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Truth of Police: अलीगढ़ में आसान नहीं है वाहन चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराना, ये है पुलिस का सच

गांधीपार्क थाना क्षेत्र के विकास नगर से 26 सितंबर को दिनदहाड़े कारोबारी लालाराम शर्मा के घर के बाहर खड़ी बाइक (यूपी 81 बीए 5294) चोरी हो गई। घटना का पता चलते ही उन्होंने डायल 112 पर पुलिस को सूचना दी।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 07:50 AM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 07:50 AM (IST)
Truth of Police: अलीगढ़ में आसान नहीं है वाहन चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराना, ये है पुलिस का सच
डायल 112 पर पुलिस को सूचना दी। लेकिन, कोई नहीं आया।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। गांधीपार्क थाना क्षेत्र के विकास नगर से 26 सितंबर को दिनदहाड़े कारोबारी लालाराम शर्मा के घर के बाहर खड़ी बाइक (यूपी 81 बीए 5294) चोरी हो गई। घटना का पता चलते ही उन्होंने डायल 112 पर पुलिस को सूचना दी। लेकिन, कोई नहीं आया। लालाराम कहते हैं कि थाने में तहरीर दी गई और निश्चिंत हो गए कि मुकदमा दर्ज हो जाएगा। अगले दिन मुकदमे की कापी लेने पहुंचे तो पता चला कि मुकदमा दर्ज ही नहीं हुआ है। मौके पर ही दोबारा से तहरीर लिखकर दी, जिसके बाद मुकदमा दर्ज हो सका। लेकिन, जांच करने आज तक कोई नहीं आया। वाहन चोरी के हर तीसरे मामले में पीड़ित की यही पीड़ा होती है।

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यह है मामला

दरअसल, वाहन चोरी की घटनाओं में पीड़ित की ओर से थाने में रिपोर्ट दर्ज करा पाना आसान काम नहीं है। एेसे मामलों में पहले तो पुलिस कर्मी टालमटोल करते हैं या तहरीर को अपने पास लेकर रख लेते हैं। पीड़ित बार-बार चौकी व थाने के चक्कर लगाता है अथवा सिफारिश कराता है तब कहीं जाकर मुश्किल से उनका मुकदमा दर्ज हो पाता है। पुलिस का यह रवैया दोपहिया वाहन चोरी होने पर पहले से ही परेशान पीड़ित के घाव पर नमक छिड़कने जैसा काम करता ही है, महकमे की छवि भी बिगाड़ता है। जनवरी 2021 में सराय लबरिया निवासी विवेक शर्मा के साथ भी यही हुआ। उनकी बाइक (यूपी 81 एएच 9556) वैष्णोधाम कालोनी के सामने से चोरी हो गई थी। इस मामले में मुकदमा दर्ज कराया गया था। लेकिन, जांच में कोई प्रगति नहीं हुई। न सीसीसीवी खंगाले गए और न ही कभी पुलिस ने कोई सूचना नहीं दी।

पहले पकड़े जाते हैं चोर, फिर दर्ज होता है मुकदमा

सबसे खास बात यह है कि कई मामलों में तो पुलिस तब मुकदमा दर्ज करती है जब दो पहिया वाहनों को उड़ाने वाला चोरों का गिरोह हत्थे चढ़ जाता है। जिनसे जो दो पहिया वाहन मिलते हैं उनकी बरामदगी दिखा दी जाती है। कई बार ऐसी परिस्थितियां भी सामने आती हैं जब बाइक मिलने पर पुलिस को उसके मालिक को खोजना पड़ता है।

मुकदमें में देरी, एफआर में जल्दबाजी

भले ही पुलिस दो पहिया वाहनों के चोरी चले जाने पर मुकदमा देर से दर्ज करती हैं, लेकिन इन मुकदमों में एफआर (फाइनल रिपोर्ट) लगाने में उतनी ही तेजी भी दिखाती है। ऐसे में पुलिस का जोर वाहन बरामद करने से अधिक उसमें एफआर लगाने पर अधिक रहता है। पीड़ित भी पुलिस की इस नाकामी से नाराज होने की बजाए खुश रहते हैं, क्योंकि वाहन चोरी के मुकदमें एफआर लगने पर इंश्योरेंस क्लेम पाना आसान हो जाता है। इसके बाद पीड़ित क्लेम की राशि पाने के बाद मुकदमे में कार्रवाई को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं।

90 दिन में चार्जशीट या एफआर

पुलिस को मुकदमा दर्ज होने के अधिकतम 90 दिनों में चार्जशीट या एफअार लगाने का समय होता है। बाइक या स्कूटी चोरी होने के बाद मिलना आसान नहीं होता है। ऐसी घटनाओं में पुलिस की इंश्योरेंस कंपनी के क्लेम देने तक तलाश जारी रहती है, फिर यह सोचकर एफअार लगा दी जाती है कि अब चोरी गया वाहन नहीं मिल सकेगा। यही पीड़ित भी चाहता है कि पुलिस 90 दिन का समय काटने की जगह कम से कम समय में एफआर लगा दे।

शहर में कई वाहन चोरों को पकड़कर जेल भेजने के बाद वाहन चोरी पर काफी हद तक अंकुश लगा है। कई गैंग पुलिस के रडार पर हैं। चोरी वाले स्थानों को चिह्नित कर वहां पुलिस निगरानी बढ़ायी गई है।

--कुलदीप सिंह गुनावत, एसपी सिटी


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