एएमयू के पूर्व रजिस्ट्रार बोले, AMU छात्रसंघ में राजनीतिक पार्टियों का दखल ठीक नहीं Aligarh News
छात्रसंघ चुनाव में छात्रों का सहयोग व सहभागिता बहुत जरूरी है ये ऐसा प्लेटफार्म होता है जिससे छात्र अपनी बात को प्रशासनिक स्तर पर अपने चुने हुए प्रतिनिधि के जरिए पहुंचाता है।
अलीगढ़ [जेएनएन]। छात्रसंघ चुनाव में छात्रों का सहयोग व सहभागिता बहुत जरूरी है, क्योंकि ये ऐसा प्लेटफार्म होता है जिससे छात्र अपनी बात को प्रशासनिक स्तर पर अपने चुने हुए प्रतिनिधि के जरिए पहुंचाता है। लेकिन इसमें राजनीतिक पार्टियों का दखल ठीक नहीं, इससे छात्र खुद के मुद्दों से भटककर राजनीति में जाने का सपना संजोने लगता है। इससे उसकी पढ़ाई बाधित होती है और समय भी। छात्रों को नकारात्मकता से बचना चाहिए। 80 के दशक में छात्र राजनीति में ङ्क्षहसा की कोई जगह नहीं होती थी, लेकिन बदलते समय के साथ जैसे-जैसे धन, बल का प्रभाव बढ़ता गया इसका स्वरूप ही बदलता चला गया और आज ये स्थिति है कि बिना ङ्क्षहसा के कोई छात्रसंघ चुनाव संपन्न ही नहीं हो पा रहा। ये कहना है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार प्रोफेसर जावेद अख्तर का।
सभी की भागीदारी जरूरी
जिस तरह से कक्षा में एक मानीटर नियुक्त किया जाता है ताकि वह सभी छात्रों को एकजुट बनाए रखे और उनकी समस्या को एकेडमिक स्तर पर ले जाए और उनका समाधान कराए, उसी तरह छात्रसंघ चुनाव भी जरूरी है ताकि छात्रों की बात एकेडमिक स्तर पर पहुंचे और उनका समाधान हो, लेकिन जब छात्र पढ़ाई से इतर राजनीति पर ही ध्यान केंद्रित करने लगता है तो उसकी पढ़ाई बाधित होती है और वह अपने उद्देश्य से भटकने लगता है।
शिक्षकों को आगे आना होगा
छात्रों के बेवजह धरना-प्रदर्शन होने से पढ़ाई बाधित होती है, ऐसे में शिक्षकों को चाहिए कि अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए छात्रों के बीच जाकर उन्हें समझाएं ताकि वो गुमराह होने से बचें। प्रबंधन को भी चाहिए कि परिसर में हो रहे धरना-प्रदर्शन में सिर्फ कॉलेज के ही छात्र रहें बाहरियों को उनमें शामिल न होने दें। इससे माहौल बिगड़ता है। परिसर में आने वाले व्यक्ति को जांच के बाद ही प्रवेश मिले।
देश विरोधी नारे लगना गलत
विश्वविद्यालय परिसर में यदि प्रदर्शन के दौरान देश विरोधी नारे लगते हैं तो बहुत ही गलत है। इससे माहौल खराब होता है। परिसर में किसी भी ऐसे शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों को कष्ट पहुंचे। हमारे लिए देश सर्वोपरि है। प्रोफेसर अख्तर के अनुसार पहले ईश्वर को मानना चाहिए, फिर उसके बताए रास्तों को और फिर नियमों को मानना चाहिए। जो बात खुद को खराब लगती है वो हम दूसरों के लिए कैसे प्रयोग कर सकते हैं। आज छात्रों ने अपने-अपने विंग बना लिए हैं और उन्हीं के आधार पर चुनाव लड़े जा रहे हैं जिससे छात्रों में भेद भाव की भावना पनप रही है।
धर्म और राजनीति अलग नहीं
धर्म और राजनीति अलग नहीं है, आपको देखना होगा कि आपके आसपास जो हो रहा है वह सही या गलत। अगर आपके घर के बगल कोई भूखा सो जाता है तो ऊपर वाला ये नहीं पूछेगा कि वह किस कौम का था, वह तो ये पूछेगा कि वह भूखा क्यों सोया। कोई भी धर्म मारपीट व ङ्क्षहसा की इजाजत नहीं देता।
राजनीति से दूर रहा, लेकिन वोट जरूर दिया
बका ल प्रोफेसर अख्तर उन्होंने 1976 में उन्होंने एएमयू में एक छात्र के रूप में प्रवेश लिया था और छात्र राजनीति से दूर रहकर पढ़ाई पर ध्यान देता रहा, लेकिन छात्रसंघ के चुनाव में वोट जरूर देता था। उस दौरान मैंने 1981 में एमबीए किया। उसके बाद 1984 में यहीं शिक्षक के रूप में नियुक्त हुआ और लगभग 35 साल यहां रहा।