lockdown4: सपनों के शहर से लौटे, अब गांव में बहा रहे पसीनाAligarh News
खेत में फावड़ा चलाते या बुग्गी लेकर खलिहान की ओर जाते युवा दिखे। मैं आश्चर्य से भर गया और मन में तमाम सवाल भी कौंध उठे। ये युवा तो जाने कब का गांव से नाता तोड़ गए थे।
अलीगढ़ [रिंकू शर्मा]: रविवार को घड़ी ने सुबह के 10:30 बजाए थे, पर लग रहा था कि सूरज सातवें घोड़े पर सवार है। गर्म हवाएं दुपहरी का एहसास करा रही थीं। मैं देश के सबसे लंबे मार्ग जीटी रोड पर था। गभाना क्षेत्र में दो किमी दूर गांव नगला राजू की ओर बढ़ा तो लगा कि गांव फिर लौट रहे हैं। रास्ते में सन्नाटा जरूर था, पर गांव में चहलकदमी थी। खेतों में किसान फावड़े लेकर पसीना बहा रहे थे। बुग्गी लेकर खेत की ओर किसान का बढऩा भी सुखद अनुभव था। धूप से निखरते हुए थोड़ा आगे बढ़ा तो नई तस्वीर आंखों में तैर गई।
उठे कई सवाल
खेत में फावड़ा चलाते या बुग्गी लेकर खलिहान की ओर जाते युवा दिखे। मैं आश्चर्य से भर गया और मन में तमाम सवाल भी कौंध उठे। ये युवा तो जाने कब का गांव से नाता तोड़ गए थे। उम्मीदों की फसल लहलहाने के लिए ये बड़े शहरों की ओर रूख कर गए थे। बड़ी इमारतें, कल-कारखानों में मशीनों की गूंज और शहरों की मोटर गाडी के शोरगुल में गांवों की मेड़ और पगडंडी न जाने कब गुम हो गए थे ? इन युवाओं को खेतों में काम करते देखने के लिए तो बुजुर्गों की आंखे तरस सी गईं थीं। आखिर ये कैसे खेतों की ओर लौट पड़े।
कोरोना से आ गए गांव में
सवालों के बवंडर से मैं निकल नहीं सका। गांव के बुजुर्ग राधेश्याम से सवाल पूछ पड़ा। ताऊ जै लल्ला खेतन में कैसे काम कर रहे हतै। ताऊ पहले तो संकुचाए फिर आंखों की झुरियों के झरोखे से झांकते हुए निहारने लगे। उन्हें लगा कि कहीं कोरोना वायरस के बारे में तो नहीं पूछ रहे हैं। दुबारा सवाल फिर वही किया तो ताऊ बोल पड़े। अरे, जै बालक शहरन में सपना संजोए गयै हतै, मगर जा करोना के चक्कर मैं गांव भग आए। सच, लल्ला 30 साल बाद जै हाल देखन को मिलो है। अरे, बहुत समझाई हति पर जै ना माने। का रोटी-पानी में यहां कहूं घाटों नाय है। अबहो तो काम कर रहे हैं। इतनी बातों के बाद मुझे समझने में देरी नहीं लगी। मैं समझ गया था कि शहरों से युवा लौट रहे हैं। बीटेक, एमटेक, आइटीआइ करके शहर में नौकरी के लिए गए थे।
सब कुछ लॉक
लॉकडाउन ने सबकुछ लॉक कर दिया तो ये गांव की ओर लौट आए, बातों के दरिम्यान ही इन युवाओं के तमाम दर्द भी छलक आए। उनके लहजे में किस्सागोई थी, खेत और मेड़ की ओर अब वो तमाम सपने तलाश रहे हैंं। युवाओं ने कहा कि गांव में भी कम अवसर नहीं हैं, हम यहीं से अब नई धारा की शुरुआत करेंगे।
खेतों में उम्मीदों की तलाश
