Move to Jagran APP

संस्कारशालाः निस्वार्थ भाव के जीवंत उदाहरण हैं ईश्वर, प्रकृति व मां

स्वार्थ से दूर अर्थात निस्वार्थ भाव। जो आज के युग में बहुत कम देखने को मिलता है। इसका कारण यह हो सकता है कि मनुष्य में आत्मीयता के स्थान पर वैमनस्यता ने जगह ले ली है। यह भाव रह गया है कि जैसा दिया है वैसा ही पाओगे।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 02:07 PM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 02:07 PM (IST)
संस्कारशालाः निस्वार्थ भाव के जीवंत उदाहरण हैं ईश्वर, प्रकृति व मां
अलीगढ़ स्थित ब्रिलिएंट पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य श्याम कुंतेय ने स्वार्थ से दूर रहने को किया प्रेरित

श्याम कुंतेल, अलगीढ़। स्वार्थ से दूर अर्थात निस्वार्थ भाव। जो आज के युग में बहुत कम देखने को मिलता है। इसका कारण यह हो सकता है कि आज मनुष्य में आत्मीयता के स्थान पर वैमनस्यता ने जगह ले ली है। भाईचारा व्यापार में बदल गया है, जिसमें यही भाव रह गया है कि जैसा दिया है वैसा ही पाओगे। मनुष्य शुद्ध आत्मिक प्रेम से दूर होता चला गया। मनुष्य चाहता है कि वह स्वार्थ से दूर रहे तो उसे ईश्वर के नजदीक रहना होगा। कहावत है कि 'जैसा संग, वैसा रंग या 'संत का संग बोरे, कुसंग डुबोए। हम निस्वार्थ भाव के जीवंत उदाहरण ईश्वर (परमात्मा), प्रकृति व मां, जिसमें वापसी की इच्छा के बगैर देने का भाव है। मनुष्य में यह भाव तभी आ सकता है, जब प्रेम हो। प्रकृति ने निस्वार्थ भाव से वायु, फल, जल, ऊष्मा के उपहार के रूप में दी है। 

loksabha election banner

स्वार्थ शब्द बना है 'स्व से। अर्थात स्वयं से। यानी जिस कार्य में स्वयं का लाभ हो, वो स्वार्थ है। प्रश्न यह है कि आपका स्व क्या है? अगर आपके 'स्व में केवल आप हैं तो आप  स्वार्थी हैं। अगर 'स्व में परिवार सम्मिलित है तो आप पारिवारिक हैं। 'स्व में अन्य लोग शामिल हैं तो आप परोपकारी है। 'स्व में संसार सम्मिलित है तो आप परमार्थी हैं। अपने अस्तित्व का विस्तार करोगे तो स्वार्थ परमार्थ में बदल जाएगा। मनुष्य चाहता है कि वह स्वार्थ से दूर रहे तो उसे पुन: ईश्वर से शुद्ध प्रेम सीखना होगा। मनुष्य का प्रत्येक मनुष्य में शुद्ध प्रेम होगा तो वह स्वार्थ से दूर होगा। निस्वार्थ भाव में ही मनुष्य किसी बदले की इच्छा नहीं रखता। निस्वार्थता हमें देना सिखाती है। दूसरी ओर स्वार्थ से दूर रहने के लिए मनुष्य को प्रकृति, जिसको मां भी कहा गया है, उसकी गोद में लौटना होगा और एक नई शुरुआत करनी होगी।

स्वार्थ आज के समाज में सभी के जीने का कारण बन गया है। बिना स्वार्थ के व्यक्ति कुछ भी नहीं करना चाहता, जो गलत है। सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति को अपने जीवन में हर पड़ाव पर स्वार्थ रहित कार्य करने की कोशिश करनी चाहिए। हम वैसा नहीं कर पाते। यहां तक कि वृद्धावस्था में स्वार्थ रहित भक्ति भी नही हो पाती है। इस भक्ति के दौरान कुछ न कुछ पाने की इच्छा बलवती होती ही है। आपके द्वारा किया गया हर कार्य स्वार्थ पर आधारित हो जाएगा तो समाज में संतुलन का होना असंभव है। हम समाज में अपना नाम कमाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं पर स्वार्थ हमें उसी समाज से दूर कर देता है। यदि हम छोटे स्तर पर समझें तो जब आप किसी संगठन या टीम में काम कर रहे हैं तो आप को स्वयं से पहले संगठन को रखना चाहिए। इसके लिए हम टीम आधारित खेलों का उदाहरण ले सकते हैं। जहां हर खिलाड़ी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर अपनी टीम के लिए खेलता है। उसका अपना प्रदर्शन टीम के लिए ही होता है। हम विद्यालय में आयोजित होने वाले टीम कार्यों से ही स्वार्थ रहित कार्य करना सीख जाएं, तो हम अपने आगे के जीवन में सफल संगठन का नेतृत्व कर सकते हैं। हमें स्वार्थ रहित सेवा प्रकृति से सीखनी चाहिए। प्रकृति हमारी आवश्यकता अनुसार हमें सारी चीजें प्रदान करती है परंतु बदले में वह हमसे कुछ नहीं मांगती। रहीमदास ने अपने दोहे में कहा है-

तरुवर फल नङ्क्षह खात है सरवर पियत न पान। कहि रहीम पर काज हित संपत्ति सचहि सुजान।

पद, प्रतिष्ठा की लालसा में व्यक्ति समाज के विकास में बाधक बन जाता हैं। समाज के विकास के लिए कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तियों की जरूरत है और जहां कर्तव्यनिष्ठा आ जाती है वहां स्वार्थ रहता ही नहीं।

                                                                                  - प्रधानाचार्य, ब्रिलिएंट पब्लिक स्कूल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.