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अलीगढ़ की शेखाझील में इसलिए कम हो रही है प्रवासी पक्षियों की संख्या, जानिए सच

जीवन की तलाश में विदेशों से हर साल लाखों पङ्क्षरदे हजारों मील का सफर तय करके भारत आते हैं। अलीगढ़ व हाथरस में शेखाझील समेत कई दूसरी झीलों पर अक्टूबर से फरवरी तक इनका कलरव सुनाई देता है।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 08:16 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 08:16 PM (IST)
अलीगढ़ की शेखाझील में इसलिए कम हो रही है प्रवासी पक्षियों की संख्या, जानिए सच
अलीगढ़ की शेखाझील में इसलिए कम हो रही है प्रवासी पक्षियों की संख्या, जानिए सच

अलीगढ़ (विनोद भारती) । जीवन की तलाश में विदेशों से हर साल लाखों पङ्क्षरदे हजारों मील का सफर तय करके भारत आते हैं। अलीगढ़ व हाथरस में शेखाझील समेत कई दूसरी झीलों पर अक्टूबर से फरवरी तक इनका कलरव सुनाई देता है। झील की रमणीयता बढ़ जाती है। मगर अब शेखाझील पर आने वाले पक्षियों की संख्या घट रही है। नवंबर के  प्रथम सप्ताह में 1000 से अधिक मेहमान पङ्क्षरदे आ जाते थे, इस साल 300-350 ही हैं। पक्षी प्रेमियों व विशेषज्ञों के अनुसार झील के वातावरण व बढ़ते स्मॉग ने अति संवेदनशील पक्षियों के कदम ठिठका दिए हैं। पक्षी विहार का दर्जा मिलने के बावजूद सरकारी तंत्र गंभीर नजर नहीं है।d

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पहले आते थे बीस हजार प्रवासी पक्षी

हर साल साइबेरियन देशों में ठंड बढ़ते ही 18 से 20 हजार पक्षी शेखाझील व आसपास की झीलों पर प्रवास के  लिए आ जाते थे। अक्टूबर से लेकर फरवरी तक झील पक्षियों से गुलजार रहती थी। इनमें डार्टर, ग्रे हीरोन, पैटेंड स्ट्रोक, ग्रेट कोरमोरेंट, पर्पल हीरोन, ब्लैक पिनटेल, कॉम्ब डक, आइबिज, ब्लैक हेडेड आइबिज, ओपन बिल स्ट्रोक, स्पॉट बिल्ड डक, ब्लैक नेक्ड स्ट्रोक, व्हाइट ब्रेस्टेड, वाटर हेन, कॉमन मूरहेन, लिटिल कोरमोरेंट, व्लाइट आइबिज, सोवलर, कॉमन टील, ग्रेलेग गूज, गार्गेनी आदि प्रजातियों के पक्षी शामिल रहते हैं।

रूठे पक्षियों को मनाएं कैसे

शेखाझील पर दो-तीन अक्टूबर को गर्गेनी के दर्शन हो जाते थे। बीते सालों में अक्टूबर के तीसरे-चौथे सप्ताह में आ रहे हैं। देसी पङ्क्षरदे भी उनके साथ यहां उछल-कूद करने पहुंचते हैं। मगर, 2016-17 में रूडीशेल डक सुर्खाब (शिव हंस) समेत कई पङ्क्षरदे दिखाई नहीं दिए। 2015 में कॉमन टील, राजहंस कहा जाने वाला ग्रेलेज गूज, बार हेडेड गूज, सुर्खांव की संख्या उंगलियों पर गिनने लायक रही। पैैटेंड स्ट्रोक, ब्लैक नेक्ड स्ट्रॉक की संख्या भी कम रही। केलिकिन तो 2001 के बाद से आई ही नहीं। बार हेडेड गूज अभी तक नहीं दिखी।

पटना झील में भी कम आए पक्षी

बताते हैं ये जलेसर (एटा) के पटना पक्षी विहार में आ चुकी है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल मात्र 4 से 5 हजार पङ्क्षरदे ही झील व उसके आसपास उतर रहे हैं। पिछले साल नवंबर के प्रथम सप्ताह में 500-600 व इस साल 400-500 पङ्क्षरदे ही दिख रहे हैं। जबकि, यह संख्या 1000 के पार होनी थी।

प्रदूषण की मार

नेचर गाइड इशहाक ने बताया कि अक्टूबर के अंतिम सप्ताह व नवंबर के शुरुआत में स्मॉग ने इंसान ही नहीं मेहमान परिंदों को भी काफी परेशान किया। पाकिस्तान के लाहौर से पटना तक स्मॉग के कारण पक्षियों का दिशा ज्ञान प्रभावित हुआ और ये भटक गए। जैसा कि पक्षी वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे थे, स्मॉग के छंटते ही परिंदे अपने निर्धारित प्रवास स्थलों पर पहुंच गए।

झील वातावरण पक्षियों को कम कर रहा आकर्षित

पक्षी प्रेमी व वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर विराट का कहना है कि शेखाझील पर इस बार जलकुंभी तो नहीं है, मगर बड़ी-बड़ी घास है। पक्षियों के लिए जगह कम है। झील का वातावरण भी कम आकर्षित कर रहा है।

डॉ. सालिम अली ने दिलाई पहचान

12 नवंबर को प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डॉ. सालिम अली का जन्मदिवस है। सरकार ने यह दिन राष्ट्रीय पक्षी दिवस घोषित किया है। एएमयू ने भी 1958 में उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी। सर्वप्रथम डॉ. सालिम अली ने ही शेखाझील के महत्व से यहां के लोगों को अवगत कराया। 1977 में वह एएमयू में एक कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। इसके बाद ही झील के संरक्षण के लिए आवाजें उठनी शुरू हुईं। दिसंबर 2015 में झील को राष्ट्रीय पक्षी विहार का दर्जा मिला। डीएफओ श्रीधर त्रिपाठी का कहना है कि शेखाझील की सफाई पहले ही चुकी है। पक्षी आने शुरू हो गए हैं। साइबेरियन देशों में ज्यादा सर्दी न पडऩे व प्रदूषण से भी पक्षी अभी कम हैं।


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