मंदी से उद्योग बेहाल, नहीं गल पा रही दाल, जानिए वजह Hathras News
वैश्विक मंदी के कारण हाथरस के दाल-दलहन उद्योग पर भी असर पड़ा है। मिलों का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 30 फीसद घटा है। मंडी शुल्क ने पहले से ही दाल कारोबारियों की कमर तोड़ रखी।
हाथरस (जेएनएन)। वैश्विक मंदी के कारण हाथरस के दाल-दलहन उद्योग पर भी असर पड़ा है। इन मिलों का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 30 फीसद घटा है। मंडी शुल्क ने पहले से ही दाल कारोबारियों की कमर तोड़ रखी है, अब मांग में कमी के कारण मिलों में उत्पादन गिर रहा है। इससे ट्रांसपोर्ट कारोबार पर भी प्रभाव पड़ा है।
दाल कारोबार का इतिहास पुराना
दाल कारोबार का इतिहास काफी पुराना है। यहां सौ से अधिक दाल मिल थीं। इन दाल मिलों में रेलवे लाइन बिछी हुई थी। किला स्टेशन से होते हुए ट्रेन पूर्वोत्तर रेलवे ट्रैक पर आकर मिली थी। ट्रांसपोर्ट का झंझट नहीं था और टैक्स की समस्या नहीं थी। इसलिए यह कारोबार खूब फला-फूला। पिछले चार दशकों में कारोबार में गिरावट शुरू हुई। रेलवे लाइन खत्म होने से ट्रांसपोर्ट की समस्या हावी हुई। सरकार की नीतियां भी बदलीं और किसानों ने दाल उत्पादन भी घटा दिया। वर्तमान में यहां 40 इकाइयां हैं। नोटबंदी के पहले तक साल का टर्नओवर 250 करोड़ रुपये का था। हर साल 50 हजार टन दाल देश के विभिन्न हिस्सों में भेजी जाती थी। पिछले तीन सालों में उत्पादन में गिरावट जारी है। इस साल सरकारी नीतियों व आर्थिक सुस्ती के ने दाल उद्योग पर ग्रहण लगा दिया है।
पहले से प्रभावित
हाथरस का दाल कारोबार पहले से ही प्रभावित है। पिछडऩे की प्रमुख वजह यहां लगने वाला मंडी टैक्स है। 2017 में लागू जीएसटी में दाल-दलहन को मुक्त रखा गया, लेकिन ढाई फीसद मंडी टैक्स बरकरार रखा गया। दिल्ली, मध्यप्रदेश सहित अन्य प्रदेशों में मंडी टैक्स नहीं है। इससे सीधे तौर पर हाथरस के व्यापारी वहां के कारोबारियों से पिछड़ गए। अब आर्थिक मंदी के कारण डिमांड गिर गई है। वैश्विक मंदी के कारण अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी मांग नहीं है, जिससे निर्यात भी घटा है। दाल कारोबारियों के अनुसार पिछले तीन महीनों में 50 फीसद कारोबार प्रभावित है।
एमएसपी से कम रेट
वैश्विक मंदी में डिमांड घटने के कारण दलहन की निर्धारित एमएसपी(मैक्सिमम सेङ्क्षलग प्राइस) से 25 से 30 फीसद रेट कम हैं। दाल कारोबार पर यह दोहरी मार है। इसके कारण दलहन का वर्तमान इन्फ्लेशन रेट(मुद्रास्फीति) 3.2 फीसद पर आ गया है। दाल कारोबारी पवन अग्रवाल के अनुसार इस तरह की मंदी पहली बार है। प्रोडक्शन घटने के कारण सीधा असर मजदूर वर्ग पर पड़ेगा। न चाहते हुए भी छंटनी करनी पड़ेगी।
दहलन की खेती नहीं
हाथरस और आसपास के क्षेत्रों में अब दहलन की खेती नहीं होती है। पिछले दो दशक से दाल-दलहन छोड़ यहां के किसानों ने आलू व धान का रुख कर लिया। ऐसा दाल मिलों के बंद होने तथा आलू व धान में अच्छा मुनाफा होने के कारण हुआ। पहले आसानी से यहां के उद्यमियों को कच्चा माल उपलब्ध हो जाता था, लेकिन अब 60 फीसद माल आयात किया जाता है। यह माल कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीकी देशों से आयात होता है। पिछले दो दशक में दाल पर महंगाई की यह मुख्य वजह रही है, जिससे सीधे तौर पर दाल मिलें प्रभावित हुई हैं।
सट्टा कारोबार
दाल कारोबार में गिरावट के लिए यहां के कारोबारी सरकार की नीतियों व कमोडिटी एक्सचेंज को जिम्मेदार मान रहे हैं। एनसीडीईएक्स में हवा में अनाज की खरीद-फरोक्त होती है। दाल कारोबारियों के अनुसार एक तरफ सरकार सट्टा कारोबार को खत्म करने की बात करती है, दूसरी ओर एक जुलाई से मूंग को भी इस सट्टे में शामिल कर लिया है। इससे भी दाल-दलहन के कारोबार में उतार-चढ़ाव आता है। वास्तविक खरीद-फरोक्त करने वाले अब सट्टा मार्केट के रेट देखते हैं, जोकि वास्तविक मार्केट से 10 फीसद कम चल रहा है। इससे भी कारोबारियों को नुकसान उठाना पड़ता है।
अन्य राज्यों से नहीं कर पा रहे मुकाबला
दाल कारोबारी राधेश्याम का कहना है कि दाल उद्योग के घटने की मुख्य वजह सरकार की नीतियां रही हैं। उत्तर प्रदेश में मंडी शुल्क प्रारंभ से है, लेकिन निकटवर्ती राज्यों में नहीं। यही वजह है कि दिल्ली एनसीआर व अन्य राज्यों के व्यापारियों से हम मुकाबला नहीं कर पाते। यही हाल रहा तो शेष दाल मिलें भी बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगी।
नकदी न होने से खरीददारी कम हुई
दी हाथरस मर्चेंट चैंबर के सचिव प्रदीप गोयल का कहना है कि आर्थिक मंदी के कारण इस समय निवेशक व कारोबारी डरे हुए हैं। भारत नकदीकरण का बाजार है। यहां पूरी तरह से बैंङ्क्षकग पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। हाथ में नकदी न होने के कारण लोगों की पर्चेङ्क्षजग पावर कम हुई है। इसका सीधा असर डिमांड पर पड़ा है और डिमांड न होने के कारण प्रोडक्शन घटा है। लघु उद्योगों के लिए रियात जरूरी है।