कोरोना काल में जरूरतमंदों के मर्ज की 'दवा' बनीं जीतू, जानिए पूरा मामला Aligarh news
समय की धारा भले कोई रोक नहीं पाए पर इस बहाव में ऐसे नाजुक दौर भी आते हैं जो जीवन को नई राह देते हैं। उद्देश्य तय करते हैं और कुछ नया करने को प्रेरित भी करते हैं। एसिड अटैक की शिकार जीतू शर्मा के साथ यही हुआ।
सुमित शर्मा, अलीगढ़ । समय की धारा भले कोई रोक नहीं पाए, पर इस बहाव में ऐसे नाजुक दौर भी आते हैं जो जीवन को नई राह देते हैं। उद्देश्य तय करते हैं और कुछ नया करने को प्रेरित भी करते हैं। एसिड अटैक की शिकार जीतू शर्मा के साथ यही हुआ। लंबी बीमारी से जुझते पिता के लिए दवा का इंतजाम बड़ा मुश्किलभरा था। बीमारी गंभीर थी। इतनी कि निराशा हाथ लगी, लेकिन दवा को लेकर हुई परेशानी ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया। कोरोना काल में उसी तरह दर्द झेल रहे लोगों को जीतू ने राहत दी। दवा के लिए परेशान लोगों की मदद में वह करीब एक माह से जुटी है। इस दौरान 10 लोगों की दवा का खर्च अपने पास से किया है।
छपास फिल्म में भी नजर आई थी जीतू
बरौला जाफराबाद निवासी जीतू शर्मा दीपिका पादुकोण की छपास फिल्म में भी नजर आई थीं। तीन बहनें और एक भाई है। जीतू दूसरे नंबर की हैं। आगरा के शीरोज कैफे में बतौर कैशियर काम करती हैं। फिलहाल कैफे तो बंद हैं। लेकिन, वेतन मिलता है, जिसका उपयोग लोगों की मदद में कर रही हैं। पिछले साल कोरोना काल में जीतू ने मोहल्ले के 10-15 गरीब बच्चों को घर पर भी मुफ्त शिक्षा दी थी। लेकिन इस बार उसने दवा के लिए परेशान लोगों की तलाश की। इसके पीछे खुद का वह दर्द था, जो नवंबर माह में उसने झेला। उनके पिता सोमदत्त शर्मा पुलिस विभाग में थे। कैंसर से पीडि़त थे। जीतू बताती हैं कि पिता की तबीयत अधिक खराब हो गई थी। इलाज के लिए भटकना पड़ा। दवा जुटाना मुश्किल हो रहा था। जैसै-तैसे मदद मिली। लेकिन, नवंबर में पिता जिंदगी की जंग हार गए। इस घटना के बाद जरूरतमंदों को दवा उपलब्ध कराने की ठान ली। कोरोना संक्रमण बढ़ते ही मरीजों की संख्या बढ़ी तो जीतू मददगार बन खड़ी हुईं। डाक्टरों से संपर्क कर मरीजों को राहत के प्रयास लगातार रहे। अप्रैल में उन्होंने इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट व वीडियो भी शेयर की। जरूरतमंदों की सूचना आतेे ही कोरियर के माध्यम से उनके घर दवा भिजवाना शुरू कर दिया। उनका कहना है कि दूसरों की खुशी देखकर ही अब मुझे खुशी मिलती है।
तीन साल किया संघर्ष
2014 में एक अधेड़ ने जीतू पर एसिड अटैक किया था। तब 16 वर्ष की थीं। आरोपित तीन साल बाद ही जेल से बाहर आ गया। जीतू बताती हैं कि तीन साल जिंदगी से संघर्ष किया। कहती हैं कि जो दर्द झेले हैं, उन्हेंं बयां नहीं कर सकती। राह चलते लोग कमेंट करते थे। ऐसे में पहले चेहरा ढककर चलती थीं। 2017 में शीरोज कैफे के बारे में पता चला तो आगरा पहुंच गईं। वहां अपने जैसी युवतियां देखीं। किसी की आंखें नहीं थीं तो किसी की स्किन खराब थी। वो चेहरा नहीं छिपा रही थीं। यह देख जीतू ने भी चेहरे से नकाब हटा दिया। बुलंद हौसले और अटूट जज्बे के साथ उसने न सिर्फ नई जिंदगी की शुरुआत की। दूसरों की खुशी में अपनी खुशी ढूंढना उसकी आदत में शुमार हो चुका है।