Lockdown मेरा गांव मेरा देश : गांव में दो वक्त की रोटी, जरूरत तो और भी हैं
ये वक्त है। अब करवट ले रहा है। कोरोना की मार के चलते शहर से लौटे लोगों का गांवों में अपनोंं ने दिल खोलकर स्वागत किया। परंतु अब कुछ दिन बीतने के बाद मुश्किल होने लगी है।
अलीगढ़ [योगेश कौशिक]: ये वक्त है। अब करवट ले रहा है। कोरोना की मार के चलते शहर से लौटे लोगों का गांवों में अपनोंं ने दिल खोलकर स्वागत किया। परंतु अब कुछ दिन बीतने के बाद मुश्किल होने लगी है। बच्चों की पढ़ाई की चिंता है, तो रोजगार की भी। गांव में इतने संसाधन तो हैैं कि दो वक्त की रोजी-रोटी मिले लेकिन जरूरतें और भी हैैं। ऐसे में अब शहर लौटने का मन बनने लगा है।
लॉकडाउन में बंद हुई कंपनी
इगलास तहसील के गांव चंदफरी के विपिन नोएडा की कंपनी में काम करते थे, जो लॉकडाउन के दौरान बंद हो गई। कोई विकल्प नहीं था तो परिवार सहित गांव लौट आए। यहां अपनों का साथ तो मिला लेकिन आगे असली संकट तो रोजी-रोटी का खड़ा है। विपिन कहते हैैं कि गांव में खेती से पूरे परिवार का पालन नहीं हो सकता। बच्चे भी तो शहर में पढ़ रहे थे, वह यहां रहने को राजी नहीं हैैं। बस इंतजार यह है कि फैक्ट्री चालू हो और लौटें। यह बेहतर विकल्प भी है।
भविष्य बनाना है तो शहर में काम करना पड़ेगा
गांव नयाबास निवासी हरीश कुमार भी दिल्ली लौटने को तैयार हैं। उनका कहना है कि गांव में दो वक्त की रोटी के लिए तो जुगाड़ हो जाएगा। भविष्य बनाना है, तो शहर में काम करना पड़ेगा। गांव में खेती है नहीं पिता परचून की दुकान करते हैं। उससे खर्च चलाना मुश्किल है। बिना काम-धंधे के समय कैसे कटेगा, अभी भी मुश्किल हो रही है। लॉकडाउन चार में सरकार ने बहुत सारी पाबंदिया हटा ली हैं। कंपनी में काम शुरू होते ही शहर की ओर रुख कर लेंगे। गांव में यदि काम मिलता तो शहर जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।
खेती का काम ही नहीं किया कभी
शहर में रोजगार करने वाले युवा लौट आए हैैं लेकिन कुछ की स्थिति भिन्न है। इगलास के एक युवा का कहना है कि उनके घर में खेती है, लेकिन उन्होंने इससे जुड़ा कोई काम लंबे समय से नहीं किया। वह कंपनी में मार्केटिंग का काम करते रहे हैैं, ऐसे में वही आगे भी करना चाहते हैैं।