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बागवान बनकर भी नहीं मिल पाई छाया

प्रवीण तिवारी छर्रा भारतीय समाज में अधिकांशत अपने सानिध्य में मां बच्चों का पालन पोषण करती है वह अपनी संतान के हर सुख-दुख में भागीदार बनती है। जबकि पिता बागवान की तरह पूरे परिवार को अपनी छत्रछाया में रखकर उनका पालन पोषण करता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 12:33 AM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 12:33 AM (IST)
बागवान बनकर भी नहीं मिल पाई छाया
बागवान बनकर भी नहीं मिल पाई छाया

प्रवीण तिवारी, छर्रा : भारतीय समाज में अधिकांशत: अपने सानिध्य में मां बच्चों का पालन पोषण करती है, वह अपनी संतान के हर सुख-दुख में भागीदार बनती है। जबकि पिता बागवान की तरह पूरे परिवार को अपनी छत्रछाया में रखकर उनका पालन पोषण करता है। बच्चों को काबिल बनाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देता है। उन्हें मानसिक रूप से भी इतना मजबूत बनाना चाहता है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी वह प्रसन्न रहकर जीवन का आनंद उठा सके। बच्चों के उज्जवल व सुखी भविष्य के सिवाय उसे कुछ दिखाई नहीं देता है। वह इसी ख्वाहिश में रहता है कि बेटा बड़ा होकर उसके बुढ़ापे की मजबूत लाठी बनेगा और सहारा देगा, लेकिन अफसोस, ऐसे तमाम बरगद रूपी बुजुर्ग आज छांव को तरस रहे हैं। अपनी ही औलाद द्वारा दुत्कारने पर या तो दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं या किसी वृद्धाश्रम में आसरा पाकर जीवन काटने को मजबूर हैं। कस्बा छर्रा स्थित असर्फी ग्रामोद्योग संस्थान पर संचालित आवासीय वृद्धाश्रम पर अपनी अलग दुनिया बसाने वाले ऐसे ही कुछ बुजुर्गों से फादर्स डे पर जब उन्हें टटोला तो उनकी आंखें भर आई। बच्चे मेरी अंगुली थामे, धीरे धीरे चलते थे, फिर वो आगे दौड़ गए, मैं तन्हा पीछे छूट गया। वर्तमान आधुनिक समय में बच्चों की पूर्णतया बदली हुई जीवनशैली को देखकर बोझिल हो चुके बुजुर्ग जब अपने अतीत में झांकते हैं तो उन्हें अपना त्याग व समर्पण नीरस लगने लगता है।

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अतरौली तहसील के ग्राम भमसोई निवासी दौलीराम के तीन बेटा व एक बेटी है। बताते हैं कि जीवन भर दर्जी का काम करके बच्चों का पालन पोषण किया। पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाया। दिन रात लोगों के कपड़े सिलते हुए कड़ी मेहनत करके शादी ब्याह किए। पांच साल पूर्व जब पत्नी का निधन हो गया तो बच्चों को बोझ लगने लगा। एक दिन दुत्कारते हुए घर से निकाल दिया। उसके बाद काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। किसी तरह वृद्धाश्रम में पनाह मिल गई। गाजियाबाद के चमन विहार कालोनी निवासी नजीर अहमद को कुरेदा तो उनकी आंखें डबडबा आई। बताया कि शुरू में ईंट भट्ठा पर काम करके तीन बेटों का पालन पोषण किया। गुजारा नहीं चला तो काम छोड़कर हलवाई का काम किया। बेटों को पढ़ाया लिखाया, कामयाब बनाकर उनकी शादी की। इसी में उनका सारा जीवन चला गया। करीब सात साल पहले पत्नी शकीला बेगम फालिज मार गई तो काफी इलाज कराया, जो जमा पूंजी थी सब इलाज में खर्च हो गई। उसके बाद बच्चों ने घर से निकाल दिया। बीमार पत्नी को लेकर घूमते रहे। काफी दुखी हो गए तो वृद्धाश्रम आ गए। यहां पर दंपती को सुकून है। ग्राम मदापुर निवासी इंद्रजीत सिंह बताते हैं कि राजमिस्त्री का काम करते हुए तीन बेटों सहित परिवार का पालन पोषण किया। बच्चों को पढ़ाया लिखाया, शादी ब्याह किए। फिर एक दिन हादसे में उनका पैर खराब हो गया। काम करने में असमर्थ हुए तो बच्चों को बोझिल लगने लगे तो किसी की वृद्धाश्रम पहुंच गए। पीड़ा यही है कि आज उनकी किसी को परवाह नहीं है। वृद्धाश्रम संचालक एवं संस्था सचिव असर्फी लाल बताते हैं कि बुजुर्गों के जीवन में औलाद की कमी तो पूरी नहीं कर सकते, मगर आश्रम का पूरा स्टाफ उन्हें हर सुविधा देने का प्रयास करता है। समाज कल्याण विभाग द्वारा आश्रम पर 150 वृद्धों के रहने की व्यवस्था है। वर्तमान में 90 रह रहे हैं। उनके लिए सभी सुविधाएं विभाग द्वारा प्रदान कराई जाती हैं।


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