विधायक बोले, निरंकुश अफसरों को दीवाली बाद ठीक करेंगे Aligarh News
प्रदेश सरकार का ढाई साल का कार्यकाल पूरा होने पर शहर विधायक संजीव राजा और कोल विधायक अनिल पाराशर का अफसरों का गुस्सा फूट पड़ा। वह अफसरशाही पर जमकर बरसे।
अलीगढ़ (जेएनएन)। प्रदेश सरकार का ढाई साल का कार्यकाल पूरा होने पर शहर विधायक संजीव राजा और कोल विधायक अनिल पाराशर का अफसरों का गुस्सा फूट पड़ा। वह अफसरशाही पर जमकर बरसे। शहर विधायक ने तो पूरे तेवर में कहा कि निरंकुश अफसरों को दीवाली बाद ठीक करेंगे। नगर निगम पर तो सीधा बोले कि पर्याप्त साधन होने के बाद भी वहां अधिकारी सही काम नहीं कर रहे।
अफसरों को दिवाली तक का समय
सुरेंद्र नगर स्थित श्रीराम बैंक्वेट हॉल में पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया था। इस बीच अफसरशाही से दिक्कतों की बात के बीच शहर विधायक से सवाल उठा कि मुख्यमंत्री से शिकायत क्यों नहीं करते हैं, जिससे गड़बड़ अफसरों पर कार्रवाई हो सके। उन्होंने कहा कि निरंकुश अफसरों को हटाना समस्या का समाधान नहीं। पहले उन्हें दीवाली तक ठीक होने का समय दिया है। उसके बाद अंकुश लगाने का काम करेंगे। उन्होंने कहा कि ढाई साल नौकरशाही को समझने में लगा है, अब हमारे पास सिर्फ ढाई साल बचे हैं। हम प्रयास करेंगे कि इस दौरान नौकरशाह सही हो जाएं। राजा ने कहा कि दीपावली के बाद वह स्थिति देखने सरकारी कार्यालयों में जाएंगे। यदि वहां जनता के कार्य में लापरवाही बरती गई। समय से अफसर नहीं आए तो ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए लिखा जाएगा? हम सभी का कार्य है जनता को कोई दिक्कत न हो और उनकी समस्या का समाधान हो।
लापरवाही की पराकाष्ठा : अनिल
कोल विधायक ने कहा कि पिछले 70 साल में प्रशासनिक व्यवस्था और समाज को जाति के नाम पर बांटा गया। अफसरों के स्तर पर भी लापरवाही की पराकाष्ठा रही है। अफसरों के स्वार्थ पूरे नहीं हो पा रहे, तो वे व्यवस्था को बिगाडऩे का काम कर रहे हैं। हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि प्रशासनिक मशीनरी सुधर रही है, लेकिन दीमक लगी व्यवस्था को सुधारना कम समय में संभव नहीं है।
पहले भी हुए थे सख्त
यह पहली बार नहीं है, भाजपा के शहर विधायक पहले भी अधिकारियों के खिलाफ सख्त लहजे में बोल चुके हैं। कई बार कह चुके हैं कि अफसर ठीक से काम नहीं करते हैं। हालांकि, अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
विधायक जी के बोल का मोल क्या और तोल क्या
अवधेश माहेश्वरी अलीगढ़। योगी सरकार के ढाई साल पूरा होने पर भाजपा के शहर विधायक संजीव राजा और कोल के अनिल पाराशर ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई, तो सामान्य सी बात लग रही थी। आखिर यह रस्मी होती हैैं, इनमें अपनी उपलब्धियों का बखान होता है। परंतु बातचीत में अचानक सत्ता के सुर विरोधी जैसे हो गए। विधायक कहने लगे कि निरंकुश अफसरशाही दीवाली तक न सुधरी, तो सीधे ठीक करेंगे। विधायकों को ये अहसास किन वजहों से हुआ कि अफसरशाही निरंकुश है? यह सवाल उस जनता के मन में है, जिसके वह प्रतिनिधि हैैं। जवाब जानने को सवाल तो उछले लेकिन विधायकों के 'मन की गठरीÓ में बंधा रहस्य सामने नहीं आया। आखिर क्यों? जनप्रतिनिधियों की क्या मजबूरी है? उन्हें इस तरह चुप क्यों होना चाहिए? यदि जवाब नहीं देना था तो इतना भी क्यों बोले? क्या तूरीण से निकालकर जुबान की तरकश पर चढ़े इन तीरों से अधिकारियों में कोई बदलाव होगा, ऐसा सोचते हैैं तो किसी 'मायाजाल' में हैैं। आखिर अफसरशाही दबावों को झेलते हुए इतनी मझ चुकी हैैं कि ऐसी बातें उस पर किंचित भी असर नहीं करतीं। अफसरशाही जानती है कि विधायक जी की 'लक्ष्मण रेखा' कहां तक खिंची है। पहले तो वह इसे लांघेंगे नहीं, यदि कोशिश की तो लखनऊ वाली गोटियों को किस तरह चलना है।
वैसे जनप्रतिनिधियों को साफ बोलना चाहिए था कि वह किन वजहों से अफसरों को निरंकुश मान रहे हैैं। विधायकों की अपेक्षा के ऐसे कौन से काम हैैं, जो अफसर नहीं कर रहे। उन्हें करने के लिए विधायकों ने कब-कब आवाज उठाई और सुनवाई नहीं हुई।
आखिर वो अफसर कौन से हैैं, जो सुनते नहीं। इनके नाम साफ हो जाते तो अफसरों के भी सीधे कान हो जाते। वह भी दुविधा में न फंसते, जो अपने काम को सही अंदाज में अंजाम दे रहे होंगे। जब गोलमोल अंदाज में तीर चलाए जाते हैैं, तो ऐसे अफसर भी संदेह के घेरे में आते हैैं।
वैसे विधायकों ने यह नहीं बताया कि अफसरों को ठीक करने का तरीका क्या होगा। वह सीधे एक्शन कैसे लेंगे। उनका तरीका कोई हल्ला बोल की तरह तो नहीं हो सकता। सीधे एक्शन में ऐसी ही बातें ज्यादा आती हैैं। हां, एक तरीका मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री से शिकायत का होता है लेकिन विधायकों का संकेत है कि वह ऐसा करने नहीं जा रहे।
कोल विधायक के दो बोल भी समझ को मुश्किल करने वाले रहे कि प्रशासनिक मशीनरी सुधर रही है। यदि वह मानते हैैं कि सुधार की प्रक्रिया जारी है तो कुछ सेकेंड पहले ही दीवाली बाद सीधे एक्शन लेने की चेतावनी की जरूरत क्यों पड़ी। खैर यह सवाल हैैं। विधायकों की यह बात तो जनता में हर किसी को सही लगती है कि अफसरशाही बेकाबू है, परंतु सत्ता वाले विधायकों के यह अंदाज क्यों होने चाहिए। ऐसे अंदाज तो विरोध पक्ष वालों के होते हैैं। अभी के विधायकों के पास तो सरकार की शक्ति है, उन्हें सुधार के लिए मीडिया से पहले सरकार के पास जाना चाहिए। कार्रवाई करानी चाहिए और अपनी उपलब्धि को तब मीडिया के सहारे जनता को बताना चाहिए। शहर विधायक को तो इसका आभास इसलिए भी और होना चाहिए कि वह पहले भी एक बार ऐसी तलवार चला चुके हैैं, लेकिन वार हवा में खाली चला गया।