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कोरोना की दवा नहीं, फिर भी लाखों के बिल, कई निजी अस्पतालों में कोविड के नाम पर धंधेबाजी शुरू Aligarh news

डाक्टर पहले से ही दूसरी बीमारियों में इस्तेमाल दवा से संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं। हैरानी की बात ये है कि कोई दवा न होने के बाद भी निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर दो से ढाई लाख रुपये तक वसूली हो रही है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sat, 17 Apr 2021 11:06 AM (IST)Updated: Sat, 17 Apr 2021 01:56 PM (IST)
कोरोना की दवा नहीं, फिर भी लाखों के बिल, कई निजी अस्पतालों में कोविड के नाम पर धंधेबाजी शुरू Aligarh news
दवा न होने के बाद भी निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर हो रही वसूली ।

अलीगढ़, जेएनएन । कोविड संकट काल को एक साल से अधिक समय बीत गया है, मगर इस बीमारी की दवा इजाद नहीं हो पाई है। डाक्टर पहले से ही दूसरी बीमारियों में इस्तेमाल दवा से संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं। हैरानी की बात ये है कि कोई दवा न होने के बाद भी निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर दो से ढाई लाख रुपये तक वसूली हो रही है। कई निजी हास्पिटल में यह धंधेबाजी शुरू हो गई है। इस तरफ किसी का ध्यान नहीं। मरीजों पर दो तरफा मार पड़ रही है।

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श्रेणियों के आधार पर खर्च तय

सरकारी अस्पतालों में भले ही कोरोना संक्रमित मरीजों की जांच से लेकर उपचार तक मुफ्त हो, वहीं निजी अस्पतालों में यह इलाज बेहद महंगा है। जबकि, शासन ने पिछले साल ही उपचार की दरें निर्धारित कर दी थीं। इसमें स्पेशलिटी के आधार पर जिलों को तीन श्रेणियों में बांटा गया। लखनऊ, कानपुर, आगरा, वाराणसी, प्रयागराज, बरेली, गोरखपुर, मेरठ, नोएडा व गाजियाबाद जिले 'ए' श्रेणी में रखे गए। अलीगढ़, मुरादाबाद, झांसी, सहारनपुर, मथुरा, रामपुर, मिर्जापुर, शाहजहांपुर, अयोध्या, फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर और फर्रुखाबाद 'बी' श्रेणी में रखे। अन्य जिले 'सी' श्रेणी में रखे गए। 'ए' श्रेणी के जिले में उपचार की दर 10-18 हजार रुपये प्रतिदिन तय की गई। 'बी' श्रेणी के जिले में यह दर 20 फीसद कम और सी श्रेणी के जिले में यह दर 40 फीसदी कम रखी गई। सरकार ने इलाज में पारदर्शिता बरतने के भी निर्देश दिए।

तय शुल्क से अधिक वसूली 

श्रेणी के अनुसार अलीगढ़ में इलाज का खर्चा 10-18 हजार रुपये प्रतिदिन से अधिक नहीं होना चाहिए। मगर कुछ हास्पिटल की शिकायतें मिल रही हैं कि वे 15 से 25 हजार रुपये तक का बिल रोजाना बना रहे हैं। यानी, इसमें जनरल वार्ड का किराया ही आठ से दस हजार व आइसीयू का 15 हजार रुपये तक लिया जा रहा है। जांच, दवा, डाक्टर की फीस व अन्य शुल्क के नाम पर पांच से 10 हजार रुपये और लिए जाते हैं। एक मरीज हास्पिटल में आठ से 10 दिन भर्ती रहता है। इस तरह इलाज का खर्चा दो से ढाई लाख या इससे अधिक तक पहुंच जाता है। नोएडा-दिल्ली के अस्पतालों में यह खर्चा दोगुना है। मरीज के स्वजन को मजबूरन इलाज कराना पड़ रहा है। वर्तमान में फिर से नए कोविड केयर सेंटर बनाने की कवायद हो रही है, मगर इलाज के खर्च को लेकर कोई बात नहीं हो रही। यानी, संचालकों को मनमानी ढंग से वसूली की छूट रहेगी। 

स्टेंडर्ड ट्रीटमेंट गाइडलाइन

- पैरासिटामोल

- डाक्सीसाइक्लिन

- एजिथ्रोमाइसिन

- रेमडेसिविर

- विटामिन-सी

- टेबलेट ङ्क्षजक

- विटामिन

इनका कहना है

आपदा काल में सभी चिकित्सकों की जिम्मेदारी है कि मरीजों की ङ्क्षजदगी बचाएं। इसे कमाई का अवसर न मानें। इलाज में पारदर्शिता बरतें और तय शुल्क से अधिक न लें। जल्द ही इस संबंध में दिशा-निर्देश फिर जारी किए जाएंगे।

- डा. बीपीएस कल्याणी, सीएमओ।


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