियासत में जमाने की कोशिश में लगे हुए हैैं। अलीगढ़ लोकसभा सीट से बेटे या पत्नी को चुनाव लड़ाने की चर्चाओं ने ही इनके परिवार में खटास बढ़ाई। मुकुल का जैसे ही बसपा से निष्कासन हुआ, उन्होंने सारा ठींकरा बड़े भाई रामवीर और भाभी पर ही फोड़ दिया। आरोप लगाया कि वे सिर्फ अपने परिवार को ही आगे बढ़ाना चाहते हैैं, उन्हें नहीं। अलीगढ़ सीट से उनकी तैयारी थी, लेकिन 'अपनेÓ मोह में बहनजी के कान भर दिए। उनका पत्ता साफ करा दिया। भड़के मुकुल ने जरूरत पडऩे पर रामवीर या भाभी के खिलाफ चुनाव लडऩे तक की बात कही है। आरोपों से आहत रामवीर के समर्थन में उनके अन्य भाई भी आ गए हैं। ऐसे माहौल में मुकुल भी अपने घर में बेगाने लग रहे हैं।


परिवार बांटने में सफल नहीं होंगे मुकुल : विनोद
इस घटनाक्रम में पूरी तरह बड़े भाई रामवीर उपाध्याय के साथ हूूं। मैं ही नहीं अन्य भाई भी बड़े भैया के साथ हैं। मुकुल ने भाजपा को खुश करने के लिए बड़े भाई पर गंभीर आरोप लगाए हैं। आज मुकुल जो कुछ हैं पूर्व मंत्री के सहयोग की वजह से हैं। मंत्रीजी ने मुकुल पढ़ाया-लिखाया, एमएलए, एमएलसी तक बनाया, लेकिन उसके बदले में भाई पर ऐसे आरोप लगाना ङ्क्षनदनीय हैं। मुकुल बार-बार मना करने के बाद भी शिकारपुर से मेरे समधी अनिल कुमार के सामने चुनाव लडऩे के लिए टिकट ले आए, फिर भी मैने कुछ नहीं कहा। यही वजह रही मैं और बड़े भाई रामवीर उपाध्याय न मुकुल के लिए चुनाव प्रचार को गए और न हीं समधी के लिए। अब वह परिवार का विघटन कराना चाहते हैं। ऐसा कभी भी नहीं होगा।


बड़े भैया मेरे भगवान, मैैं उनके लिए हनुमान और लक्ष्मण : रामेश्वर
रामवीर के पांचवें नंबर के भाई व पूर्व ब्लॉक प्रमुख रामेश्वर उपाध्याय ने मरते दम तक बड़े भैया रामवीर के साथ रहने का एलान किया। कहा, मुकुल भैया ने जो कहा है वह उनका व्यक्तिगत बयान है। मेरे लिए बड़े भैया भगवान राम की तरह हैं। मैं उनका लक्ष्मण हूं और हनुमान भी। उन्होंने मुझे और मेरे परिवार को बहुत कुछ दिया है। वह कुछ भी न दें, फिर भी उन्हीं के साथ खड़े रहेंगे।


भाजपा के किसी भी नेता नहीं मिला : मुकुल
बसपा से बर्खास्त पूर्व विधायक मुकुल उपाध्याय का कहना है कि भविष्य में क्या करना है, इसके लिए समर्थकों और शुभङ्क्षचतकों से राय-मशविरा कर रहा हूं। लोगों के बीच जा रहा हूं। प्रदेशभर से समर्थक मुझे फोन कर रहे हैं। मुकुल ने सफाई दी कि अगर भाजपा में जाना होता तो पहले ही बसपा से इस्तीफा दे चुका होता। कहा, भाजपा के किसी भी नेता से नहीं मिला हूं। रही बात भाइयों के साथ न मिलने की, इस पर फिलहाल मुझे कुछ नहीं कहना है।


