Trauma drama : धंधेबाजों के जाल में फंसते हैं गरीब, भरते हैं लाखों का बिल Aligarh news
सड़क या अन्य हादसों होने पर हर कोई ट्रामा सेंटर की तरफ दौड़ लगाता है लेकिन कई बार इलाज के फेर में लोग धंधेबाजों के चंगुल में फंस जाते हैं। मानकों को ताक पर रखकर संचालित ट्रामा सेंटरों में गरीब मरीजों से लाखों का बिल वसूला जाता है।
अलीगढ़, जेएनएन। सड़क या अन्य हादसों होने पर हर कोई ट्रामा सेंटर की तरफ दौड़ लगाता है, लेकिन कई बार इलाज के फेर में लोग धंधेबाजों के चंगुल में फंस जाते हैं। बिना एब्रुवल व मानकों को ताक पर रखकर संचालित किए जा रहे ट्रामा सेंटरों में गरीब मरीजों से लाखों का बिल वसूला जाता है। कई बार मरीजों के पास पैसा तक नहीं होता, तब मरीज ट्रामा में फंसा रह जाता है। गरीब मरीजों व तीमारदारों पर भी ट्रामा सेंटर संचालकों का दिल नहीं पसीजता। लेकिन सरकारी तंत्र ट्रामा सेंटर संचालकों पर मेहरबान रहता है। दैनिक जागरण ने ऐसे ट्रामा सेंटरों के खिलाफ ही ‘ट्रामा का ड्रामा’ अभियान शुरू किया है। तमाम लोग अपनी पीढ़ा व्यकत कर रहे हैं। कैसे होती है मरीजों से लूट? पेश है अभियान की छठवीं किस्त-
एडवांस में ही मोटी रकम जमा
क्वार्सी के मोहल्ला बेगमबाग सैनी कुंज निवासी सतीश कुमार का 12 वर्षीय पुत्र आयुष 10 जुलाई की शाम छत से गिरकर जख्मी हो गया। परिवार ने उसे रामघाट रोड स्थित एक ट्रामा सेंटर के रूप में संचालित मल्टी स्पेशलिटी हास्पिटल में भर्ती कराया। स्वजनों के अनुसार इलाज के लिए शुरू में 80 हजार रुपये एडवांस जमा करा लिए। इसके बाद रविवार सुबह और रुपये मांगे गए। न देने पर बच्चे को आइसीयू से बाहर कर दिया। खूब हंगामा हुआ। बाद में पुलिस और जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप से बच्चे को मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया। यह मामला रफा-दफा हो गया।
गलत इलाज से मौत
रामबाग कालोनी निवासी हरीश सेंगर (50 वर्ष) जीवनगढ़ अर्बन पीएचसी में बतौर वार्ड ब्वाय तैनात थे। करीब तीन साल पहले सासनी से अलीगढ़ लौटते वक्त सड़क हादसे में घायल हो गए। उन्हें पहले मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया, लेकिन वहां पैर का आपरेशन की जरूरत बताते हुए रेफर कर दिया। स्वजनों ने उन्हें शहर के एक कथित ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया। यहां एनीस्थेसिया की गलत डोज देने से हरीश सेंगर की मृत्यु हो गई। ये मामला भी रफा-दफा हो गया।
न स्टाफ न संसाधन
जिले में 500 से अधिक हास्पिटल हैं, जिनमें करीब 100 ट्रामा सेंटर के रूप में संचालित हैं। ट्रामा सेंटर के लिए एक्सपर्ट कमेटी का एप्रुवल जरूरी है। इलाज करने के लिए एक्सपर्ट टीम व अन्य संसाधनों की जरूरत पड़ती है। लेकिन, विभागीय साठगांठ के चलते ट्रामा सेंटरों को न तो एप्रुवल लेने की जरूरत पड़ रही है और न एक्सपर्ट स्टाफ रखने की। नतीजतन, ट्रामा सेंटर के नाम पर धंधेबाजी शुरू हो गई है। कई ट्रामा सेंटर तो आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग चला रहे हैं। स्टाफ के नाम पर अशिक्षित व अनट्रेड स्टाफ डाक्टर, स्टाफ नर्स, वार्ड ब्वाय बनकर घायलों का इलाज करते हैं। अधिकारी इन ट्रामा सेंटरों में कभी नहीं झांकते। नतीजतन, यहां मरीजों से जमकर लूट होती है। गरीब मरीजों को भी नहीं बख्शा जाता। खुद के ही मेडिकल स्टोर तक खोल लिए हैं। कथित रूप से खून की जरूरत बताई जाती है। ट्रामा सेंटरों की इस कथित लूट को रोकने के लिए कौन सा तंत्र आएगा? पता नहीं।
इनका कहना है
फर्जी तरीके से चल रहे ट्रामा सेंटरों को चिह्नित कराया जाएगा। यदि मान्यता के बिना ही ट्रामा सेंटर चल रहे हैं तो उन्हें बंद कराया जाएगा। किसी को मरीजों के जीवन से खेलने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
- डा. आनंद कुमार उपाध्याय, सीएमओ