अलीगढ़, जेएनएन। गुरुवार को चांद का दीदार होते ही घरों में
अलम
सजना शुरू हो गए। कोरोना संक्रमण को देखते हुए
घरो
में ही
मजलिसें
हुईं। 1400 साल में यह पहली बार हुआ है कि
इमामबाड़ों
में मजलिस के लिए
भीड़
एकत्रित
नहींं
हुई।
इमामबाड़ों
में पांच लोगों ने ही मजलिस की। एएमयू के
अनजुमन
तंजीम उल अजा के जनरल सेक्रेटरी सैयद नादिर अब्बास नकवी ने बताया कि गुरुवार को जांच का दीदार होने पर अब शुक्रवार से मुहर्रम का त्योहार बनाया जाएगा। मुहर्रम इस्लामिक वर्ष का पहला महीना होता है। इस महीने की
10वीं
तारीख को यह पर्व मनाया जाता है। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में मुहर्रम का त्योहार मनाया जाता है। हर मुस्लिम को अब मुहर्रम का इंतजार रहता है। ये गम का महीना होता है। चांद का दीदार होने पर बहुत से औरतें तो सुहाग की
चूड़ियां
तक
तोड़
देती हैं। यह पहली बार है कि
इमामबाड़ों
में
भीड़
ने मजलिस नहीं की। कोरोना को देखते हुए प्रदेश सरकार ने जो दिशा निर्देश जारी किए हैं उसी का पालन किया जा रहा है। अलीगढ़ में शिया समुदाय की 25 से 30 हजार की आबादी है। हर साल बाहर के वक्ता बुलाए जाते थे इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। सभी ने अपने घरों पर काले झंडे लगा लिए हैं। घरों
मे
अलम
भी सजा लिए हैं। मुहर्रम शिया मुस्लिम समुदाय के लोग गम के रूप में मनाते हैं। इस दिन इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत को याद किया जाता है। मुहर्रम पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के 72 साथियों के शहादत की याद में मनाया जाता है।
यजीद
सबसे
बड़ा
आतंकवादी था इस लिए इस महीने को आतंकवाद विरोधी महीने के रूप में भी मनाया जाता है। एएमयू के धर्मशास्त्र संकाय के सहायक प्रोफेसर
रेहात
अख्तर ने बताया कि कोरोना संकट में हम मुहर्रम से हम ये पैगाम दें जिस तरह इमाम हुसैन ने कुर्बानी देकर इंसानियत के
झंडै
को बुलंद किया था। आज भी उनके संदेश को इस बीमारी में अमल करने की जरूरत है। ताकि यह बीमारी और इंसानों तक न पहुंचे। इसके लिए शारीरिक दूरी का पालन करना बहुत जरूरी है।