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राज्यपाल का संवैधानिक तौर पर निर्णय था गलत, कश्मीर में बहुमत साबित करने को देना था मौका

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर चुके हैं। एएमयू में कश्मीर के शिक्षक इस निर्णय को गलत बता रहे हैं।

By Edited By: Published: Tue, 27 Nov 2018 03:00 PM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 03:00 PM (IST)
राज्यपाल का संवैधानिक तौर पर निर्णय था गलत, कश्मीर में बहुमत साबित करने को देना था मौका
राज्यपाल का संवैधानिक तौर पर निर्णय था गलत, कश्मीर में बहुमत साबित करने को देना था मौका

अलीगढ़ (जेएनएन)। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर चुके हैं। यह मामला इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। तमाम दलों के नेता इसे राजनीतिक फायदे का कदम बता रहे हैं, तो कई ने इसे ऐतिहासिक भी। दैनिक जागरण की एकेडमिक मीटिंग में भी 'जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करना कितना सही?' पर चर्चा हुई। वक्ता कश्मीर निवासी एएमयू के राजनीतिक विज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर मोहम्मद आमिन मीर ने कहा कि राज्यपाल का कदम संवैधानिक तौर पर गलत है। उन्हें सरकार को बहुमत साबित करने का मौका देना चाहिए था।

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अतिथि विचार
जम्मू कश्मीर में  विधानसभा की 87 सीट हैं। सरकार बनाने के लिए 44 सीटें अनिवार्य हैं। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव पीडीपी को सबसे अधिक 28 सीट मिली थी। भाजपा ने 25 सीट जीतीं। नेशनल कांग्रेस को 15 व कांग्रेस को 12 सीट मिलीं। बाकी सात अन्य के खाते में गईं। किसी भी पार्टी की सरकार नहीं बनीं तो पीडीपी व भाजपा ने गठबंधन कर सरकार बनाई। दो अलग-अलग विचार धाराओं की पार्टियों के एक साथ आने से यह ऐतिहासिक फैसला माना जा रहा था। राज्य के लोग भी उत्साहित थे। तीन साल से ज्यादा समय तक सरकार चली।

21 नवंबर को भंग
21 नवंबर को राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने  विधानसभा भंग कर दी। उनका तर्क था कि कुछ दिनों से विधायकों की खरीद-फरोख्त के मामले चर्चा में आ रहे हैं। उन्होंने संवैधानिक प्रावधानों के तहत विधानसभा को भंग किया है। इसके बाद पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने दावा किया कि विधानसभा भंग होने से पहले उन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश किया था, लेकिन गौर नहीं किया गया। वे कांग्रेस व नेशनल कांफ्रेंस के साथ सरकार बनाने की स्थिति में थीं। राज्यपाल ने इसका खंडन करते हुए कहा कि उन्हें किसी पार्टी की तरफ से प्रस्ताव नहीं मिला। जिस तरह फैक्स के माध्यम से प्रस्ताव भेजने का दावा किया जा रहा है, उस दिन उनके कार्यालय का अवकाश था।

देना चाहिए था मौका
आमिन मीर ने कहा कि 2016 में अरुणाचल प्रदेश में भी ऐसी स्थिति बनी थी। तब सबसे अधिक सीटों वाली कांग्रेस ने कोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने पहले उन्हें न्योता देने का आदेश सुनाया। राज्यपाल को प्रदेश में कानून व्यवस्था पर नजर रखने की सलाह दी। मेरे विचार से राज्यपाल को पीडीपी को सरकार बनाने का मौका दिया जाना चाहिए। अगर वे नहीं बना पातीं तो विधानसभा भंग कर सकते थे।

सवाल-जवाब भी
लोकसभा चुनाव पर इसका कितना फर्क पड़ेगा ?

जम्मू-कश्मीर में कुल चार लोकसभा सीटें हैं। इनमें दो पर भाजपा व दो पर पीडीपी का कब्जा है। दोनों ही पार्टियों को अलग-अलग क्षेत्रों में जोर रहता है। आगे नेशनल कांफ्रेंस को थोड़ा फायदा हो सकता है। भाजपा से गठबंधन के बाद पीडीपी से लोगों का रुझान कम हुआ है।

स्थानीय चुनाव में बहिष्कार की अपील के बाद भी अच्छी पोलिंग क्यों हुई?
हर व्यक्ति चाहता है कि उसे ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं मिलें। स्थानीय चुनावों में स्थानीय लोग चुने जाते हैं। ऐसे में लोग इनसे आसानी से मिलकर अपनी समस्या का निस्तारण करा सकते हैं, विधायकों से मुलाकात तक नहीं हो पाती है। स्थानीय प्रतिनिधि चुनने के लिए लोगों ने ज्यादा मतदान किया।

खरीद फरोख्त का खेल चल रहा है तो राज्यपाल का विधानसभा भंग करने का फैसला क्या सही नहीं था?
यह सही है कि खरीद फरोख्त लोकतंत्र के खिलाफ है, लेकिन इसके मजबूत तथ्य नहीं हैं। मौखिक तौर पर लोग आरोप लगाते रहते हैैं।


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