Move to Jagran APP

धर्म और आस्था को जोड़ती जीटी रोड को शेरशाह सूरी ने बनवाया था Aligarh News

रास्ते कभी बोलते नहीं पर तमाम कहानियां उनसे जुड़ी होती हैं। देश की सबसे बड़ी सड़कों में शुमार ग्रांड ट्रंक रोड (जीटी रोड) की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। दिल्ली से होते हुए यह कोलकता की ओर बढ़ जाती है। कभी यह जिले की जीवन रेखा हुआ करती थी।

By Sandeep kumar SaxenaEdited By: Published: Sun, 24 Jan 2021 11:40 AM (IST)Updated: Sun, 24 Jan 2021 11:40 AM (IST)
रास्ते कभी बोलते नहीं, पर तमाम कहानियां उनसे जुड़ी होती हैं।

अलीगढ़, जेएनएन। रास्ते कभी बोलते नहीं, पर तमाम कहानियां उनसे जुड़ी होती हैं। देश की सबसे बड़ी सड़कों में शुमार ग्रांड ट्रंक रोड (जीटी रोड) की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। दिल्ली से होते हुए यह कोलकता की ओर बढ़ जाती है। कभी यह जिले की जीवन रेखा हुआ करती थी। मगर, शहर के विस्तार ने सड़क को सिकोड़ दिया। फिर, इसे बाईपास से बाहर की ओर निकाल दिया गया। हालांकि, आज भी शहर से होकर यह सड़क निकल रही है, जिसपर तमाम ऐसे स्थल हैं, जो विरासत और धार्मिक महत्व की कहानी कहते हैं। यह सड़क खेरेश्वरधाम और अचल सरोवर से भी होकर निकलती है। इन धार्मिक स्थलों पर महाशिवरात्रि में आस्था का सैलाब उमड़ता है। 

loksabha election banner

शेरशाह सूरी ने जीटी रोड को 16वीं शताब्दी में बनवाया था। शेरशाह सूरी दक्षिण भारत को उत्तर भारत से जोड़ना चाह रहे थे। इसलिए इस विशाल रोड का निर्माण कराया था। यह गंगा किनारे बसे नगरों को जोड़ती है। अलीगढ़ के एक छोर से गंगा गुजर रही है। हालांकि, यहां पर यह सड़क गंगा से करीब 50 किमी दूर है। कानुपर में यह सड़क गंगा के करीब से होकर भी गुजरती है। 

ग्रांड ट्रंक रोड को प्राचीन काल में उत्तरापथ कहा जाता था। यह पंजाब से होते हुए खैबर दर्रा पार करती हुई अफगानिस्तान के केंद्र तक जाती थी। मौर्यकाल में बौद्ध धर्म का प्रसार इसी उत्तरापथ के माध्यम से गंगाधर तक हुआ। हालांकि, इस मार्ग पर सदियों से लोग निकलते रहे हैं, मगर शेरशाह सूरी ने 16वीं शताब्दी में इसे पक्का कराया था। 

दूरी नापने के लिए लगे थे पत्थर 

जीटी रोड की दूरी नापने की भी व्यवस्था थी। इसलिए लिए बकायदा पत्थर लगाए गए थे। छायादार पेड़, राहगीरों के लिए सराय, कुआं आदि भी बनवाए गए थे, जिससे लोगों को जीटी रोड से निकलने में कोई दिक्कत ना हो। 

शहर में सिमट गई 

जीटी रोड को एनएच 91के नाम से भी जाना जाता है। 2014 सड़क को फोरलेन की शुरुआत हुई। इसके गाजियाबाद-अलीगढ़ हाईवे के नाम से यह जाना जाने लगा। महरावल के पास से आकर यह सड़क शहर में दो लेन हो गई। बाहर से बाईपास निकाल दिया गया। शहर के अंदर सड़क का रख-रखाव कभी ठीक नहीं रहा। जीटी रोड पर बड़े-बड़े गड्ढों के चलते इससे निकलना मुश्किल होता है। सारसौल पर स्थिति बहुत विकराल है। फुटपाथ तक ठीक से नहीं बनाया गया है। रसलगंज, दुबे पड़ाव और नाैरंगाबाद से पनेठी होते हुए यह फिर बाईपास में जुड़ जाती है। 

धर्म और आस्था को जोड़ती है सड़क 

हालांकि, जीटी रोड धर्म और आस्था को जोड़ने में प्रमुख भूमिका निभाती है। इस मार्ग पर गभाना के पास प्रसिद्ध भुमियां बाबा का आश्रम है। यहां बाबा भोलेनाथ शिव के रुप में विराजमान है। आस्था का केंद्र होने के चलते यहां दिल्ली और हरियाणा से भी श्रद्धालु आते हैं। महरावल से आगे बाईपास पर प्रसिद्ध खेरेश्वरधाम मंदिर है, जहां भगवान श्रीकृष्ण के पांव पड़ चुके हैं। शहर के अंदर प्रसिद्ध अचल सराेवर है, जो जीटी रोड के एकदम करीब है। यह सरोवर महाभारत काल से जुड़ी हुई है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.