भजन से जीवन में बदलाव : मानसिक थकान को मिटा देती है ये टिप्स Aligarh News
कोरोना ने तमाम लोागें को मानसिक रुप से भी बीमार किया है। लोगों के अंदर भय और आशंकाएं बनी रहती हैं। इसलिए मन को सुकून देने के लिए तमाम लोग अलग-अलग रास्ते निकाल रहे हैं। गोसेविका कृष्णा गुप्ता ने भजन-कीर्तन की शुरुआत की है।
अलीगढ़, जेएनएन। कोरोना ने तमाम लोागें को मानसिक रुप से भी बीमार किया है। लोगों के अंदर भय और आशंकाएं बनी रहती हैं। इसलिए मन को सुकून देने के लिए तमाम लोग अलग-अलग रास्ते निकाल रहे हैं। गोसेविका कृष्णा गुप्ता ने भजन-कीर्तन की शुरुआत की है। इंटरनेट मीडिया पर उनके इस प्रयोग से अबतक 50 से अधिक महिलाएं जुड़ चुकी हैं। वह प्रतिदिन शाम को महिलाओं के साथ भजन की शुरुआत करतीं हैं। वर्चुअल महिलाएं जुड़ना शुरू हो जाती हैं।
कृष्णा गुप्ता ने बताया कि एक महीने पहले पूरे देश में कोरोना बहुत जोरों पर था, इससे लोग मानसिक दबाओं में आ गए थे। उन्हें घबराहट और बेचैनी शुरू हो गई थीं। महिलाएं भी बात-बात पर घबरा जाया करती थीं। ऐसे में विचार आया कि क्यों न उन्हें भजन के माध्यम से जोड़ा जाए। इसलिए वर्चुअल भजन की शुरुआत की। कृष्णा गुप्ता बताती है कि पहले तो 10 महिलाओं से शुरुआत हुई थी, उसके बाद देखते ही देखते महिलाएं जुड़ने लगीं। शाम पांच बजे भजन की शुरुआत हो जाती है। इससे सभी का ध्यान नकारात्मक चीजों से बाहर निकल आता है। यह श्रृंखला माला की मोतियों की तरह बढ़ती जा रही है। खास बात है कि सब बहनें स्वयं भजन तैयार करती हैं, उसमें मन के भाव भी प्रगट होकर आते हैं। भजन सुनकर इतना आनंद आता है कि मानों सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। हम सभी विश्व लोक कल्याण का जयघोष करते हैं। सिर्फ हमारी संस्कृति में विश्व कल्याण की बात कही गई है और किसी संस्कृति में ऐसा नहीं है। कार्यक्रम के शुरुआत में गणेश भगवान की आरती होती है। राधा राम, दुर्गा माता, विष्णु लक्ष्मी, सरस्वती आदि ने भी भजन सुनाकर सभी को मुग्ध कर दिया। प्रीति, इति, पदम ने भी कार्यक्रम में सहभागिता की।
जीवन में आता है बदलाव
राधा शर्मा ने कहा कि भजन-कीर्तन से जीवन में बदलाव आता है। क्योंकि हम प्रभु को समर्पित हो जाते हैं। हमारा सारा ध्यान भक्ति में लग जाता है। इससे हमारे अंदर बैठी तमाम नकारात्मक बातें खत्म हो जाती है और हम सकारात्मक बातों की ओर आगे बढ़ते हैं। राधा शर्मा ने कहा कि दुनिया के तमाम देश भारतीय संस्कृति को ग्रहण कर रहे हैं। वह मथुरा, वृंदावन, काशी, हरिद्वार में आकर भजन कीर्तन में लीन हो जाते हैं। उन्हें दीन-दुनिया से कोई मतलब नहीं होता है। इसलिए हमें अपने बच्चों को भी धर्म की ओर ले जाने की जरूरत है। भजन कीर्तन से उन्हें जोड़ें। पूजा-पाठ में शामिल करें। उन्हें भारतीय संस्कार दें, जिससे आने वाले दिनों में वह तेजस्वी बन सकें।