Move to Jagran APP

जानिए देश की पहली महिला जासूस नीरा आर्य के बारे में, जिसे नेता जी ने नागिनी कहा था

आज देश की महिला जासूस नीरा आर्य की 120वीं जयंती है। इस अवसर पर इगलास में परोपकार सामाजिक सेवा संस्‍था द्वारा तोछीगढ़ में कार्यक्रम आ आयोजन किया गया जिसमें क्रांतिकारी नीरा आर्य के छायाचित्र पर पुष्‍प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गयी।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Sat, 05 Mar 2022 02:12 PM (IST)Updated: Sat, 05 Mar 2022 02:15 PM (IST)
इगलास में भारत की पहली जासूस नीरा आर्य की 120 वीं जयंती मनाई गई।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। परोपकार सामाजिक सेवा संस्था द्वारा इगलास के गांव तोछीगढ़ में आजाद हिंद फौज की महिला विंग "रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट" की सिपाही भारत की पहली जासूस नीरा आर्य की 120 वीं जयंती मनाई गई। ग्रामीणों ने क्रांतिकारी नीरा आर्य के छायाचित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।

loksabha election banner

नीरा आर्य का जन्‍म 5 मार्च 1902 को बागपत में हुआ था

संस्था के अध्यक्ष जतन चौधरी ने कहा कि नीरा आर्य का जन्म 5 मार्च 1902 को बागपत के खेकड़ा में हुआ था इनके माता-पिता की मृत्यु के बाद इनको हरियाणा के दानवीर चौधरी सेठ छज्जूमल लाम्बा (छाजूराम) ने उन्हें गोद ले लिया। नीरा व इनके भाई बसन्त ने सेठ को ही अपना धर्मपिता स्वीकार किया। उनकी पढ़ाई लिखाई कलकत्ता में ही हुई। इन्हें बचपन में वीर भगत सिंह से भी मिलने का मौका मिला जब वे चौधरी साहब के पास अंग्रेजों से बचने के लिए कई दिनों तक रुके थे। बड़े होकर अपने धर्मपिता सेठ छज्जूमल के आदर्शों के कारण देशभक्ति कूट कूटकर भरी हुई थी इसीलिए नेताजी की आजाद हिंद फौज में शामिल हुई और देश की पहली जासूस होने का गौरव प्राप्त किया।

नेता जी ने कहा था नागिनी

इन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अंग्रेजी सेना में अफसर अपने पति की हत्या कर दी थी। पति को मारने के कारण ही नेताजी ने उन्हें नागिनी कहा था। आजाद हिन्द फौज के समर्पण के बाद जब दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चला तो सभी बंदी सैनिकों को छोड़ दिया गया, लेकिन इन्हें पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा हुई थी, जहां इन्हें घोर यातनाएं दी गई। आजादी के बाद इन्होंने फूल बेचकर जीवन यापन किया, लेकिन कोई भी सरकारी सहायता या पेंशन स्वीकार नहीं की थी। डॉ. नरेंद्र सिंह आर्य ने इनकी आत्मकथा का एक ह्रदयविदारक अंश प्रस्तुत किया जो स्वयं इन्होने लिखा था ‘‘मैं जब कोलकाता जेल से अंडमान पहुंची तो रात भर हम भारत माता से जुदा होने के दर्द की से पीड़ा से तड़पते रही और सूर्य निकलते ही जेलर ने कड़क आवाज में कहा, ‘‘तुम्हें छोड़ दिया जाएगा, यदि तुम बता दोगी कि तुम्हारे नेताजी सुभाष कहाँ हैं?’’ ‘‘वे तो हवाई दुर्घटना में चल बसे, ’’ मैंने जवाब दिया, ‘‘सारी दुनिया जानती है| ’’ ‘‘नेताजी जिंदा हैं....झूठ बोलती हो तुम कि वे हवाई दुर्घटना में मर गए?’’ जेलर ने कहा। ‘‘हाँ नेताजी जिंदा हैं।’’ ‘तो कहाँ हैं। ‘मेरे दिल में जिंदा हैं वे।’ जैसे ही मैंने कहा तो जेलर को गुस्सा आ गया था और उसके इसारे पर लुहार ने मुझे असहनीय पीड़ा देते हुए लोहे के जंबूर से मेरे दोनों स्तन काटने की कोशिश की।

26 जुलाई 1998 में हुआ निधन

वृद्धावस्था में बीमारी की हालत में चारमीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में इन्होंने रविवार 26 जुलाई, 1998 में एक गरीब, असहाय, निराश्रित, बीमार वृद्धा के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया। इस मौके पर रणधीर सिंह आर्य, धीरेंद्र सिंह आर्य, अनिल कुमार, नीरज कुमार, किशनवीर सिंह, धर्मवीर सिंह, आदित्य आर्य, सूरज चौधरी, साधना, उन्नति आर्य आदि मौजूद रहे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.