Aligarh Police : खाकी को भी सब पता है, उम्मीद है कि अब छिपाया कतई न जाए...
बीता साल जाते-जाते गांधीपार्क थाने को दर्द दे गया। याकूतपुर में डकैती चर्चा में ज्यादा इसलिए नहीं आ रही क्योंकि यहां लाखों की गिनती सामने नहीं है लेकिन उससे भी कीमती वस्तु यानी पीडि़त की जीवनभर की कमाई बर्बाद हो गई।
अलीगढ़,सुमित शर्मा। तमाम कुचेष्टाओं के बीच बीता साल जाते-जाते गांधीपार्क थाने को दर्द दे गया। याकूतपुर में डकैती चर्चा में ज्यादा इसलिए नहीं आ रही, क्योंकि यहां लाखों की गिनती सामने नहीं है, लेकिन उससे भी कीमती वस्तु यानी पीडि़त की जीवनभर की कमाई बर्बाद हो गई। तभी तो पूरा महकमा जुटा है। कप्तान ने पुराने धुरंधरों को भी बुला लिया। वे अपने थाने छोड़कर कभी मथुरा, कभी हाथरस तो कभी कासगंज में डेरा जमाए हुए हैं। स्पष्ट कह दिया कि कैसे भी पर्दाफाश हो। अंदर की बात है कि डकैतों की गर्दन पुलिस के हाथ आ चुकी हैं, लेकिन भैंस नहीं मिलीं। रिकवरी का यही पेंच पर्दाफाश के आड़े आ रहा है। लाखों की कीमत की भैंसों के साथ क्या हुआ? ये तो डकैत ही जानते हैं, खाकी को भी सब पता है। उम्मीद है कि इसे अब छिपाया कतई ना जाए और जल्द से जल्द पर्दा उठा दिया जाए।
बार-बार का टकराव
वर्ष 2020 पुलिस के कामकाज के लिहाज से बेहतर रहा, अच्छी छवि बनी। कार्रवाई का रिकॉर्ड बना। यहां तक कि विभागीय लापरवाही पर भी तगड़ा शिकंजा कसा गया, लेकिन किन्हीं कारणवश बारंबार टकराव होता रहा। शहर के तीन संवेदनशील थानों के इलाकों में छोटी-छोटी बातों पर लोग एक-दूसरे को मारने पर उतारू हो गए। सासनीगेट थाना क्षेत्र में तो सट्टे के विवाद ने एक युवक की जान तक ले ली। इसी इलाके में जानवर के कार से टकराने पर बवाल होते-होते बचा। अंतिम दिन कूड़ा डालने के विवाद में ऐसी नौबत आई कि पुलिस फोर्स अब भी तैनात है। पुलिस को इसकी वजह तलाशनी होगी। संभ्रांत लोगों के साथ लगातार बैठकें हो रही हैं, तो फिर ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं? हालात अचानक इतने कैसे बिगड़ जाते हैं कि संभालने में देरी हो जाती है। सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि हमारा खुफिया तंत्र आखिर कब मजबूत हो पाएगा?
ये दाग नहीं है ठीक...
शहर के गिने-चुने इलाके देह व्यापार से जकड़े हुए हैं। बरसों से स्थापित इनकी पैठ को कोई छू भी नहीं पाता। इन दिनों लोधा क्षेत्र के होटल और ढाबे बेशर्म बने हुए हैं। पुलिस ने चंद रोज पहले छापा मारकर सिर्फ खानापूर्ति कर दी, लेकिन असली ठेकेदार अब भी वहीं जमे हैं। क्षेत्र की एक महिला कहने लगी, सुबह से शाम तक लोगों का आना-जाना लगा रहता है। हमारी बहू-बेटियों का निकलना दूभर है। यह शब्द खाकी को कभी नहीं चुभते। चूंकि कुछ पुलिसकर्मी खुद इस काले रंग में रंगे हैं। कुछ सिफारिशों तले मजबूर भी हैं। गांधीपार्क बस स्टैंड का भी बुरा हाल है। दो दिन पहले महिला ने एक राहगीर को उकसाया। जब राहगीर ने होमगार्ड से शिकायत की तो उल्टा उसे ही फटकारकर भगा दिया। खाकी देह व्यापार पर शिकंजा कसने में घबराती है। अफसरों को मंथन करना होगा। एक अभियान इनके खिलाफ क्यों नहीं चल सकता।
नेपाल की कहानी नहीं आई सामने
पिछले वर्ष जब शहर हत्या, लूट की बड़ी घटनाओं को झेल रहा था, तब पॉश बाजार सेंटर प्वाइंट से लाखों की मोबाइल चोरी ने भी अलीगढ़ पुलिस के होश उड़ा दिए थे। थानेदार बदले, तो इस पर कुछ काम शुरू हुआ। पता चला कि मोबाइल नेपाल में बेचे गए हैं। घटना को बिहार के गैंग ने अंजाम दिया है, लेकिन पूरी कहानी सामने नहीं आई। उचित तर्क ये भी है कि खाकी लंबे समय से तमाम उलझनों में व्यस्त है। कभी त्योहार तो कभी विशेष अवसर, मगर बड़ी घटना पर इस तरह बेपरवाही नहीं होनी चाहिए। नेपाल में समन्वय बिठाने का समय आ गया है। यही नहीं, दीपावली पर गिरोह ने ताबड़तोड़ चार दुकानों को निशाना बनाया था। क्या दोनों घटनाओं में एक ही गिरोह तो नहीं है? दो बड़ी चोरियों ने साल के कामकाज पर ठीकरा फोड़ दिया। नए साल पर संकल्पित पुलिस जल्द ही इसकी पूरी कहानी बताए।