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Politics : सरकार बनने के समय पिकनिक पर वाेटर, प्रतीक्षा में प्रत्याशी Aligarh news

सियासत में ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि जब सरकार बनाने की बारी आती है तो वोटर पिकनिक पर चले जाएं। अब चाहे सरकार प्रदेश की हो या फिर गांव की मुहर तो वोटरों को ही लगानी है। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव को लेकर अलीगढ़ में यही स्थिति है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Thu, 24 Jun 2021 09:21 AM (IST)Updated: Thu, 24 Jun 2021 09:21 AM (IST)
Politics : सरकार बनने के समय पिकनिक पर वाेटर, प्रतीक्षा में प्रत्याशी Aligarh news
जिला पंचायत सदस्‍यों के पिकनिक मनाने को लेकर ज्ञापन सौंपते सपाई।

अलीगढ़, जेएनएन ।  सियासत में ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि जब सरकार बनाने की बारी आती है तो वोटर पिकनिक पर चले जाएं। अब चाहे सरकार प्रदेश की हो या फिर गांव की, मुहर तो वोटरों को ही लगानी है। जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव को लेकर अलीगढ़ में यही स्थिति है। अध्यक्ष की कुर्सी पर दावेदारी कर रहे सपा और रालोद के प्रत्याशी वाेट मांगने क्षेत्र में निकल रहे हैं। यहां आकर पता चलता है कि वोटर ताे पिकनिक मना रहे हैं। जब वोटर ही नहीं तो सहयोग मांगे किससे? प्रत्याशियों काे चिंता वोटर के पिकनिक मनाने भर की नहीं है। फिक्र तो इस बात की है कि वोटर जिनके साथ पिकनिक मना रहे हैं, वे सत्ताधारी दल के हैं। वोटरों ने उस ओर रुख किया तो उनकी दावेदारी फीकी पड़ सकती है। इसी शंका के चलते वोटरों को वापस लाने की मांग प्रशासन से की जा रही है।

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परिणाम के इंतजार में जलाशय

जल संचय का मुख्य स्रोत जलाशय अपना आस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष का परिणाम फिलहाल शून्य है। जिन हाथों में इनकी देखरेख की जिम्मेदारी है, वही इनका सौदा कर रहे हैं। कई जलाशय इसी सौदेबाजी का शिकार हुए हैं और हो रहे हैं। दस्तावेजों में हेरफेर इस सफाई से की जाती है जलमग्न सरकारी भूमि को निजी संपत्ति घोषित कर दिया जाता है। कास्तकारों की पावर अर्टानी के जरिए बैनामे करा लिए जाते हैं। दिखावे भर को मुकदमे दर्ज होते हैं, जो कमजोर साक्ष्यों के चलते दम तोड़ देते हैं। सरकारी महकमे भी जोखिम लेना नहीं चाहते, सिर्फ खानापूरी की जा रही है। ये महकमे जब जलाशयों का आस्तित्व नहीं बचा पा रहे तो जल संचय की बात करना बेमानी है। जलाशय ही नहीं श्मशान, कब्रिस्तान की भूमि का सौदा भी हाे रहा है। सासनीगेट इलाके में ताजा मामला सामने आया है। विभागीय अधिकारी जांच की बात कह रहे हैं।

गेहूं न समेट सके गोदाम

गेहूं की सरकारी खरीद तो हर साल होती है, लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही हो गई। सरकार ने भी लक्ष्य तय नहीं किया था। उत्पादन भी बेहतर हुआ। क्रय केंद्रों पर इतना गेहूं खरीद लिया गया कि गोदाम कम पड़ गए। व्यवस्था तो बिगड़नी थी, बिगड़ी भी। अलीगढ़ में सामान्य खरीद के अंतिम दिन 15 जून तक 1.55 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हो चुकी थी। शाम को ही सरकार का फरमान आया कि जिन किसानों के टोकन जारी हो चुके हैं, उनका गेहूं 22 जून तक खरीदा जाए। इसके बाद क्रय केंद्रों पर फिर कतारें लग गईं। एफसीआइ के गोदाम पहले ही फुल हो चुके थे। फिर तीन गोदाम और लेने पड़े। इसके बाद भी किल्लत बनी रही। प्रति किसान 20 कुंतल गेहूं खरीदा गया तो किसान भड़क गए। खूब हो हल्ला हुआ। एजेंसियों ने मजबूरी जताई कि गेहूं खरीद लिया तो रखेंगे कहां?

आखिर, मिल ही गई रोशनी

शाम ढलते ही अंधेरे में डूबने वाली सड़कें रोशन होने लगी हैं। नगर निगम आैर ईईएसएल कंपनी का गतिरोध खत्म होने से यह राहत मिली है। हालांकि, कंपनी ने चार हजार एलईडी की जो खेप भेजी है, वह मांग के मुताबिक बहुत कम है। इतनी एलईडी तो मुख्य मार्गों पर ही लग जाएंगी। गली, मोहल्ले, कालोनियों में तमाम एलईडी खराब हैं। कई इलाकों में तो एक एलईडी तक नहीं लगी। यही नहीं, नगर निगम सीमा में शामिल 19 गांवों और इनसे जुड़े संपर्क मार्गों की बात करें तो 10-15 हजार एलईडी इन्हीं गांवों में खप जाएंगी। ग्रामीण मांग भी कर रहे हैं। दरअसल, जबसे ये गांवों निगम सीमा में शामिल हुए है, कोई विकास कार्य नहीं हो सका। मूलभूत सुविधाओं के लिए यहां के वाशिंदे तरस रहे हैं। बजट का अभाव बताकर निगम अधिकारी पल्ला झाड़ लेते हैं। ज्यादा नहीं तो इन गांवों में एलईडी ही लगा दी जाएं।


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