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माटी के 'जख्मों' पर नहीं लगता 'मरहम', जानिए मामलाAligarh news

पैदावार बढ़ाने की लालसा में किसान मिट्टी की क्षीण हो रही उर्वरा शक्ति की ओर ध्यान नहीं दे रहे। यही वजह है कि अलीगढ़ मंडल की कृषि भूमि में 0.20 से 0.30 फीसद ही जीवांश कार्बन हैं। जबकि एक फीसद जीवांश कार्बन होने चाहिए।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Tue, 20 Jul 2021 10:54 AM (IST)Updated: Tue, 20 Jul 2021 10:54 AM (IST)
माटी के 'जख्मों' पर नहीं लगता 'मरहम', जानिए मामलाAligarh news
पैदावार बढ़ाने की लालसा में किसान मिट्टी की क्षीण हो रही उर्वरा शक्ति की ओर ध्यान नहीं दे रहे।

लोकेश शर्मा, अलीगढ़ । पैदावार बढ़ाने की लालसा में किसान मिट्टी की क्षीण हो रही उर्वरा शक्ति की ओर ध्यान नहीं दे रहे। यही वजह है कि अलीगढ़ मंडल की कृषि भूमि में 0.20 से 0.30 फीसद ही जीवांश कार्बन हैं। जबकि, एक फीसद जीवांश कार्बन होने चाहिए। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि रसायनिक खादों का अत्याधिक प्रयोग और ढैंचा (हरी खाद) की खेती न होने से ये स्थिति उत्पन्न हुई है। सर्वे में पता चला है कि एक हजार में एक किसान ही ढैंचा की खेती करता है। जबकि, ढैंचा से मिट्टी को सभी जरूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं। बंजर भूमि को ऊपजाऊ बनाने में भी यह उपयोगी है। भूमि सुधार निगम ने जनपद में तीन हजार हेक्टेयर से अधिक बंजर भूमि ढैंचा के जरिए ऊपजाऊ बनाई है।

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50 फीसद किसान ढैंचा की खेती करते थे

कृषि उप निदेशक (शोध) डा. वीके सचान बताते हैं कि जनपद में 40 से 50 फीसद किसान ढैंचा की खेती करते थे। अब इनकी संख्या 0.1 फीसद ही रह गई है। पहले किसान गेहूं की फसल काटने के बाद खेतों में ढैंचा की बोआई करते थे। तीन माह बाद ढैंचा की फसल को खेतों में ही जोत दिया जाता। इन्हीं खेतों में धान की राेपाई होती थी। ढैंचा की हरी खाद धान के लिए रामबाण का काम करती। लेकिन, अब कुछ ही किसान ऐसा कर रहे हैं। जबकि, ढैंचा पैदावार बढ़ाने के साथ लागत भी कम करता है। ढैंचा का कार्बनिक अम्ल ऊसर, लवणीय और क्षारीय भूमि को सुधार कर उपजाऊ बनाता है। ढैंचा के प्रयोग के बाद रासायनिक खाद डालने की आवश्यकता नहीं होती। इससे किसानों की काफी बचत होती है।

सूखे से निपटने की क्षमता

कृषि भूमि को ढैंचा न सिर्फ पोषक तत्व की आपूर्ति करता है, बल्कि खेतों में नमी भी बरकरार रखता है। डा. सचान बताते हैं कि ढैंचा की जड़े मिट्टी में वायु का संचार और ह्यूमस की मात्रा भी बढ़ती है, जिससे मिट्टी में जलधारण की क्षमता का विकास होता है।

... मिट्टी को मिलते पोषक तत्व

एक एकड़ में ढैंचा की तैयार फसल की जोताई करने से 25 से 30 टन हरी खाद तैयार होती है। इससे 80 से 100 किलो नाइट्रोजन, 10 से 15 किलो फास्फोरस और आठ से 10 किलो पोटाश की आपूर्ति होती है। इससे रसायनिक उर्वरकों पर होने वाला खर्च काफी कम होता है।


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