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अलीगढ़ के बाजार में छाया जापानी बटरफ्लाई बुर्का

ईद की खरीदारी से बाजार चमकने लगे हैं। इन दिनों मेडिकल रोड स्थित एक शोरूम जापान के बटरफ्लाई बुर्का (फराशा अबाया) के एक्सक्लूसिव कलेक्शन से चर्चाओं में है।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Mon, 27 May 2019 10:21 AM (IST)Updated: Tue, 28 May 2019 09:49 AM (IST)
अलीगढ़ के बाजार में छाया जापानी बटरफ्लाई बुर्का
अलीगढ़ के बाजार में छाया जापानी बटरफ्लाई बुर्का

अलीगढ़ (जेएनएन)।  ईद की खरीदारी से बाजार चमकने लगे हैं। इन दिनों मेडिकल रोड स्थित एक शोरूम  जापान के बटरफ्लाई बुर्का (फराशा अबाया) के एक्सक्लूसिव कलेक्शन से चर्चाओं में है। अमीरनिशा बाजार में मौजूद प्रिंटेड व लाइट कलर के पैटर्न वाले बुर्के भी पसंद किए जा रहे हैं। इनमें दुबई के काले रंग के स्टोन व गोल्डन एंब्रॉयड्री बुर्के  हैं। ईद-उल-फितर के लिए मुस्लिम परिवार खरीदारी में जुट गए हैं। लेडीज सूट के साथ तुर्की, ईरानी व अरबिया लुक में बुर्का की खास रेंज बाजार में उपलब्ध हें। कारोबारी आसिफ जफर का कहना है कि वह ईद पर नए बुर्कों का कलेक्शन लाए हैं। उनके यहां 1500 से 6000 रुपये तक के बुर्के हैं। पंजाबी कट में लॉग कुर्ता भी खास हैं। कारोबारी आसिफ का कहना है कि यह हर रेंज में उपलब्ध है।

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दो बहनों ने रखा जिंदगी का पहला रोजा

जिंदगी का पहला रोजा रखने की खुशी खास होती है। रोजा इतिहास भी बन जाता है। कुछ ऐसी ही खुशी का अनुभव तुर्कमान गेट मिर्जा वाली वाली मस्जिद के पास रहने वाले समी अहमद की बेटी अरीबा शकील व उनके भाई शकील अहमद की बेटी वारिश खानम कर रही हैं, जिन्होंने दस साल की उम्र में शनिवार को जिंदगी का पहला रोजा रखा। दोनों के मन में रोजा रखने की इ'छा जागृत हुई थी। परिजनों ने भी उन्हें सहारा दिया। दोनों ने सुबह परिजनों के साथ सहरी की और फिर फजर की नमाज पढ़ी। दिन परिजनों के साथ बातचीत में गुजारा। कुरान शरीफ व नमाज अदा की। शाम को सभी के साथ इफ्तार किया। ब'िचयों की दादी बिलकिस बेगम ने सभी को दुआ दी। परिजनों के दोनों को गिफ्ट भी दिए।

तीसरे अशरे की इबादत सबसे खास : डॉ. अफजल

इस्लामिक स्टडीज डिपार्टमेंट एएमयू के डॉ. अफजल सिद्दीकी का कहना है कि रमजान उल मुबारक का तीसरा अशरा शुरू हो चुका है। ये जहन्नुम से निजात का अशरा कहलाता है। रमजान में की जाने वाली इबादतों में से यह खास इबादत है जो इस अशरे में की जाती है और 'ऐहतिकाफÓ कहलाती है। रमजान महीने के तीसरे अशरे में कुछ मुसलमान ऐहतिकाफ में बैठते हैं। इसके लिए मुसलमान पुरुष रमजान के आखिर के 10 दिनों तक मस्जिद में बैठकर इबादत करते हैं और खुद को परिवार व दुनिया के गैर जरूरी कामों से अलग कर लेते हैं। ये फर्ज कीफाया है। अगर मुहल्ले का कोई एक शख्स भी बैठ जाता है तो सबकी तरफ  से अदा हो जाता है। अगर किसी मुहल्ले कीमस्जिद में वहां का कोई आदमी भी ऐहतिकाफ  में नहीं बैठा तो वहां सारे लोग गुनहगार होंगे। मगरिब की नमाज केबाद ऐहतिकाफ की नीयत के साथ मस्जिद में बैठा जाता है और ईद का चांद देखकर निकलना होता है। महिलाएं घर के किसी कमरे में पर्दा लगाकर ऐहतिकाफ में बैठती हैं। इस दौरान लोग एक ही जगह पर खाते-पीते, उठते-बैठते व सोते जागते हैं। नमाज-कुरान पढ़कर अल्लाह की इबादत करते हैं। बाथरूम या वाशरूम जाने की उन्हें इजाजत होती है। यूं तो रमजान का पूरा महीना ही पवित्र होता है, लेकिन आखिर के 10 दिन सबसे खास होते हैं। हदीस में बताया गया है कि रमजान में पैगंबर मोहम्मद भी ऐहतिकाफ  में बैठा करते थे।

ऐहतिकाफ  किसे कहते हैं?

ऐहतिकाफ उसे कहते है, जब आदमी खुदा के घर यानी मस्जिद में ठहरे रहने को इबादत समझकर उसकी नीयत से ऐसी मस्जिद में जिसमें जमात से नमाज होती है ठहरा रहे। रमजान में 21वें शब पे ईद के चांद देखे जाने तक ऐहतिकाफ  होता है।

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