Raja Mahendra Pratap State University: धर्मनिरपेक्षता की रियासत के भी 'राजा थे महेंद्र प्रताप, ये थीं उनकी खासियत Aligarh News
Raja Mahendra Pratap State University देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए क्रांतिकारी सामाजिक जागरूकता के लिए पत्रकार समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर कराने वाले समाज सुधारक जरूरतमंदों की मदद के लिए दानवीर थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह।
अलीगढ़, संतोष शर्मा। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए क्रांतिकारी, सामाजिक जागरूकता के लिए पत्रकार, समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर कराने वाले समाज सुधारक और जरूरतमंदों की मदद के लिए दानवीर। राजा महेंद्र प्रताप सिंह इन सभी गुणों की खान थे। शिक्षा के प्रसार के लिए वृंदावन में महाविद्यालय की स्थापना कर उन्होंने एक राजा का दायित्व निर्वहन किया था, तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी को लीज पर 3.8 एकड़ जमीन देकर धर्मनिरपेक्षता की रियासत के 'राजा' भी बन गए।
शाही ठाठ से की थी पढ़ाई
मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के यहां एक दिसंबर 1886 को जन्मे राजा महेंद्र प्रताप को हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने गोद ले लिया था। उनके कोई संतान नहीं थी। दोनों राजाओं में पारिवारिक रिश्ते थे। राजा हरनारायण सिंह ने बालक महेंद्र प्रताप को शिक्षा दिलाने के लिए वर्ष 1895 में अलीगढ़ के गवर्नमेंट हाईस्कूल (अब नौरंगीलाल इंटर कालेज) भेजा। राजा हरनारायण सिंह और घनश्याम सिंह के एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद खां से घनिष्ठ मित्रता थी। सर सैयद के अनुरोध पर राजा ने उसी साल महेंद्र प्रताप का दाखिला मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल (एमएओ) कालेज में करा दिया। बाद में यही एमएओ एएमयू के नाम से विख्यात हुआ। एमएओ कालेज में महेंद्र प्रताप ने शाही ठाठ से पढ़ाई की थी। अलग हास्टल में उनकी सेवा के लिए 10 नौकर रहते थेे। राजा महेंद्र प्रताप ने अपनी आत्मकथा माई लाइफ स्टोरी में इसका जिक्र किया है।
देश सेवा में पूरा जीवन लगाने वाले जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए भी खूब काम किया। वर्ष 1909 में उन्होंने वृंदावन में प्रेम विद्यालय की स्थापना कराकर देश को पहला तकनीकी शिक्षा केंद्र दिया था। एएमयू में वे खुद तो पढ़े ही थे, उनके पिता राजा घनश्याम सिंह की संस्था संस्थापक सर सैयद से दोस्ती थी। शिक्षा के प्रति समर्पित राजा महेंद्र प्रताप ने एएमयू को वर्ष 1929 में 3.8 एकड़ जमीन 90 साल की लीज पर दे दी। शुल्क तय किया था दो रुपये सालाना। जीटी रोड पर कोल तहसील के पास एएमयू के सिटी स्कूल के पीछे ये जमीन है। एएमयू जैसी संस्था को जमीन देकर राजा ने संदेश दिया था कि शिक्षा के प्रसार में किसी तरह का भेदभाव नहीं करना है। चाहे किसी भी जाति-धर्म के हों, सभी भारतीय हैं और उन्हें बेहतर शिक्षित करना है। उनकी इस दरियादिली की तारीफ आज भी होती है।
तीन साल पहले खत्म हुई लीज
राजा के प्रपौत्र चरत प्रताप सिंह बताते हैं कि तीन साल पहले लीज की अवधि खत्म हो गई। तब हमने एएमयू इंतजामिया के सामने दो प्रस्ताव रखे थे। जमीन वापस करने या सिटी स्कूल का नामकरण राजा के नाम पर करने का। अभी इस पर कोई निर्णय नहीं हो सका है।
मौलाना आजाद लाइब्रेरी में तस्वीर
एएमयू में राजा के नाम पर मौलाना आजाद लाइब्रेरी में उनकी एक तस्वीर ही है। हालांकि, लाइब्रेरी में राजा से जुड़ीं बहुत सी किताबें हैं। विवि पीआरओ उमर सलीम पीरजादा का कहना है कि विवि प्रशासन द्वारा राजा पर अनेक संगोष्ठियां आयोजित की जाती रही हैं। अपने पूर्व छात्र और सह्रदय प्रेमी के प्रति विवि आदर और सम्मान का भाव रखता है।
किसी ने तो राजा को सम्मान दिया: चरत प्रताप
राजा महेंद्र प्रताप सिंह के प्रपौत्र चरत प्रताप सिंह ने योगी सरकार द्वारा राजा के नाम पर यूनिवॢसटी बनाने के फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि मेरे परिवार के लिए यह गर्व की बात है। किसी सरकार ने तो राजा को सम्मान दिया। दादा जी श्रीराम और कृष्ण के भजन सुनते थे। नमाज भी अदा करते थे।
यूनिवर्सिटी बनने से होगा लाभ
राजा महेंद्र प्रताप सिंह यूनिवॢसटी बनने से अलीगढ़ ही नहीं, मंडल भर के हजारों छात्र-छात्राओं को लाभ मिलेगा। अव्वल तो यहां रक्षा पाठयक्रमों की पढ़ाई का मौका मिलेगा। डा. बीआर आंबेडकर यूनिवॢसटी, आगरा में परीक्षा सत्र देर से शुरु होने, मार्कशीट के त्रुटिपूर्ण व देरी से आने की समस्या से भी निजात मिलेगी। प्रस्तावित यूनिवॢसटी से अलीगढ़, एटा, कासगंज और हाथरस के 400 महाविद्यालयों को जोड़ा जा रहा है।
सर सैयद की हर मदद करते थे राजा के पिता
ब्रिटिश सरकार के समय एमएओ कालेज के रूप में एएमयू की नींव रखने वाले सर सैयद अहमद खां और राजा महेंद्र प्रताप सिंह के पिता घनश्याम सिंह में गहरी मित्रता थी। घनश्याम सिंह के परिवार के राजा टीकाराम सिंह का आवास उन दिनों में अलीगढ़ में हुआ करता था, जहां इन दिनों डीएम आवास है। एमएओ कालेज भ्रमण पर आने वाले अंग्रेज गवर्नर व वायसराय ट्रेन से अलीगढ़ आते थे।सर सैयद तब स्टेशन से अंग्रेज अफसरों को कालेज ले जाने के लिए राजा टीकाराम सिंह की बग्घी का इस्तेमाल किया करते थे। एएमयू के पूर्व पीआरओ डा. राहत अबरार के अनुसार सर सैयद ने 1964 में साइंटिफिक सोसायटी बनाई तब राजा घनश्याम सिंह और राजा टीकाराम सिंह ने बड़ी मदद की थी। दान भी दिया। एसएस हाल में घनश्याम सिंह के नाम पर एक कमरा भी है। जिसके लिए उन्होंने दान दिया था।