रासायनिक खाद नष्ट कर रहे माटी को संजीवनी दे रहे सूक्ष्म जीव, ऐसे जानें प्राकृतिक खेती के नए व पुराने परिणाम
Aligarh news आज किसान रासायनिक खाद पर निर्भर हो गया है। रासायनिक खाद से खेतों के सूक्ष्म जीव नष्ट हो रहे हैं जबकि यही सूक्ष्म जीव मिट्टी को संजीवनी देते हैं। जनपद में लगभग साढ़े चार लाख किसान हैं इनमें से अधिकतर रासायनिक खाद पर निर्भर हैं।
लोकेश शर्मा, अलीगढ़ । Aligarh news : ये शोध और चिंतन का विषय है, खेतों में रासायनिक खाद खपाकर जिन सूक्ष्म जीवों को नष्ट किया जा रहा है, वही सूक्ष्म जीव मिट्टी को संजीवनी देते हैं। इनका महत्व जानना है कि कृषि फार्म में घूम आइए। प्राकृतिक खेती के नए व पुराने परिणाम भी जान लेना। फसल उत्पादन में सूक्ष्म जीवों की उपयाेगिता पता चल जाएगी। खरीफ में यहां धान की फसल हुई थी। रासायनिक खाद आधारित फसल की तुलना में 2.80 कुंतल अधिक उत्पादन हुआ। लागत कुल 700 रुपये आई। अब रबी की फसलों की बोआई हो रही है। ये फसलें भी सूक्ष्म जीवों पर निर्भर होंगी।
अधिकतर किसान रासायनिक खाद पर निर्भर
जनपद में साढ़े चार लाख किसान हैं, इनमें अधिकतर रासायनिक खाद पर निर्भर हैं। 15 प्रतिशत किसान ही प्राकृतिक खेती से जुड़े हैं। रासायनिक खाद का लक्ष्य हर साल बढ़ने के पीछे यही कारण है। ऐसा नहीं कि किसान प्राकृतिक खेती करना नहीं जानते। ये भी पता है कि रासायनिक खाद से मिट्टी ही नहीं, फसलों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। फिर भी मोह नहीं छोड़ रहे। ऐसे किसानों को कृषि फार्म में हुए शोध से सबक लेना चाहिए।
प्राकृतिक खेती से धान का उत्पादन बेहतर
यहां प्राकृतिक खेती से धान का बेहतर उत्पादन हुआ था। फसल में रोग नहीं लगा, लागत भी मामूली आई। खाद के तौर पर गुड़, बेसन, गोबर और गोमूत्र का उपयोग किया गया। यहां मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की मात्रा सामान्य खेतों की मिट्टी से काफी अधिक है। यही सूक्ष्म जीव मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। कृषि वैज्ञानिक अब रबी की फसलों पर प्रयोग कर रहे हैं। साढ़े सात एकड़ में गेहूं, चना, मटर, मसूर, सरसों, अलसी, राई की बोआई की गई है। कृषि अधिकारी रागिब अली कहते हैं कि किसानों का मानना है कि रासायनिक खाद से फसलें रोग रहित रहती हैं, उत्पादन भी अच्छा होता है। उनके ये मिथक कृषि वैज्ञानिक अपने शोध में तोड़ रहे हैं। रासायनिक खाद के अत्याधिक उपयोग से सूक्ष्म जीव नष्ट होते हैं।
जैविक खाद से अधिक उत्पादन
उप कृषि निदेशक (शोध) डा. वीके सचान बताते हैं कि खरीफ में बासमती धान की रोपाई दो एकड़ में की गई थी। गुड़, बेसन, गोबर, गोमूत्र और बरगद के नीचे की मिट्टी से खाद बनाकर उपयोेग किया। एक ओर रासायनिक खाद आधारित धान की फसल की गई थी। रासायनिक खाद आधारित धान 34.30 कुंतल हुआ। लागत छह हजार रुपये आई। जबकि, प्राकृतिक खेती आधारित धान 37.10 कुंतल हुआ। लागत 700 रुपये आई। प्राकृतिक खेती से 2.80 कुंतल अधिक धान मिला।
ऐसे बनता जैविक खाद
डा. सचान बताते हैं कि पांच किलो बरगद के नीचे की मिट्टी, 10 लीटर गोमूत्र, 20 किलो गोबर, चार किलो गुड़, चार किलो बेसन ड्रम में डालकर 200 लीटर पानी में घोला जाता है। प्रतिदिन सुबह व शाम लकड़ी से इसे हिलाते हैं। 15 से 20 दिन में खाद तैयार होती है। इसे एक हेक्टेयर खेत में डालकर जोताई की जाती है, फिर बोआई। इससे पौधों की जड़ें मजबूत रहती हैं, भरपूर पोषक तत्व मिलते हैं।