Hathras case: हाथरस के बूलगढ़ी से सियासी रास्तेे तलाश रहे राजनीतिक दलों के नेता
लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस के खिलाफ चली हवा ने यहां भी काफी उठापठक की। विधानसभा की दौड़ में कइयों की सियासी जमीन खिसकी तो कइयों को सत्ता मेें रहने का कुछ ही समय मिल सका। कई राजनीतिक लोग हासिये पर आ गए।
हाथरस [ हिमांशु गुप्ता ]: लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस के खिलाफ चली हवा ने यहां भी काफी उठापठक की। विधानसभा की दौड़ में कइयों की सियासी जमीन खिसकी तो कइयों को सत्ता मेें रहने का कुछ ही समय मिल सका। कई राजनीतिक लोग हासिये पर आ गए। लेकिन, अब सभी दलों के दिग्गज फिर से अपने वजूद के लिए बूलगढ़ी से सियासी रास्ते तलाश रहे हैं।इसकी शुरूआत कांग्रेस ने की।
कांग्रेस का हाथरस पर लंबे समय तक प्रभाव रहा
घटना के कुछ दिन बाद पीड़ितों से मुलाकात करके कांग्रेस के पूर्व महासचिव श्योराज जीवन ने जो बयान दिया, उसमें दरिंदगी की चिंता थी और हाथ तोड़ने जैसे बातें थीं। कांग्रेस का हाथरस पर लंबे समय तक प्रभाव रहा है, लेकिन अब वह स्थिति नहीं है। 1974 के बाद कांग्रेस का हाथरस को विधायक नहीं बन सका। श्योराज जीवन भी यहां से भाग्य आजमा चुके हैं, लेकिन सफल नहीं हो सके। हाथरस जिला बनने पर पहले जिला अध्यक्ष भी वही थे। अब बूलगढ़ी के रास्ते कांग्रेस अपनी खोई सियासी जमीन तलाश रही है। इसके संकेत शनिवार को कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी ने दलितों के साथ रहने की बात कहकर दिए भी हैं।
पूर्व विधायक को दोबारा नहीं मिला मौका
इमरजेंसी के बाद 1980 में हुए चुनाव में जनता पार्टी, 1985 में जनता दल सेक्यूलर और 89 में जनता दल के विधायक बने। ये दल अब हैं नहीं। 1993 में भाजपा के राजवीर सिंह पहवान विधायक बने। यह पहला मौका था जब भाजपा को जीत मिली। लेकिन, इन्हें 1996 में बसपा के रामवीर उपाध्याय ने इन्हें विधानसभा नहीं जाने दिया। कांग्रेस की बुरी स्थिति के कारण ब्राहमण वोटों में बिखराव हो गया था। इस मौके का रामवीर उपाध्याय ने फायदा उठा एकजुट किया और ब्राह्मण नेता के रूप में अपनी पहचान बना विधानसभा पहुंचे। इसके बाद रामवीर अन्य विधानसभा क्षेत्रों में चले गए। राजवीर सिंह को विधानसभा मिलने का मौका दोबारा नहीं मिल सका। वे अब बूलगढ़ी कांड में अपने ठाकुर समाज में सक्रिय हैं।
दलितों की एकजुटता से भीमआर्मी भी कम प्रभावित नहीं
माना जा रहा है कि इस समाज की एकजुटता उन्हें राजनीतिक लाभ भी दे सकती है।बसपा की उम्मीदें भी कम नहीं। दो बार विधायक इसी दली के रहे हैं। पार्टी सुप्रीमो मायावती की सक्रियता दलितों को पार्टी से जोड़े रखने की है। वहीं, सपा के नेता और कार्यकर्ता भी बूलगढ़ी में ही भविष्य तलाश रहे हैं। जाम, धरना और प्रदर्शन इसी दल के लोग कर रहे हैं। यहां के दलितों की जुटता से भीमआर्मी के चीफ चंद्रशेखर भी कम प्रभावित नहीं। बूलगढ़ी में हुई घटना के बाद बयानों से धाराएं बढ़ने के साथ ही उन्होंने मामले को हवा देना शुरू कर दिया था। वे दो वार पीड़ितों से मिल चुके है। सभी बूलगढ़ी के रास्ते पर सभी हैं, लेकिन नजर सि