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जानलेवा ग्लैंडर्स ने अलीगढ़ को कहा बाय-बाय, घोड़ों में ऐसे फैलती थी बीमारी

घोड़ों में फैलनी वाली जानलेवा ग्लैंडर्स बीमारी ने अलीगढ़ को बाय-बाय कह दिया है। पिछले दो साल में जिले से करीब 450नमूने हिसाब की लैब में जांच के लिए भेजे गए, लेकिन इनमें से एक में भी इसकी पुष्टि नहीं हुई।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Mon, 17 Dec 2018 09:06 AM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2018 09:06 AM (IST)
जानलेवा ग्लैंडर्स ने अलीगढ़ को कहा बाय-बाय, घोड़ों में ऐसे फैलती थी बीमारी
जानलेवा ग्लैंडर्स ने अलीगढ़ को कहा बाय-बाय, घोड़ों में ऐसे फैलती थी बीमारी

अलीगढ़ (जेएनएन)। घोड़ों में फैलनी वाली जानलेवा ग्लैंडर्स बीमारी ने अलीगढ़ को बाय-बाय कह दिया है। पिछले दो साल में जिले से करीब 450नमूने हिसाब की लैब में जांच के लिए भेजे गए, लेकिन इनमें से एक में भी इसकी पुष्टि नहीं हुई। हालांकि इसके बाद भी अफसर एतिहात के तौर पर जागरुकता फैला रही है। गांव-गांव में पशु पालकों को जागरुक किया जा रहा है। इंग्लैंड की ब्रूक हॉस्पीटल के पदाधिकारी प्रशिक्षण के माध्यम से जिले में यह काम कर रहे हैं।

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यह है बीमारी

ग्लैंडर्स रोग भारत सरकार के द्वारा नोटिफाईएबल कैटेगरी में आता है। यह बल्कोलडेरिया बैक्टीरिया द्वारा होता है। यह जुनोटिक रोगों की श्रेणी में आता है। यह घोड़ों के अलावा अन्य स्तनधारी पशुओं और मनुष्य में हो सकता है। डॉक्टर के मुताबिक यह बीमारी एक संक्रमण के तौर पर फैलती है। यह खाल के घाव, नाक के म्युकोसल सर्फेस व सांस के द्वारा हो सकता है। यह जानलेवा बीमारी होती है। मृत्यु के बाद ही इसे खत्म किया जाता है। जिले में पांच हजार से अधिक घोड़ों हैं। दो साल पहले तक जिले में हर साल में कोई न कोई ग्लैंडर्स का मामला सामने आता था। इसके चलते घोड़ों को गोली देकर मौत के घाट उतारना पड़ता था, लेकिन अब इसमें काफी सुधार हुआ है। पिछले दो साल से कोई भी ग्लैंडर्स का मामला जिले में नहीं आया है।

450 सैंपल भेले गए जांच को

पिछले दो साल में पशु चिकित्सा विभाग हर महीने 20 सैंपल जांच के लिए हिसार लैब में भेजे गए। ऐसे में करीब 23 महीनों में कुल 450 सैंपल भेजे गए हैं, लेकिन इनमें से एक में भी पुष्टि नहीं हुई है। ऐसे में अफसर अब अब अलीगढ़ से इस बीमारी को खत्म सा मान रहे हैं।

पशु पालकों को करते हैं जागरुक

इस बीमारी को रोकने के लिए पिछले तीन साल से यहां इंग्लैड की बूक्र हॉस्पीटल के पदाधिकारी काम का रहे हैं। इनके द्वारा हर साल उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, पशु चिकित्साधिकारी, पशुधन प्रसार अधिग्रहण एवं वैटनरी फार्मासिस्ट शामिल हुए। इन्हें ग्लैंडर्स से बचने के उपाय, पहचान समेत अन्य के बारे में बताया गया। इन्होंने पशुपालकों को जागरुक किया। इसी के चलते यह अभियान सफल हो पा रहा है।

400 नमूनों में नहीं पुष्टि

मुख्य पशु चिकित्साधिकारी केपी वाष्र्णेय का कहना है कि पिछले दो साल में करीब 400 से अधिक सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। इनमें से किसी में भी ग्लैंडर्स की पुष्टि नहीं हुई है। यह जिले के लिए अच्छी खबर है।


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