इगलास के लिए भी- अब समर्थकों के साथ मंथन में जुटे मुकुल
 बसपा से निष्कासन के बाद मुकुल उपाध्याय ने हाथरस और अलीगढ़ में अपनी सियासी जमीन तैयार करनी शुरू कर दी है। शनिवार को वह हाथरस और इगलास क्षेत्र में  समर्थकों के बीच गए। इसके अलावा वह हाथरस में एक कार्यक्रम में भी शामिल हुए। वहीं कारोबारी आशीष बंसल के यहाँ गमी में शामिल होकर ढाढ़स भी बंधाया। इसके बाद वह इगलास में अपने आवास पर पहुंचे और समर्थको के साथ आगे की योजना पर चरचा की। -जासं

परिवार के टकराव में बहुत कुछ गंवाया
बसपा के दिग्गज नेता रामवीर उपाध्याय ने पिछले ढाई दशक में अपने परिवार को सियासी बुलंदियों तक पहुंचाया, लेकिन सालभर पहले शुरू हुए टकराव ने इस परिवार ने बहुत कुछ गंवा दिया है। इसका असर पार्टी पर भी पड़ा है। यही वजह रही कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर 17 साल पुराना किला भी ढह गया। अब मुकुल उपाध्याय के बगावत से रामवीर कुछ और कमजोर हो गए।

1993 में रामवीर ने रखा राजनीति में कदम
मुरसान ब्लाक के गांव बामौली के रहने वाले रामवीर उपाध्याय ने जिले की सियासत में 1993 में कदम रखा था। तब वह निर्दलीय चुनाव लड़े थे। वह चुनाव तो नहीं जीत सके थे, लेकिन जिस तरह उन्होंने लोगों का दिल जीतकर मत बटोरे, उनके हौसले बुलंद हो गए। 1996 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और बड़े अंतर से जीत दर्ज की। इसके बाद बसपा सुप्रीमो मायावती के नेतृत्व में बनी सरकार में परिवहन मंत्री बने। 3 मई 1997 को हाथरस को जिले का दर्जा दिलाकर जनपद जनक की उपाधि हासिल की। वर्ष 2000 में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अपनी पत्नी सीमा उपाध्याय को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया। इसके बाद 2005 में फिर से सीमा उपाध्याय जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गईं। 2009 के लोकसभा चुनाव में सीमा उपाध्याय के फतेहपुरसीकरी से सांसद चुने जाने पर उन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद शेष समय के लिए बसपा के ही वीरेंद्र ङ्क्षसह कुशवाहा जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए। 2010 में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में उनके नेतृत्व में फिर से बसपा की रामवती बघेल अध्यक्ष चुनी गईं। 2015 में प्रदेश में सपा शासन के दौरान जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में कांटे के मुकाबले में वह अपने भाई विनोद उपाध्याय को एक वोट से जिताने में कामयाब हुए।


पारिवारिक कलह में गंवाया जिला पंचायत अध्यक्ष पद
जिला पंचायत चुनाव के बाद ही घर के मनमुटाव चारदीवारी से बाहर आने लगे। विपक्षी सदस्यों के साथ बसपा खेमे में भी सेंधमारी हुई। यही वजह रही कि विनोद उपाध्याय आधा कार्यकाल भी नहीं पूरा कर पाए और उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी। इस तरह 17  साल से चला आ रहा विजयरथ थम गया।

शिकारपुर विस चुनाव के साथ पालिका में भी हारे
विधानसभा चुनाव में मुकुल उपाध्याय शिकारपुर से बसपा के प्रत्याशी थे। वहां उनके सामने बड़े भाई विनोद उपाध्याय के समधी अनिल कुमार थे। यही वजह रही कि रामवीर उपाध्याय के साथ-साथ परिवार का और कोई सदस्य चुनाव प्रचार के लिए नहीं गया। अंतत: नतीजा हार के रूप में सामने आया। वहीं हाथरस नगर पालिका के चुनाव के दौरान रामेश्वर उपाध्याय की पत्नी कल्पना उपाध्याय का प्रत्याशी होना तय माना जा रहा था। फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि मुकुल उपाध्याय की पत्नी रितु नगर पालिका अध्यक्ष पद की प्रत्याशी बनीं। इस चुनाव में भी रामवीर परिवार को हार का सामना करना पड़ा।


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