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हाथरस में वेश बदलकर काका के घर आए थे सुभाष चंद्र बोस

नेताजी सुभाषचंद्र बोस स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों से छिपते-छिपाते हाथरस भी आए थे। वह यहां हास्य सम्राट काका हाथरसी के घर कुछ देर रुके थे।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Wed, 23 Jan 2019 05:24 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 05:45 PM (IST)
हाथरस में वेश बदलकर काका के घर आए थे सुभाष चंद्र बोस
हाथरस में वेश बदलकर काका के घर आए थे सुभाष चंद्र बोस

हाथरस (अंकुर पंडित)। नेताजी सुभाषचंद्र बोस स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों से छिपते-छिपाते हाथरस भी आए थे। वह यहां हास्य सम्राट काका हाथरसी के घर कुछ देर रुके थे। नेताजी के हाथरस आने का संस्मरण काका हाथरसी के बेटे डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग को कई दशक बीतने के बाद भी अच्छी तरह से याद है। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी पुस्तक 'ब्रज संस्कृति और लोकसंगीत' में भी किया है।

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काका के साथ जमुना बाग तक टहलने गए थे नेताजी

86 वर्षीय डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग के मुताबिक यह बात वर्ष 1940 की है। तब उनकी उम्र महज आठ वर्ष थी। उनके बाल्यकाल में ही भारत की आजादी का बिगुल बजने लगा था। नेताजी सुभाषचंद्र बोस छद्मवेश में कुछ घंटों के लिए काका से मिलने हाथरस आए थे। पहले तो काका उन्हें पहचान नहीं सके। कुछ ही देर में वह समझ गए कि उनके घर स्वतंत्रता के महायुद्ध का वीर नायक आया है। इसके बाद दोनों जमुना बाग तक पैदल टहलने गए और आंदोलन को लेकर चर्चा की।

नेताजी ने सिर पर हाथ फेर कर दिया था आर्शीवाद

23 जनवरी 1897 को जन्मे नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ बिताए उन लम्हों को याद करते हुए डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग कहते हैं, 'उनका मेरे सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद देना मैं कभी भूल नहीं सकता। उन्होंने मुझे जीवन में महान बनने की सीख दी थी।' यहां से सुभाष चंद्र बोस देहरादून के लिए रवाना हो गए थे। देहरादून जाकर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की थी। देश के लिए उनके प्रेम और समर्पण से मिली प्रेरणा से मैं भी आजादी के आंदोलन में कूद पड़ा। स्वदेशी आंदोलन को बल देने के लिए मैंने तकली और चरखे से सूत काता तथा खादी को अपनाया।

सरकारी भवन का तोड़ा था शीशा

डॉ.गर्ग अपनी किशोरावस्था के दिन याद करते हुए बताते हैं कि 15 साल की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्थर मारकर सरकारी भवन के शीशे तोडऩे के आरोप में उन्हें एक दिन की जेल हुई थी। डॉ. गर्ग का कहना है कि देश के विभाजन के दर्दनाक दृश्य उन्हें कई साल तक पीड़ा देते रहे।

राष्ट्रीय शख्सियत : संगीत, साहित्य, कला और काव्य के क्षेत्र में डॉ. लक्ष्मीनारायण गर्ग राष्ट्रीय महत्व की शख्सियत हैं। उनके पिता हास्य कवि काका हाथरसी पद्मश्री से सम्मानित थे। डॉ.गर्ग का जन्म 29 अक्टूबर 1932 को हुआ था। डॉ. गर्ग कई विधाओं में विशारद हैं। वे टैगोर सम्मान से नवाजे जा चुके हैं। ङ्क्षहदी में पीएचडी हैं, सितार और सुरबहार वाद्य यंत्र बजाते हैं, पंडित रविशंकर के शिष्य रहे हैं।


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