चिरइया को दिया घर, तो चहकने लगा अंगना
आकाशदीप भारद्वाज, अलीगढ़ : शहर में भले ही में पेड़ों पर और यहां-वहां गौरैया न दिखाई द
आकाशदीप भारद्वाज, अलीगढ़ : शहर में भले ही में पेड़ों पर और यहां-वहां गौरैया न दिखाई देती हों, मगर क्वार्सी के लक्ष्य नगर निवासी सुभाष चंद्र शर्मा के घर-आंगन में ये 'नन्हीं चिरइया' फुदकती हुई दिखाई दे जाएंगी। सुभाष शर्मा के पूरे परिवार की सुबह ही इनकी चहचहाट से होती है। पूरा परिवार इन्हें देखकर निहाल हो उठता है। सुभाष चंद्र शर्मा ने ज्यादा कुछ नहीं किया बस उनके रहने का आश्रय बनाया और गौरैया दुलार दिखाती हुई इनके घर आना शुरू कर दीं। अब तो ये 'नन्हीं चिरइया' पूरे परिवार की दोस्त हो गई हैं। विश्व गौरैया दिवस पर यदि हमने इन्हें बचाने का संकल्प ले लिया तो सच मानिए हमारे घर-आंगन में भी ये रोज आएंगी।
दरअसल, शहर में पेड़ कट गए। ऑलीशान मकानों ने झरोखे भी छीन लिए। इसके चलते धीरे-धीरे गौरैया हमसे रूठती चली गईं। प्रदूषण ने भी गौरैया का दम घोटने का काम किया। क्वार्सी बाइपास स्थित लक्ष्य नगर निवासी सुभाष चंद्र शर्मा ने एक दिन छोटे बेटे अंकित से दस पक्षियों के नाम पूछे, वह नहीं बता सका। उन्हें लगा कि अरे नई पीढ़ी तो पक्षियों के बारे में जान ही नहीं सकेगी। उसी दिन से ठान लिया कि घर में पक्षियों को आश्रय देंगे। अपने घर के आंगन में गांव की तर्ज पर झोपड़ीनुमा छप्पर तैयार किया। यहां दाना-पानी सब रखते। यहां तक अपने घर के बाहरी कमरों में पंखे भी चलाना बंद कर दिया। धीरे-धीरे गौरैया आना शुरू हो गई। पहले दो-चार फिर अब झुंड दिखाई देने लगीं। घोंसले में तो बैठती है, छतों पर भी झुंड दिखाई देता है। बरामदे में दाना डालने पर पूरा झुंड जुट जाता है। अब तो सुभाष शर्मा की पत्नी कल्पना शर्मा की सुबह भी इन्हीं की आवाज से होती है। वह ही दाना-पानी की चिंता करतीं हैं। बेटी दीपिका, सारिका, बेटा अमित कुमार, अंकित तो नन्हीं चिरइया के दोस्त ही हो गए। सुभाष चंद्र कहते हैं कि अब शहर में जो भी मिलता है, उसके घर में गौरैया के आश्रय बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।