रिहाई की आस : अपराध तो दूर, ये तो चल भी नहीं सकता हुजूर
हत्या के अपराध में सजायाफ्ता 77 साल के कुंवरपाल सिंह का शरीर अब उनका साथ छोड़ चुका है। वह आए दिन जेल के अंदर अस्पताल में ही रहते हैं।
अलीगढ़ (सुरजीत पुंढीर)। हत्या के अपराध में सजायाफ्ता 77 साल के कुंवरपाल सिंह का शरीर अब उनका साथ छोड़ चुका है। वह आए दिन जेल के अंदर अस्पताल में ही रहते हैं। चलना-फिरना तो दूर सही ढंग से खड़े भी नहीं हो पाते हैं। जेल की चार दीवारी के अंदर ऐसे ही दर्जनों लोग हैं, जिनके अपराध करना तो दूर, उनका उठना-बैठना भी मुश्किल है।
10 साल सजा कर चुके हैं पार
जिला प्रशासन के पास पिछले दो महीने में एक दर्जन के करीब दया याचिका के आवेदन आए हैं। सभी आरोपित हत्या के मामले में सजायाफ्ता हैं। 12 में से आठ अपराधी तो ऐसे भी हैं, जो अपनी सजा का 10 साल से ज्यादा समय जेल में काट चुके हैं। डीएम ने इन सभी आवेदनों को पुलिस की जांच के लिए भेज दिया है।
यह रहती है प्रक्रिया
अगर कोई भी कैदी आधे से ज्यादा सजा काट चुका है और उसकी उम्र 60 साल पार कर चुकी है तो वह रिहाई की श्रेणी में आ सकता है। इसके लिए उसे जिला मजिस्ट्रेट के यहां आवेदन करना होता है। इसके बाद प्रशासन पुलिस से जांच कराता है। फिर जिला प्रोबेशन विभाग पांच बिंदुओं पर जांच कराता है। डीएम स्तर पर भी पांच बिंदुओं की पड़ताल की जाती है। यहां से इसे महानिरीक्षक कारागार के यहां भेज दी जाती है। वहां एक प्रदेश स्तरीय बैठक होती है। उसमें मुहर लगने के बाद आवेदन राज्यपाल के यहां भेजा जाता है।
इनकी दया याचिका पड़ी है लंबित
-भगवान दास(57) निवासी पैराई थाना गभाना
-मो. सफी (69) निवासी सराय सुल्तानी थाना सिविल सासनी गेट
-राजू (63) निवासी गहराना थाना गांधी पार्क
-कुंवर (70) निवासी रामपुर मनीपुर अकराबाद
-कुुंवरपाल (77) निवासी रसूलपुर थाना लोधा
-रनवीर सिंह (72) निवासी ल्हौसरा थाना लोधा
-इंद्रजीत सिंह (75) बरौली थाना छर्रा
-जसवंत (61) निवासी परौरा थाना बरला
-सामंत (70) निवासी सिंधौली थाना दादौं
-जयपाल (76) निवासी मढौला थाना गभाना
-चंदन सिंह (76) निवासी कासिमपुर थाना दादौं
-रघुराज (63)निवासी शिवपुरी थाना इगलास
रिहाई से पहले इन पांच बिंदुओं पर होती है जांच
-क्या संबंधित अपराध समाज को व्यापक रूप से प्रभावित किए बिना व्यक्ति विशेष तक सीमित अपराध की श्रेणी में आता है?
-क्या बंदी द्वारा भविष्य में अपराध करने का कोई अवसर है?
-क्या सिद्धदोष बंदी दोबारा अपराध करने में अशक्त हो गया है?
-क्या बंदी को जेल में और आगे निरुद्ध रखने का कोई सार्थक प्रायोजन है?
-बंदी के परिवार की सामाजिक, आर्थिक दशा बंदी की रिहाई को काफी है।