Move to Jagran APP

आस्था और विश्वास का अटूट संगम है अचल सरोवर Aligarh news

आस्था और विश्वास का अटूट संगम है अचल सरोवर। अचल ब्रज छोटी 84 कोसी परिक्रमा के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसलिए अचल की परिक्रमा लगाकर श्रद्धालु ब्रज कोसी परिक्रमा का पुण्य कमाते हैं। यह शहर का हृदय है। अचलेश्वचरधाम बाबा कुल देवता के रुप में आशीर्वाद देते हैं।

By Parul RawatEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 12:51 PM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 12:51 PM (IST)
आस्था और विश्वास का अटूट संगम है अचल सरोवर Aligarh news
अचल ब्रज छोटी 84 कोसी परिक्रमा के नाम से भी प्रसिद्ध है

राजनारायण सिंह, अलीगढ़: आस्था और विश्वास का अटूट संगम है अचल सरोवर। अचल ब्रज छोटी 84 कोसी परिक्रमा के नाम से भी प्रसिद्ध है। इसलिए अचल की परिक्रमा लगाकर श्रद्धालु ब्रज कोसी परिक्रमा का पुण्य कमाते हैं। यह शहर का हृदय है। भगवान भोले नाथ के रुप में विराजमान अचलेश्वचरधाम बाबा कुल देवता के रुप में आशीर्वाद की बारिश करते हैं। इसलिए दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा के द्वार माथा टेकने आते हैं। किवंदति है कि पांडव के छोटे भाई नकुल और सहदेव यहां सरोवर में स्नान कर चुके हैं। इसी के बाद से यह सरोवर धार्मिक स्थल के रुप में प्रसिद्ध होता चला गया। परिक्रमा मार्ग पर छोटे-छोटे 100 के करीब मंदिर हैं, जो यहां की धार्मिकता को बताते हैं। आइए, अचल सरोवर की सैर आपको भी कराते हैं।

loksabha election banner


जिले के मध्‍य में स्‍थित है सरोवर

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के एकदम मध्य में अचल सरोवर स्थित है। विशाल सरोवर में वर्तमान में बारिश का पानी भरा रहता है। अचलेश्वरधाम मंदिर समिति के सचिव अनिल बजाज बताते हैं कि सरोवर का इतिहास महाभारतकाल कालखंड से जुड़ा हुआ है। इसलिए 5500 वर्ष से अधिक पुराना यह सरोवर माना जाता है। बताया जाता है कि अज्ञातवास के समय नकुल व सहदेव यहा आए थे। उन्होंने सरोवर में स्नान किया था। इससे सरोवर की पौराणिक मान्यता बढ़ती चली गई। लोग स्नानादि के लिए आने लगे। धीरे-धीरे यहां मंदिर स्थापित होते चले गए। यहां प्राचीन दाऊजी मंदिर आस्था का प्रतीक है। सिद्धपीठ श्री गिलहराज मदिर देश का ऐसा मंदिर है, जहां हनुमानजी गिलहरी के रुप में विराजमान हैं। मंदिर ही ऐसी मान्यता है कि यहां विदेशी भी दर्शन करने आते हैं।


ब्रज छोटी कोसी परिक्रमा के रूप में प्रसिद्ध

200 वर्ष पहले मराठा सरदार माधवजी सिधिया मुगलों को खदेड़ते हुए अलीगढ़ तक आ गए थे। उनका साम्राज्य झांसी तक था। कई दिनों तक हाथी और घाेड़े की सवारी से माधवजी और उनकी सेना थककर चूर हो गई थी। अचलेश्वर मदिर पर उन्होंने अपनी सेना के साथ विश्राम का निर्णय लिया। यह स्थल उन्हें रमणीय दिखा। सरोवर के बारे में जानकारी की तो पता चला कि यह द्वापरयुग का है। मगर, उस समय उसकी स्थिति ठीक नहीं थी। इसलिए उन्होंने अचल सरोवर के चारों ओर बड़ी खाई खुदवाई थी। इसके बाद विशाल जलाशय के रूप में यह सरोवर दिखाई देने लगा। इसके बाद धीरे-धीरे सरोवर के चारो ओर मंदिर बनते चले गए और यह ब्रज छोटी कोसी परिक्रमा के रुप में प्रसिद्ध होता चला गया।

गंगा का पानी आया

आजादी से पहले सरोवर के चारो ओर घने बन थे। एक सूबेदार ने अंग्रेज अफसर को अचल सरोवर की महिमा के बारे में बताया। वह अंग्रेज अफसर काफी प्रभावित हुआ। उसने हरदुआगज नहर से अचल सरोवर तक नहर की खोदाई कराई। हरदुआगज नहर से गगा का पानी सीधे अचल सरोवर में आने लगा। इसके बाद इसकी महिमा और बढ़ गई। सरोवर पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ने लगा। गंगा स्नान पर्व पर यहां श्रद्धालु स्नान के लिए आने आने लगे। सावन में अचल पर मेले लगने लगे। मुंडन आदि कार्यक्रम भी होने लगे। पवित्रता को देखकर गंगा मंदिर की भी स्थापना की गई।

सरयू पार लीला

अचल सरोवर की सरयू पार लीला पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। यह सरोवर रामलीला मैदान के एकदम निकट है। आज से 40 वर्ष पहले गंगा का पानी से लबालब होने से सरयू पार लीला का मंचन यहां होने लगा। वनवास के समय भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण तीनों नौका से सरयू पार करते हैं। यह सरयू पार लीला के नाम से प्रसिद्ध है। जिसे देखने के लिए दर्शकों का सैलाब उमड़ पड़ता है। लीला के समय सरयू को पूरी भव्यता से सजाया जाता है।

तीज त्योहार पर लगता है मेला

शहर की परंपराएं अचल सरोवर से ही शुरू होती हैं। आज भी तीज-त्योहार पर अचल सरोवर पर मेला लगता है। इनमें रक्षाबधन, हरियाली तीज आदि शामिल हैं। मात्र दो किमी की दूरी में बसता नया शहर उन परंपराओं से आज भी अनभिज्ञ है, मगर अचल सरोवर पर पहुंचकर पुरानी परंपराएं बरबस याद आ जाती हैं। परिक्रमा, भजन-कीर्तन आदि देखकर बस यही लगता है कि शहर का दिल यहीं बसता है। अचल सरोवर की महाआरती देख मन आनंदित हो जाता है।

देव दीपावली उत्सव

अचल सरोवर की देव दीपावली उत्सव की भव्यता देखते ही बनती है। देव दीपावली पर पूरे सरोवर को दीपों से सजाया जाता है। चारों ओर एक लाख से अधिक दीपक रखे जाते हैं। परिक्रमा मार्ग पर स्थित मंदिरों को भी दीपों से सजाया जाता है। सरोवर का प्रत्येक घाट दीपों से जगमग हो उठता है। अचल की गुमटी रंग-बिरंगी रोशनी से नहा उठता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.