Move to Jagran APP

आज से गूंजेंगे टेसू-झांझी के गीत

आज के बदलते परिवेश व डिजिटल युग में टेसू व झांझी इतिहास की एक धुंधली कहानी बनकर रह गए हैं। हालांकि विलुप्त हो रही इस प्राचीन परंपरा को देहात क्षेत्र के बच्चे जीवंत बनाए हुए हैं। विजयादशमी को रावण के दहन बाद से घर-घर टेसू-झांझी का पूजन शुरू हो गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Oct 2021 12:30 AM (IST)Updated: Sat, 16 Oct 2021 12:30 AM (IST)
आज से गूंजेंगे टेसू-झांझी के गीत

विवेक शर्मा, अलीगढ़ : आज के बदलते परिवेश व डिजिटल युग में टेसू व झांझी इतिहास की एक धुंधली कहानी बनकर रह गए हैं। हालांकि विलुप्त हो रही इस प्राचीन परंपरा को देहात क्षेत्र के बच्चे जीवंत बनाए हुए हैं। विजयादशमी को रावण के दहन बाद से घर-घर टेसू-झांझी का पूजन शुरू हो गया। शाम होते ही बच्चों की टोलियां टेसू और झांझी को लेकर गली मोहल्लों में मेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा., टेसूरा, टेसूरा घंटा बजैयो, नौ नगरी दस गांव बसइयो., टेसू के रे टेसू के चार पंगोली के उड़ गए तीतर उड़ गए मोर.जैसे तुकबंदी के गानों की धूम रही। छोटे-छोटे बच्चे घर-घर दस्तक देकर गीत गाते हुए बदले में अनाज व पैसा मांगते हैं।

loksabha election banner

ऐसा होता है टेसू

तीन लकड़ियों को जोड़कर एक ढांचा बनाया जाता है, जो देखने में मनुष्य की आकृति का खिलौना होता है, जिसमें बीच में दीपक, मोमबत्ती रखने का स्थान होता है। कहीं-कहीं टेसू रामलीला में रावण के पुतला दहन से जलने वाली लकड़ी से बनाया जाता है। केवल टेसू का सिर बनाया जाता है उस पर गेरू पीली मिट्टी, चूना और काजल से रंगाई, पुताई की जाती है।

झांझी की आकृति : झांझी मिट्टी की रंग-बिरंगी एक छोटी मटकीनुमा होती है, जिसमें स्थान पर छेद करके अनेक डिजाइन में बनाए जाते हैं। इसमें थोड़ा रेत या राख भर कर दीपक रखा जाता है। रात के अंधेरे में छिद्रों में छन-छनकर बाहर आता प्रकाश उड़ने वाली राख के साथ बेहद मनभावन लगता है। इसे झांझी का हंसना कहा जाता है।

टेसू की मान्यता व कहानी

टेसू की उत्पत्ति और इसकी मान्यता के लिए विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। मान्यता है कि टेसू का आरंभ महाभारत काल से हुआ था। पांडवों की माता कुंती ने सूर्य उपासना व तपस्या के दौरान वरदान से कुंवारी अवस्था में ही दो पुत्र वबू्रवाहन व दानवीर कर्ण के रूप में जन्म दिया था। वबू्रवाहन को कुंती लोक लाज के भय से जंगल में छोड़ आई थी। वह बड़ा ही विलक्षण बालक था। सामान्य बालक की अपेक्षा दुगनी रफ्तार से बढ़ने लगा कुछ सालों में ही उसने उपद्रव करना शुरू कर दिया। पांडव उससे बहुत परेशान रहने लगे तो सुभद्रा ने भगवान कृष्ण से कहा कि वे उन्हें वबू्रवाहन के आतंक से बचाएं। जिस पर भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन काट दी। परंतु वबू्रवाहन अमृतपान कर लेने से मरा नहीं। तब कृष्ण ने उसके सिर को छोंकरे के पेड़ पर रख दिया। फिर भी वह शांत न हुआ तो श्रीकृष्ण ने अपनी माया से झांझी को उत्पन्न कर टेसू से उसका विवाह रचाया। इन्हें खाटू-श्याम के नाम से भी पूजा जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.