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एएमयू के पूर्व डीन प्रो.शब्बीर बोले, अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया 'संपूर्ण न्याय'Aligarh News

अयोध्या विवाद पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला संपूर्ण न्याय है। हिंदू-मुस्लिम के बीच आपसी सौहार्द कायम रखने के लिए कोर्ट ने संविधान में अनुच्छेद 142 के तहत खास शक्ति का प्रयोग किया

By Sandeep SaxenaEdited By: Published: Wed, 27 Nov 2019 09:26 AM (IST)Updated: Wed, 27 Nov 2019 12:40 PM (IST)
एएमयू के पूर्व डीन प्रो.शब्बीर बोले, अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया 'संपूर्ण न्याय'Aligarh News

अलीगढ़ (जेएनएन)। लंबे इंतजार के बाद अयोध्या विवाद पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला 'संपूर्ण न्याय' है। हिंदू-मुस्लिम के बीच आपसी सौहार्द कायम रखने के लिए कोर्ट ने संविधान में अनुच्छेद 142 के तहत खास शक्ति का प्रयोग किया है, जो वाकई रचनात्मक कदम है। ये राय दैनिक जागरण के कार्यालय में आयोजिक अकादमिक बैठक में एएमयू के विधि विभाग के पूर्व डीन प्रो. मोहम्मद शब्बीर ने रखी। विषय था 'अयोध्या फैसले का राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक असर'।

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1045 पन्नों का है फैसला

प्रो. शब्बीर ने कहा कि वर्ष 1528 में मुगल बादशाह बाबर एक सप्ताह अयोध्या में रहा। तभी बाबरी मस्जिद बनाई गई। इसके बाद से 1949 तक मस्जिद मुसलमानों के कब्जे में रही। फिर यहां राम मूर्ति रखी गई, जिसके बाद से विवाद बढ़ा। कोर्ट ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में 1992 के बाबरी विध्वंस समेत हर तथ्य व साक्ष्य का जिक्र किया है। इसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट सबसे अहम है, जिसमें दावा किया गया है कि जिन पिलरों पर बाबरी मस्जिद बनाई गई, वे मंदिर के हैं। इन पिलरों को देखकर लगता है कि यहां पहले शानदार मंदिर रहा होगा। इसके अलावा वहां वाल्मीकि रामायण, धार्मिक मूर्तियों भी मंदिर होने के सुबूत हैं। इसी आधार पर कोर्ट ने के आधार पर कोर्ट ने 2.7 एकड़ की विवादित जमीन राम मंदिर के लिए दी है। 2.7 एकड़ जमीन पर राम मंदिर बनाने का रास्ता साफ कर दिया।

मुस्लिम पक्ष के लिए प्रतिपूरक न्याय

प्रो. ने कहा कि जब वहां मस्जिद का कोई साक्ष्य नहीं है तो संपूर्ण न्याय का फैसला स्पष्ट है। वहीं मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही कहीं और पांच एकड़ उपयुक्त व प्रमुख जमीन देने का फैसला प्रतिपूरक न्याय है। इसमें मुस्लिमों की भावनाओं को ध्यान में रखा गया है।

विदेशी सैलानियों ने लिखी किताबें

प्रो. शब्बीर ने बताया कि अयोध्या की यात्रा करने का बाद कुछ विदेशी सैलानियों ने किताबें भी लिखी हैं। टाइफनथैलर, मॉन्टगोमरी मार्टिन व विलियम फिन्च ने लिखा है कि विवादित जमीन पर पहले पूजा होती रही है। वहां हिंदुओं की आस्था व विश्वास है। वहीं अयोध्या और फैजाबाद के ऑफिशियन कमिश्नर एंड सेटलमेंट पी कारनेगी ने लिखा है कि हिंदुओं के लिए अयोध्या उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी मुस्लिमों के लिए मक्का। कोर्ट ने इन सभी तथ्यों का जिक्र किया है।

परिवर्तन के इतिहास का दिया तर्क

प्रो. शब्बीर ने कहा कि परिवर्तन का इतिहास कहता है कि जिस जगह पर जैसे लोग जुड़ते जाते हैं, वहां उसे उसी रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है। ऐसा ही यहां हुआ। मंदिर के बाद मुस्लिम आए, मस्जिद बनी और नमाज पढऩा शुरू हुआ। प्रो. ने अयोध्या के अलावा अन्य ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण के लिए 'प्लेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट 1991Ó का जिक्र किया, जिसके तहत वर्ष 1947 के बाद बनाए गए सभी स्थलों को सुरक्षा प्रदान की जाएगी। उनसे किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जाएगी।

भाजपा को होगा लाभ

राजनीतिक नजरिए से फैसला के बाद भाजपा विजयी महसूस कर रही है। इससे जरूर चुनाव में भुनाने की कोशिश की जाएगी, जिसका लाभ भी होगा। सांस्कृतिक रूप से ङ्क्षहदुत्व की भावना को प्रोत्साहन मिला है।

मस्जिद, विश्वविद्यालय व एकेडमी बने

प्रो. ने कहा कि अयोध्या में मुस्लिमों दी गई पांच एकड़ जमीन पर एक भव्य मस्जिद तो बननी ही चाहिए। साथ ही एक विश्वविद्यालय बने। एक एकेडमी भी बनाई जाए, जिसमें विद्वानों को बिठाया जाए, जो मुस्लिमों की सामाजिक व आर्थिक रूप से आ रही समस्याओं को दूर करें।

1. क्या शाहबानो प्रकरण की तरह पलटा जा सकता है फैसला?

- फैसले से पहले सभी ने स्वीकार करने की बात कही थी, लेकिन बाद में पुनर्विचार का कोई मतलब नहीं है। जब 1949 के बाद से विवादित जमीन पर नमाज ही नहीं पढ़ी गई तो अब किस बात का मातम।

2. सामाजिक रूप से फैसले का क्या असर पड़ा?

मानें या ना मानें, लेकिन फैसले का हर व्यक्ति पर असर पड़ा है। ङ्क्षहदू वर्ग खुश हैं। वहीं मुस्लिमों में मायूसी है।


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