अभिभावकों की जेब पर पड़ रहा किताबों का भार, दस फीसद महंगी हुई किताबें
एक अप्रैल से प्राइवेट स्कूलों में भी नया सत्र शुरू हो रहा है। इसके चलते अभी से स्कूल संचालकों ने कॉपी-किताब स्टेशनरी की लिस्ट अभिभावकों को थमा दी है।
अलीगढ़ (जेएनएन)। एक अप्रैल से प्राइवेट स्कूलों में भी नया सत्र शुरू हो रहा है। इसके चलते अभी से स्कूल संचालकों ने कॉपी-किताब, स्टेशनरी की लिस्ट अभिभावकों को थमा दी है। इसी के साथ पिछली बार की अपेक्षा इस साल किताबों की कीमत में 10 फीसद का अतिरिक्त इजाफा हुआ है। किताबों की बढ़ी कीमतों का भार अभिभावकों की जेब पर वार कर रहा है। रविवार को सुबह से ही बुक्स व स्टेशनर्स की दुकानों पर अभिभावकों की भीड़ लगी रही। हालांकि कुछ स्कूल संचालकों ने किताब के बोझ को कम करने के लिए कुछ किताबें कम जरूर की हैं। मगर वो जेब ढीली होने से बचाने के लिए नाकाफी हैं।
दस फीसद रेट बढ़े
मॉरल वैल्यू व सामान्य ज्ञान की किताबों को खत्म करके इनको किसी अन्य विषय की पुस्तक में समाहित कराया गया है। चिल्ड्रेन बुक सेलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रामअवतार ने बताया कि, उनके पास लगभग हर स्कूल की कॉपी-किताबों की लिस्ट आती है। इनमें से पिछले साल के मुकाबले किताबों पर 10 फीसद रेट बढ़ा है।
एनसीईआरटी की किताबें उपलब्ध नहीं
रामअवतार बताते हैं कि, कक्षा छह, सात व आठ में एनसीईआरटी तो उपलब्ध ही नहीं है। नौवीं से 12वीं तक में भी कुछ किताबें नहीं हैं। जैसे नौवीं की अंग्रेजी व अन्य कक्षाओं की गणित-विज्ञान की किताबें नहीं उपलब्ध हैं।
सरकार तय करे किताबें
पब्लिक स्कूल डेवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल का कहना है कि सीबीएसई से गाइड लाइन नहीं है कि एनसीईआरटी ही लगाएं। सरकार किताबें तय कर दे, स्कूल वालों को कोई परेशानी नहीं। बशर्ते वो सभी के लिए एक ही हों व उनको ही लगाना अनिवार्य हो।
अभिभावकों के बोल
स्कूलों की मनमानी भी हो चुनावी मुद्दा
जमालपुर के नौशाद अली बताते हैं कि हर साल का यही रोना है, सरकार कोई ठोस पहल नहीं करती। निजी स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाना भी चुनाव का अहम मुद्दा होना चाहिए। अचलताल के प्रेमलता शर्मा का कहना है कि हर साल रेट बढ़ाए जा रहे हैं। ये कौन तय करता है? किसी का कोई नियंत्रण नहीं, लूट हो रही है। अभिभावक परेशान हो किसी को कोई मतलब नहीं। प्रीमियर नगर के सौरभ गुप्ता का कहना है कि प्रशासन व सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। मजबूत नीति बनानी चाहिए। हर साल अभिभावक ठगे जाते हैं व स्कूलों की जेब भरती है। द्वारिकापुरी की अनामिका वाष्र्णेय बताती हैं कि स्कूल विशेष की किताबें तय दुकान पर ही मिलती हैं। सब कमीशनखोरी का खेल है। अधिकारी सब जानते हैं मगर इसको रोकने की पहल कोई नहीं करता।