अलीगढ़ में सुशीला के हौसले ने ऐसे ' उतारा ' शराब का नशा, दंग रह गए सब
सुहाग ही उजड़ जाए तो किसी महिला की जिंदगी में क्या रह जाता है? बेहिसाब शराब पीने से पहले पति, फिर देवर की मौत से सुशीला भी तबाह हो गईं।
अलीगढ़ (रिंकू शर्मा)। सुहाग ही उजड़ जाए तो किसी महिला की जिंदगी में क्या रह जाता है? बेहिसाब शराब पीने से पहले पति, फिर देवर की मौत से सुशीला भी तबाह हो गईं। पढ़ी-लिखी थीं नहीं, परिवार की जिम्मेदारी भी आन पड़ी। चौखट से बाहर कदम रखे तो पूरा मोहल्ला ही नशे में मदहोश दिखा। आए दिनमौत की खबरों ने उन्हें चुप न रहने दिया और 37 लोगों की मौत के जिम्मेदार शराब ठेके के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। बर्बाद हो चुके और तबाही की ओर बढ़ते घरों की महिलाओं की उम्मीद का दीया रोशन हो उठा। आखिरकार 20 साल पुराना ठेके का नशा 'उतरा ' और तरक्की की राहें भी खुल गईं।
मिसाल बनीं सुशीला
नगर निगम में सफाई कर्मचारी राकेश वाल्मीकि की वर्ष 2009 व देवर संजय की वर्ष 2013 में शराब पीने मौत के बाद परिवार आर्थिक तंगी से घिर गया। राकेश की पत्नी सुशीला पर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई। सुशीला ने ठान लिया कि पति, देवर व अन्य को मौत बांटने वाले दोदपुर के ठेके को चलने नहीं देंगी। महिलाओं के साथ सड़क पर उतरीं। ठेके पर विरोध किया। ताले जड़े। जाम लगाया। पुलिस की लाठियां भी खाईं, पर हिम्मत न हारी। आखिरकार ठेकेदार दुकान बंद करके भाग गया। सुशीला की प्रेरणा से क्वार्सी व सासनीगेट क्षेत्र में भी महिलाओं ने शराब ठेके बंद करा दिए। पिछले दिनों एक ठेका पुलिस ने फिर खुलवा दिया। सुशीला कहती हैैं, कुछ भी हो जाए, शराब ठेका नहीं चलने देंगे।
बर्बाद किए कई घर
करीब 20 साल पुराने दोदपुर ठेके के कारण पीने वालों की संख्या दिनों-दिन बढ़ी। तीन साल में दोदपुर, कोठी, अमीर निशां आदि मुहल्लों के 37 लोगों की मौत भी हो गई। न जाने कितने घर तबाह हो गए। पीने वालों में बुजुर्गों के साथ युवा व स्कूल जाने वाले बच्चे तक थे। सुबह से ही यहां लाइन लग जाती। मेहनत मजदूरी करने वाले जब दिनभर की गाढ़ी कमाई शराब में लुटाने लगे तो बच्चों के स्कूल छूटने लगे। पर, अब माहौल बदल रहा है।