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अलीगढ़ में अफसरों का मंथन : कुछ नया प्रयोग कीजिए साहब, जानिए विस्‍तार से

सड़कों को गड्ढों से मुक्त कराने के लिए खुद सड़क पर उतरे इंजीनियर साहब अब स्वच्छता का परचम लहरा रहे हैं। शहर को साफ-सुथरा रखने के लिए ठप पड़ी एक पुरानी व्यवस्था को नए सिरे से लागू कर दिया है। 80 वार्डों में नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Thu, 02 Dec 2021 11:00 AM (IST)Updated: Thu, 02 Dec 2021 11:00 AM (IST)
अलीगढ़ में अफसरों का मंथन : कुछ नया प्रयोग कीजिए साहब, जानिए विस्‍तार से
खुद सड़क पर उतरे इंजीनियर साहब अब स्वच्छता का परचम लहरा रहे हैं।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। सड़कों को गड्ढों से मुक्त कराने के लिए खुद सड़क पर उतरे इंजीनियर साहब अब स्वच्छता का परचम लहरा रहे हैं। शहर को साफ-सुथरा रखने के लिए ठप पड़ी एक पुरानी व्यवस्था को नए सिरे से लागू कर दिया है। 80 वार्डों में नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं, जो लोगों की समस्याएं सुनेंगे। फोकस साफ-सफाई पर रहेगा। नोडल अधिकारी भी अंदर के ही हैं। कोई कर विभाग से है तो कोई राजस्व। जल और निर्माण विभाग के अवर अभियंता भी नोडल अधिकारी बना दिए हैं। ये वो विभाग हैं, जिन पर पहले से ही अतिरिक्त भार है। व्यवस्था भी यह कोई नई नहीं है। पूर्व में भी नोडल अधिकारियों की तैनाती वार्ड स्तर पर हुई थी। समस्याएं सुनते हुए खूब चेहरे चमकाए गए। फिर चार-पांच दिन बाद ही व्यवस्था ठप पड़ गई। नोडल अधिकारी अपने मूल कार्य में व्यस्त हो गए। लोग कह रहे हैं, इंजीनियर साहब कुछ नया प्रयोग कीजिए।

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लग्जरी कार छोड़ पकड़ ली पगडंडी

चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, सियासी दलों की सक्रियता बढ़ती जा रही है। गांव-देहात में हर रोज सायरन की आवाज सुनाई देती है। ऐसे भी गांवों हैं, जिनमें नेताजी की लग्जरी कार प्रवेश नहीं कर पाती। गांव के बाहर ही कार खड़ी कर नेताजी पगडंडी पकड़ लेते हैं। फिर शुरू होती है नेताजी की पदयात्रा। नेताजी तो गांव वालों से यही कहते हैं कि उनसे मिलने पैदल ही चले आए। लेकिन, जिन्हें सच्चाई पता है, वो चुटकी ले ही लेते हैं। कहते हैं, वक्त रहते गांव के अंदर भी सड़कें बना दी होतीं तो यूं पगडंडी न पकड़नी पड़ती। पिछले दिनों छर्रा के एक गांव पहुंचे नेताजी को पांव में पड़ा देख बुर्जुग महिला ने पूछा बड़े दिनों बाद आए हो। नेताजी बोले, अम्मा सरकार अपनी नहीं है। अबकी बार बना दो तो रोज आएंगे। तभी एक युवा बोला, पहले भी यही कहे थे। नेताजी निरुत्तर हो गए।

खाद की कमाई में बंदरबांट

नियमों को ताक पर रखकर हो रही खाद की कमाई में बंदरबांट भी खूब हो रहा है। इसमें छोटे ही नहीं बड़े-बड़े भी शामिल हैं। कभी किल्लत तो कभी खर्चा अधिक बताकर अतिरिक्त मुनाफे के साथ खाद का सौदा किया जा रहा है। लेकिन, रिकार्ड में सबकुछ सही। रिकार्ड में उतना ही हिसाब मिलेगा, जितना बताया अौर समझाया गया है। यही वजह है कि परीक्षण के लिए बिक्री केंद्रों पर जाने वाली टीमों को कुछ गलत हाथ नहीं लगता। या फिर ये टीमें गलत देखने वहां जाती ही नहीं, मिलने पर भी अनदेखा कर देती हैं। पिछले सीजन में खाद की कालाबाजारी पर लगभग हर जिले में मुकदमे हुए। यहां भी बड़े मामले पकड़े गए थे, मुकदमा तो दूर लाइसेंस तक निरस्त नहीं किए गए। अब भी वही फर्में उसी जोश के साथ खाद की सौदेबाजी करने में जुटी हैं और अफसर सिर्फ लकीर पीटते नजर आ रहे हैं।

तालमेल नहीं बैठा पा रहे महकमे

सरकारी महकमों में तालमेल बिगड़ने से विकास कार्यों का क्या हश्र होता है, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। नगर निगम और जल निगम को ही लीजिए। दोनों ही विभाग जनता से सीधे जुड़े हुए हैं और बुनियादी जरूरतें पूरा करते हैं। इनमें तालमेल होना बेहद जरूरी है। ये बिगड़ा तो व्यवस्था भंग होना तय है। पिछले दिनों एक सड़क के मामले में विवाद सामने आया। जल निगम ने सड़क खोदकर वाटर लाइन बिछा दी, लेकिन इस लाइन का ट्रायल नहीं किया। डेढ़ साल बीत गया। लोगों ने प्रदर्शन किया तो नगर निगम अफसरों ने बिना यह जाने की ट्रायल हुआ या नहीं, सड़क बना दी। जल निगम से एनओसी लेना भी जरूरी नहीं समझा। अब ट्रायल हुआ तो सड़क से पानी फूट पड़ा। लीकेज ठीक करने के लिए नई सड़क उखाड़नी होगी। बाद में भले ही जल निगम सड़क को ठीक कराए, लेकिन सरकारी धन का नुकसान तो हुआ ही।


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