कुत्ता काट ले तो बाबा-ओझा से न कराएं झाड़-फूंक, जा सकती है जान aligarh news
विशेषज्ञों की मानें तो जख्म भर जाने व अन्य कोई परेशानी न होने पर लोग समझते हैं कि वे ठीक हो गए।
विनोद भारती, अलीगढ़। यदि आपके किसी परिचित को कुत्ता काट गया है और वह अस्पताल न जाकर बाबा-ओझा से इलाज करा रहा है तो आप उसे रोकिए। बताइये कि यह तरीका ठीक नहीं है। इससे जान का संकट कम नहीं होता। चिकित्सक से ही इलाज सही तरीका है। अपना होने के नाते आपकी समझाने की भला जिम्मेदारी भी तो बनती है। हो सकता है वह आपकी बात मान ले और चिकित्सक के पास जाए। दरअसल, एेसे कई केस हैं, जो बाबा-ओझा के चक्कर में बिगड़ चुके हैं। जान तक गवां चुके हैं।
इसलिए न जाएं बाबा-ओझा के पास
आवारा व पालतू कुत्तों के काटने पर तमाम लोग अस्पताल जाने की बजाय बाबा-ओझा के पास पहुंचकर झाड़-फूंक कराते हैं या फिर घरेलू नुस्खे आजमाते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो जख्म भर जाने व अन्य कोई परेशानी न होने पर लोग समझते हैं कि वे ठीक हो गए। जबकि, ऐसा नहीं है। दरअसल, वे वायरस से संक्रमित हुए ही नहीं होते। वहीं, जो लोग संक्रमित होते हैं, झाड़-फूंक के चक्कर में बेहद डरावनी मौत मिलती है। ऐसे में कुत्ता ही नहीं, बंदर, बिल्ली आदि के काटने पर भी एंटी रेबीज वैक्सीन जरूर लगवाई जाए।
खतरनाक है रेबीज
किलकारी हॉस्पिटल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. विकास मेहरोत्रा बताते हैं कि रेबीज खतरनाक तो है ही, लोगों में इसके प्रति जानकारी का अभाव भी घातक साबित होता है। रेबीज केवल कुत्तों के काटने से ही नहीं, बल्कि इसका वायरस बंदर, बिल्ली, खरगोश, चूहे, चमगादड़ व अन्य जानवरों के काटने से भी लार के जरिए त्वचा में प्रवेश कर जाता है। इससे तंत्रिका तंत्र के जरिए सीधे ब्रेन पर असर करता है। झाड़-फूंक का इसका इलाज कुछ नहीं है। जानवर की लार से होने वाले रेबीज के संक्रमण नहीं रुक सकता।
एक माह में दिखने लगते हैं लक्षण
वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. एसपी सिंह का कहना है कि इस रोग के लक्षण एक माह या उसके बाद दिखने शुरू होते हैं। रेबीज के टीकाकरण में टीकों की एक श्रृंखला शामिल होती है। यह टीकाकरण अत्यधिक जरूरी है। यह एक लाइलाज बीमारी है और रोकथाम भी केवल एंटी रेबीज वैक्सीन से ही संभव है।
जानवर में रेबीज के लक्षण
- मुंह से लार टपकती रहती है।
- बेचैन रहता है।
- आखें लाल रहती हैं।
- लोगों को काटने दौड़ता है।
- सांस लेने में दिक्कत होती है।
- 10 दिन में मौत हो सकती है।
पीडि़त में रेबीज के लक्षण
हाइड्रोफोबिया (पानी से डरना) होना।
प्यास लगने के बाद भी पानी न पीना
गले से आवाज न निकलना
बात-बात पर भड़क जाना, ङ्क्षहसक होना
प्राथमिक उपचार
- जख्म को टोटी खोलकर साबुन से झाग बनाकर खूब धोएं।
- एंटी सेप्टिक क्लीन लगाएं
- रेबीज कुत्ते के काटने पर टांके न लगवाएं
- जल्द से जल्द एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाएं
चहेते को वैक्सीन
सरकारी अस्पतालों में कुत्ते-बंदर आदि काटे से पीडि़त मरीजों को जख्म से ज्यादा एंटी रेबीज वैक्सीन दर्द दे रही है। जिला अस्पताल में सर्वाधिक वैक्सीन लगाए जाने के बावजूद ग्र्रामीण क्षेत्र के तमाम मरीजों को लौटा दिया जाता है। दीनदयाल अस्पताल में बामुश्किल 50-60 मरीजों को ही वैक्सीन लगती है। ग्र्रामीण क्षेत्र में कहीं वैक्सीन उपलब्ध नहीं। मरीजों को 250-300 रुपये खर्च कर प्राइवेट वैक्सीन खरीदनी पड़ती है।