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पर्यावरण और त्‍योहार साथ-साथ, गोबर के गणेश-लक्ष्मी, दीया तो दिल छू जाएगा Aligarh news

हुनर कभी भी सुविधा और साधन का मोहताज नहीं होता है वह मुश्किलों में भी अपना रास्ता निकाल लेता है। शेखा गांव के संतोष सिंह भी उनमें से एक हैं। इस बार दीपावली पर उन्होंने देसी गाय से गणेश-लक्ष्मी दीया स्वास्तिक आदि बनाया है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Thu, 28 Oct 2021 05:40 AM (IST)Updated: Thu, 28 Oct 2021 06:44 AM (IST)
गोबर से बने लक्ष्‍मी गणेश पर्यावरण का दे रहे संदेश।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। हुनर कभी भी सुविधा और साधन का मोहताज नहीं होता है, वह मुश्किलों में भी अपना रास्ता निकाल लेता है। शेखा गांव के संतोष सिंह भी उनमें से एक हैं। इस बार दीपावली पर उन्होंने देसी गाय से गणेश-लक्ष्मी, दीया, स्वास्तिक आदि बनाया है। यह देखने में इतने आकर्षक हैं कि मूर्तियों को भी फेल कर देते हैं। इनकी बनावट और रंग हर किसी को आकर्षित करता है। खास बात है कि इनसे पर्यावरण को एकदम नुकसान नहीं है। गोबर के बनी मूर्ति और दीपक का प्रयोग आप बाद में खेत में भी कर सकते हैं, क्योंकि इसमें केमिकल का प्रयोग नहीं किया जा रहा है, रंग भी इको फ्रैंडली भरे जा रहे हैं।  

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पर्यावरण प्रेमी संतोष सिंह समय समय पर चलाते हैं अभियान

पनेठी क्षेत्र के गांव शेखा निवासी संतोष सिंह पर्यावरण प्रेमी हैं। वह पर्यावरण की सुरक्षा के लिए समय-समय पर अभियान चलाते रहते हैं। पर्यावरण को देखते हुए उन्होंने देसी गाय के गोबर से गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां बनाने का निर्णय लिया। तमाम लोगों ने उन्हें रोकना चाहा कि गोबर से बनी मूर्तियों को कौन खरीदेगा, मगर दृढ़निश्चियी संतोष सिंह ने लोगों की परवाह नहीं की। उन्होंने अपनी गोशाला से देसी गाय के गोबर को एकत्र कराया और निर्माण कार्य शुरू करा दिया।

 

रंग आए तो खिले चेहरे

संतोष सिंह बताते हैं कि महिलाओं ने जब गोबर से गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां बनाकर उसपर रंग चढ़ाया तो लोग देखते ही रह गए। तमाम लोग पहचान ही नहीं पा रहे थे कि वास्तव में यह गोबर की बनी हुई हैं। दीया तो दिल को छू जा रहा है। स्वास्तिक, शुभ-लाभ और ओम के प्रतीक तो देखते ही बनते हैं। इन पर जब रंग चढ़ाया जाता है तो कोई पहचान ही नहीं पाता है कि यह गोबर के बने हुए हैं। जिन लोगों ने पहले मना किया था वही लोग अब पीठ थपथपा रहे हैं। लोग कह रहे हैं कि बहुत अच्छा काम कर रहे हो कम से कम पर्यावरण को नुकसान तो नहीं होगा।

 

प्रकृति के अनुकूल है

संतोष सिंह बताते हैं कि जितनी भी चीजें बन रही हैं वह सब प्रकृति के अनुकूल हैं। दीपावली पर इन सब चीजों का प्रयोग करने के बाद इन्हें खाद के रुप में भी प्रयोग किया जा सकता है। मूर्ति, दीपक इनपर केमिकल का तनिक भी प्रयोग नहीं हो रहा है। रंग भी इको फ्रैंडली भरे जा रहे हैं। इससे जीव-जंतु और मिट्टी किसी को नुकसान नहीं होता है। गोबर में आयुर्वेदिक चीजें मिलाई जाती हैं, जिससे अच्छी सुगंध भी आती है।

 

महिलाओं को मिल रहा है रोजगार

इससे गांव में महिलाओं को भी रोजगार मिल रहा है। फिलहाल, गोबर से मूर्ति और दीपक बनाने के कार्य में 10 महिलाएं लगी हुई हैं। इस समय आगरा, गाजियाबाद और दिल्ली में लगने वाली दीपावली प्रदर्शनी में इनकी खूब डिमांड आने लगी है। संतोष सिंह बताते हैं कि गांव में महिलाओं के रोजगार का कोई साधन नहीं है, इससे कम से कम उन्हें काम तो मिल रहा है। पनेठी के पास शेखा गांव में तो लोग गोबर की मूर्तिंयां दीया खरीद सकते हैं, शहर में गांधीपार्क थाने के निकट प्रभात नगर में यूनिक पब्लिक स्कूल के निकट भी दुकान से खरीदारी कर सकते हैं।


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