नगला राजू गांव में ही एक खेत की ओर मेरी नजर पड़ी। मेरे कदम उस ओर बढ़ गए। एक युवा खेत में फावड़ा चला रहा था, पसीने से तरबतर था। पूछने पर उसने अपना नाम सचिन शर्मा बताया। सचिन ने बीटेक किया है। बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो सचिन खुल गए। बताया अहमदाबाद में स्पेयर पाट््र्स की एक कंपनी में टेक्नीशियन के रुप में काम करते थे। लॉकडाउन में कंपनी बंद पड़ी है। इसलिए गांव आ गया। कुछ दिन तो घर पर बैठा था, पर मन नहीं लगा। एक दिन फावड़ा लेकर खेत की ओर बढ़ गया। पहले दिन तो गांव के तमाम लोग देखने लगे। कुछ लोगों ने टोका भी, मगर मैं मेहनत करने से कभी नहीं घबराता। इसलिए खेत में फावड़ा चलाना शुरू कर दिया। सचिन ने बताया कि सुबह दो घंटे और शाम को दो घंटे काम कर लेता हूं। कड़ी धूप होने के चलते इससे अधिक काम नहीं होता है। अब कोशिश कर रहा हूं कि गांव में ही कुछ काम शुरू करूं। सचिन के चेहरे पर स्वभाविकता और निर्भीकता देखकर साफ पता चल रहा था कि गांव की तस्वीर कुछ बदलेगी।
गांव में भी हैं बड़ी संभावनाएं
इसी गांव के अर्जुन बुग्गी ले जाते दिखाई दे गए। उम्र 30 साल के करीब है। इशारा किया तो अर्जुन ने बुग्गी थाम दी। बातचीत में बताया कि उन्होंने आइटीआइ की है। गुजरात में फेबरीकेशन फिटर का काम करते थे। कोरोना वायरस ने काम-धंधा चौपट करा दिया। कुछ दिन तो वह वहां रुके, मगर आगे उम्मीद नहीं दिखाई दी। लॉकडाउन आगे बढ़ता दिखा। इसलिए अपने गांव आ गया। अर्जुन ने बताया कि वह अब गांव में ही खेती-बाड़ी में हाथ बंटा रहे हैं। शुरुआती दिनों में तो काफी दिक्कत हुई, मगर अब धीरे-धीरे आदत पडऩे लगी है। फिलहाल अभी कोशिश करता हूं कि धूप में कम निकलूं। अर्जुन मानते हैं कि शहर की तरफ युवाओं के भागने की बाढ़ सी आ गई थी, हर कोई गाजियाबाद, दिल्ली, नोयडा, अहमदाबाद, पुणे, बंगलूरू आदि शहरों की ओर रुख कर गए थे, मगर अब गांव की ओर लौट आए हैं। अर्जुन कहते हैं कि गांव में भी लोग एहतियात बरत रहे हैं।
गांव में काम न मिला तो जाएंगे शहर
घरों से कम निकल रहे हैं। मगर, सुबह शाम गांव के लोगों से बातचीत करके बहुत अच्छा लगता है। पुराने दोस्तों से मिलकर बहुत अच्छा लगता है। अर्जुन कहते हैं कि वह गांव में ही नई संभावनाओं की तलाश करेंगे। यही कहना था गांव रायपुर के गोपाल, पैराई के मनीष कुमार व ओगर गांव के संदीप का। उनका कहना है कि गांव में ही रहकर ही रोजगार की संभावनाओं पर काम कर रहे हैं। गांव में काम न मिला तो ही वापस शहर जाएंगे, बर्ना घर पर ही रहेंगे।
सन्नाटे को चीरती गली
इसके बाद गांव हसनपुर पहुंचा मगर यहां की तस्वीर देखकर हैरान रह गया। हर समय चहलकदमी में रहने वाला यह गांव सन्नाटे के आगोश में था। गांव में बांस और बल्लयां लगी हुई थीं। रास्तें सुनसान थे। बुजुर्ग प्रभु दयाल देखते ही चौक गए। बोलें, वहीं रुक जाओ, गांव में क्यों जा रहे हो? गांव में कैसे आ गए ? कहां से आए हो ? जैसे तमाम सवालों की बौछार लगा दी। खुद का परिचय दिया तो बडी बेबाकी से बोले कि गांव का एक युवक महाराष्ट्र में नौकरी करने गया था। गांव वापस आया तो कोरोना की बीमारी से संक्रिमत होकर चला आया। अब पूरा गांव लॉक हो गया है। कोरोना के चलते सबका काम धंधा चौपट हो गया है। उनका नाती राजेश भी गांव आ गया है। अब उसे यहीं कोई काम-धंधा कराएंगे शहर न जाने देंगें। भले ही कम कमा लेगा, रहेगा तो आंखों के ही सामने ।