Move to Jagran APP

एक रसोई, पीढ़ियां चार, सभी कोरोना से बचाव के लिए लोगों को कर रहे जागरुक Aligarh News

रोटियां कई-कई सिकती हों पर चूल्हा एक है। साझी रसोई प्यार और सहकार के भाव के साथ पके भोजन में रिश्तों की खुशबू मन मोह लेती है। चार पीढ़ियां पर छत एक ही है। पिसावा क्षेत्र के गांव महगौरा के जोधराज शर्मा के परिवार की यही पहचान है

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Sat, 15 May 2021 06:52 AM (IST)Updated: Sat, 15 May 2021 06:52 AM (IST)
एक रसोई, पीढ़ियां चार, सभी कोरोना से बचाव के लिए लोगों को कर रहे जागरुक Aligarh News
यहां एक तवे पर रोटियां कई-कई सिकती हों, पर चूल्हा एक है।
अलीगढ़, जेएनएन।  यहां एक तवे पर रोटियां कई-कई सिकती हों, पर चूल्हा एक है। साझी रसोई, प्यार और सहकार के भाव के साथ पके भोजन में रिश्तों की खुशबू मन मोह लेती है। चार पीढ़ियां, पर छत एक ही है। पिसावा क्षेत्र के गांव महगौरा के जोधराज शर्मा के परिवार की यही पहचान है, जो पूरे क्षेत्र में मिसाल है। 12 लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। परिवार के सदस्य भी एक दूसरे के साथ मिल कर कार्य करने में रुचि रखते हैं। कोरोना काल में न सिर्फ एक दूसरे का ख्याल रखने की सीख देने वाला यह परिवार दो गज की दूरी, मास्क जरूरी के लिए लोगों को जागरुक भी कर रहा है। 
 किसान जोधराज शर्मा ने ऐसे किया संघर्ष 
85 वर्षिय जोधराज शर्मा किसान हैं। इनके बड़े बेटे 50 वर्षिय  जवाहर शर्मा खेती में उनका हाथ बंटाते हैं। छोटे बेटे  हरिओम शर्मा सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं। जवाहर शर्मा के बेटे  राहुल शर्मा एक निजी कंपनी में नौकरी करने के साथ ही अपने दादा जोधराज शर्मा व पिता जवाहर शर्मा को नई तकनीक के आधार पर खेती करने में मदद करते हैं। राहुल शर्मा की बेटी  डिंपल, बेटा राम शर्मा को दादा व परदादा पढ़ाई में सहयोग करते हैं।  भारत की संस्कृति के बारे में जानकारी भी देते हैं। खास बात यह कि आज भी बुजुर्ग जोधराज जो निर्णय लेते हैं पूरा परिवार उसे पूरा करने में जी जान से जुट जाता है। शायद उनके सही निर्णयों के कारण ही इन पीढ़ियों के मध्य कभी भी मनमुटाव तक नहीं रहा है। इस परिवार की परंपरा का बच्चों पर भी इतना प्रभाव है कि वे खाने के लिए सभी के आने का इंतजार करते हैं। 
चार पीढिय़ों के संस्कार, स्नेह के बंधन में बंधा परिवार

आज जहां तमाम लोग एकल परिवार की ओर बढ़ रहे हैं। पति-पत्नी व बच्चों तक ही परिवार सिमट कर रह गए हैं, वहीं अलीगढ़ के विष्णुपुरी स्थित स्वदेशी परिवार समाज के लिए मिसाल है। यहां परिवार के सदस्य चार पीढिय़ों से स्नेह के बंधन में बंधे हुए हैं। इनकी कंपनी व प्रतिष्ठान एक ही हैं। चार पीढिय़ों के इस परिवार ने दुनिया की तमाम तस्वीरें देखीं, मगर वो अलग नहीं हुए। आज भी परिवार में सामूहिक निर्णय होता है। सभी सदस्यों में एक दूसरे के प्रति आदर-सम्मान है। एक ही डाइङ्क्षनग टेबल पर नाश्ता व भोजन होता है। परिवार के मुखिया कहते हैं कि परिवार की एकजुटता ही सबसे बड़ी ताकत है। आइए परिवार दिवस पर मिलते हंै इस परिवार से...।

