तीन हत्याओं के बोझ तले दबी दया याचिका
- 21 साल पहले बरला में हुई थीं नृशंस हत्याएं - सजायाफ्ता की रिहाई की अपील पर नहीं लगी मुह
- 21 साल पहले बरला में हुई थीं नृशंस हत्याएं
- सजायाफ्ता की रिहाई की अपील पर नहीं लगी मुहर
अलीगढ़ : 21 साल पहले हुई तीन हत्याओं की आगरा सेंट्रल जेल में सजा काट रहे कैदी की रिहाई पर शासन की मुहर नहीं लगी। गुनाह का बोझ इतना ज्यादा था कि स्थानीय अफसरों ने भी हाथ खींच लिए और संस्तुति नहीं की। प्रदेश सरकार के संयुक्त सचिव सूर्य प्रकाश सेंगर ने कैदी की दया याचिका निरस्त करते हुए महानिरीक्षक कारागार प्रशासन एवं सुधार सेवाओं का निर्देशित किया है। आदेश की एक प्रति जिलाधिकारी को भी भेजी है।
ये वारदात 25 मार्च 1997 को बरला थाना क्षेत्र के गांव परौरा में हुई। गांव के ही भूरा के पिता रामस्वरूप उर्फ नेकसे लापता थे। इसी गांव के जसवंत सिंह उर्फ ऊदल सिंह आदि को कुछ लोगों पर शक था। इसको लेकर जसवंत ने चार अन्य साथियों के साथ मिलकर फरसा, तमंचे व ईटों से तीन लोगों की हत्या कर दी। अपर सत्र न्यायालय प्रथम ने 30 अक्टूबर 2000 को जसवंत आदि को दोषी पाते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी। दोषियों ने हाईकोर्ट में अपील की। मगर, 13 अप्रैल 2007 को अपील खारिज करते हुए सजा बरकरार रखी। जसवंत को आगरा सेंट्रल भेज दिया गया। 19 साल आठ माह की सजा काट चुके जसवंत ने दया याचिका में रिहाई की मांग की। जिलाधिकारी व एसएसपी से घटना का संज्ञेय अपराध बताते हुए संस्तुति नहीं की। शासन ने भी याचिका खारिज कर दी।