लोक कलाएं, परंपरा को बनाए हुए हैं जीवंत, जानिए पूरा मामला Aligarh news,
तीज-त्योहारों पर आज भी लोक खूब दिखती हैं। यह लोक कलाएं अपनी भारतीय परंपरा को जीवंत बनाए हुए हैं। इससे गीत-अभिनय का पता चलता है साथ ही संस्कृति के बारे में जानने का मौका मिलता है। दीपावली में इस समय तमाम लोग ढोल-नगाड़े बजाते हुए दिख जाते हैं।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। तीज-त्योहारों पर आज भी लोक खूब दिखती हैं। यह लोक कलाएं अपनी भारतीय परंपरा को जीवंत बनाए हुए हैं। इससे गीत-अभिनय का पता चलता है साथ ही संस्कृति के बारे में जानने का मौका मिलता है। दीपावली में इस समय तमाम लोग ढोल-नगाड़े बजाते हुए दिख जाते हैं। वह त्योहार पर दुकानदारों के सामने वाद्य यंत्र बजाकर मांगने का काम करते हैं । दुकानदार भी उन्हें नाराज नहीं करते हैं। कुछ न कुछ देकर उन्हें विदा करते हैं।
दुकानों पर खूब बज रहे ढोल नगाड़े
भारतीय संस्कृति में तीज-त्योहारों का अपना अलग महत्व है। हर त्योहार पर हमें कोई न कोई कलाएं और गीत सुनाई दे जाएंगे। दीपावली पर दुकानों पर खूब ढोल-नगाड़े बजाए जा रहे हैं। ये लोग शहर के विभिन्न क्षेत्रों के रहते हैं, जो अपनी परंपराओं पर रचे-बसे रहते हैं। इन्हें पूरे साल त्योहार का इंतजार रहता है, त्योहार आते ही वह अपने ढोल-नगाड़े निकाल लेते हैं और दुकान व घरों आदि के सामने बजाने लगते हैं। तमाम ऐसे कलाकार हैं, जो गीत सुनाकर लोगों का मनाेरंजन करते हैं। गीत के माध्यम से तमाम कथाएं शुरू होती हैं। अलीगढ़ में कलाकार दीपावली पर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कथा का वर्णन करते हैं, तमाम कलाकार ऐसे हैं, जो प्रभु के जन्म से लेकर लंका विजय पर्व तक गीत की रचना करते हैं। उन्हें बड़े भाव से सुनाते हैं। लोक भाषा में यह गीत होते हैं, जिन्हें समझने में लोगों को आसानी होती है। इसी प्रकार से गांवों में भी ढोल-नगाड़े के साथ कलाकार लोगों का मनोरंजन करते हैं।
आपसी सौहार्द्र के साथ मनाएं पर्व
समाजसेवी डा. ज्ञानेंद्र मिश्रा का कहना है कि भारतीय संस्कृति में हर तीज-त्योहार पर परंपराएं हैं, जो अपनी संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं। दरअसल, हमारे यहां यह परंपरा है कि कोई भी त्योहार आप मनाते हैं तो वह एक साथ मिलकर मनाएं, लोगों के बीच में खुशियां बांटे, आपसी प्रेम और सौहार्द बनाए रखें। इसलिए त्योहार पर ऐसे कलाकार लोगों के बीच में जाते हैं और अपना परिचय देकर मनोरंजन करते हैं। डा. मिश्रा कहते हैं कि ऐसे लोगों के पास आय का कोई साधन उस समय नहीं होता है, ऐसे में दुकानदार और घरों के लोग कुछ न कुछ देते हैं तो खुशी दोगुनी हो जाती है। गांव में तो लोग अनाज आदि देते हैं, क्योंकि वहां पर पैसे आदि नहीं हुआ करते हैं। शहर में लोग पैसे के साथ ही कपड़े, बर्तन, मिठाई आदि भी देते हैं। समाजसेवी नीलिमा पाठक का कहना है कि त्योहार की यह पुरानी परंपरा जीवंत बनी रहनी चाहिए। इसमें इतना माधुर्य है कि जिसे प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है। आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी परंपरा को न भूले यह बड़ी चुनौती है। गांवों में यह लोग आज भी परंपरा को बनाए हुए हैं शहरों में वीआईपी जगहों पर ऐसी परंपरा कम दिखती है, इसे शहर में भी बनाए रखने की जरूरत है।