loksabha election banner
1965 में अलीगढ़ में आकर बसे
ज्योति प्रसाद अग्रवाल स्वदेशी परिवार के जन्मदाता हैं। हरियाणा के कैथल शहर के मूल निवासी सुभाष चंद्र अग्रवाल (79) पत्नी कमलेश अग्रवाल के साथ 1965 में अलीगढ़ में आकर बसे। रेलवे रोड पर नेहरू खादी भंडार के नाम से दुकान खोली। समय बीता। इनके बेटे अरुण अग्रवाल व संजय अग्रवाल बड़े हुए। पिता के कारोबार में हाथ बंटाया। गांधी आश्रम के नाम से दूसरी दुकान खोली। तब तक सबसे छोटे बेटे पंकज अग्रवाल भी कारोबार संभालने लायक हो गए। परिवार बढऩे लगा। दो दुकान की जगह एक ही बनाकर 1982 में स्वदेशी खादी आश्रम खोला। यहां खादी के वस्त्रों के साथ टैक्सटाइल के फेब्रिक व अन्य कपड़े मिलने लगे। तीनों भाइयों के बेटा अंकित अग्रवाल, अर्पित अग्रवाल व अभिषेक अग्रवाल भी बड़े हो गए। इस परिवार के आपसी स्नेह की बेमिसाल बात ये है कि सभी भाई-भतीजे एक ही शोरूम में बैठे। 2007 में रेलवे रोड पर अप्सरा टाकीज के पास स्वदेशी खादी ट्रेडर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी बनाकर शहर को मल्टी ब्रांड रेडीमेड गारमेंट््स, साड़ी, टैक्सटाइल्स का बड़ा बहुमंजिला शोरूम खोला। अरुण व संजय के नेतृत्व में यह शोरूम चलने लगा। पंकज अग्रवाल व अभिषेक अग्रवाल ने खरीद व अन्य प्रबंधन की कमाल संभाली। सदस्य बढऩे पर परिवार आगरा रोड द्वारिकापुरी से सुरेंद्र नगर विष्णुपुरी में शिफ्ट हो गया। यहां बड़ा सा मकान बनवाया, जिसका नाम रखा ज्योति कुंज। इसमें पार्क सहित सभी आधुनिक सुविधाएं है। परिवार की महिला कविता अग्रवाल, ङ्क्षबदु अग्रवाल व बेटी घर की जिम्मेदारी संभाले है। दो बेटी बाहर पढ़ाई करने के साथ फैशन डिजाइङ्क्षनग कंपनी में जाब भी कर रही हैं।
हौसला और परिवार के सहयोग से जीती कोरोना की जंग
हाथरस के  हसायन कस्बा के मोहल्ला दखल में राकेश कुमार अपने दो भाइयों के साथ के साथ संयुक्त परिवार में रहते हैं। दोनों भाइयों की शादी हो चुकी है। उनके व भाइयों के बच्चे साथ रहते हैं। पिछले महीने राकेश कुमार की कोरोना की पाजिटिव रिपोर्ट आई थी। जिन्होंने स्वास्थ्य विभाग से अनुरोध किया और होम क्वारंटाइन हो गए। उन्होंने उपचार स्वास्थ्य विभाग की देखरेख में लिया था। साथ में उन्होंने काढ़े का प्रयोग किया। इस दौरान परिवार का पूरा सहयोग मिला। 15 दिन के बाद में उन्होंने दूसरा टेस्ट कराया तो निगेटिव रिपोर्ट आई। उन्होंने बताया कि खुद को परिवार से दूर रखा और अलग कमरे में रहे। खाली समय में धार्मिक किताबों का अध्ययन और समय से स्वास्थ विभाग की दवाएं लेते रहे। परिवार का पूरा सहयोग मिला। समय पर खाना गेट पर रख जाते थे। उसका सेवन करता था और कभी अकेलापन महसूस नहीं किया और हिम्मत नहीं हारा। उसी का परिणाम रहा कि स्वस्थ कोई परिवार का व्यक्ति भी मेरे संपर्क में नहीं आया और न ही दूसरे को कोरोना जैसी समस्या से जूझना पड़ा।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.