धर्म और शिक्षा की नगरी ने नाम दिया अचल बाजार, ये है खासियत Aligarh News
अमूमन पुराने बाजारों की पहचान प्रसिद्ध दुकानों से हुआ करती थी। कुछ एक दुकान पर धोती-कुर्ता और ऊपर से सदरी डाले टोपी लगाए सेठजी बैठे रहा करते थे। सेठ जी की टोपी मानों उनकी साख हुआ करती थी।
अलीगढ़, राजनारायण सिंह। अमूमन पुराने बाजारों की पहचान प्रसिद्ध दुकानों से हुआ करती थी। कुछ एक दुकान पर धोती-कुर्ता और ऊपर से सदरी डाले टोपी लगाए सेठजी बैठे रहा करते थे। सेठ जी की टोपी मानों उनकी साख हुआ करती थी। उम्र के साथ सेठजी की प्रसिद्धि भी बढ़ती रहती थी। ग्राहक परिवार के रुप में हुआ करता था। वहीं, खाने-पीने की चीजों से भी बाजार की पहचान हुआ करती थी।
शहर का अचल बाजार है अनूठा
शहर का अचल बाजार इन सबसे अनूठा है। यह प्रसिद्ध दुकान और खाने-पीने की चीजों से नहीं जाना जाता है। बल्कि आस्था के केंद्र बिंदु के रुप में प्रसिद्ध है अचल बाजार। दरअसल, बाजार के चारों ओर प्राचीन मंदिर बने हुए हैं। अचल सरोवर की ही कहानी प्राचीन परंपरा से जुड़ी हुई है। इसलिए बाजार में आने वाले हर ग्राहक का सिर श्रद्धा से झुक जाया करता है। हालांकि, यह बाजार स्टेशनरी के लिए जाना जाता है। साथ ही खोवा मंडी के रुप में भी प्रसिद्ध है। अलीगढ़ की सबसे बड़ी खोवा मंडी यहीं लगती है। आर्यसमाज मंदिर के पास से प्रमुख रुप से काॅपी-किताबों की दुकानें हैं। पूरे शहर के लोग यहीं से स्टेशनरी खरीदने आते हैं। धार्मिक पुस्तकें और हवन-पूजन की सामग्री भी यहीं मिलती है। इसलिए आस्था की चादर ओढ़े यह बाजार अथाह श्रद्धा भी देता है।
ये है पौराणिक कहानी
अचल बाजार की रोचक और पौराणिक कहानी है। बात द्वापरयुग की है। द्वापरयुग में विशाल सरोवर था। किवंदती है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के समय यहां पांडव के दोनों छोटे भाई नकुल और सहदेव आए थे। उन्होंने सरोवर में स्नान किया था। बगल में प्रसिद्ध अचलेश्वरधाम मंदिर भी है। मंदिर समिति के सचिव रहे अनिल बजाज कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के भी पांव पड़ चुके हैं। इसके बाद से ही यह धर्म की नगरी में परिवर्तित हो गया। अचल सरोवर के चारों ओर 100 से अधिक प्रसिद्ध मंदिर हैं। लोगों के आने का क्रम शुरू हुआ तो धीरे-धीरे यह बाजार के रुप में विकसित होता चला गया।
बढ़ता गया बाजार
आजादी के बाद अचल सरोवर के चारों ओर बस्तियां बढ़ती चली गईं। इसी के साथ लाेगों की जरूरतें बढ़ी और बाजार की आवश्यकता महसूस होने लगी। वहीं, मंदिर में दर्शन करने श्रद्धालुओं की संख्या भी आने लगी। जिसने अचल को बाजार का रुप दे दिया। आजादी से पहले यहां धार्मिक पुस्तकें और पूजन सामग्री बिका करती थीं। लोग सरोवर में स्नान करते और उसके बाद खरीदारी को निकल पड़ते। पूजन सामग्री, प्रसाद और फूल-माला की दुकानें भी इसीलिए खूब हैं।
स्टेशनरी बाजार के रुप में मिली ख्याति
अचल बाजार शिक्षा का मुख्य केंद्र भी है। यहां डीएस डिग्री कॉलेज, श्री वाष्र्णेय डिग्री कॉलेज, चंपा इंटर कॉलेज, हिंदू इंटर काॅलेज, पॉलीवाल इंटर कॉलेज, एचबी आदि इंटर कॉलेज हैं। डीएस डिग्री कॉलेज तो आजादी से पहले का है। छात्रों की अधिक संख्या होने के चलते यह धीरे-धीरे स्टेशनरी बाजार के रुप में यह परिवर्तित होता चला गया। बड़े-बडे प्रकाशकों ने यहां पर अपनी दुकानें खोल लीं। इसलिए हर समय यहां पर छात्र-छात्राओं का जमावड़ा लगा रहता है। पूरे शहर के लोग यहां स्टेशनरी खरीदने आते हैं।
ऐसे बनी खोवा मंडी
अचल बाजार खोवा मंडी के रुप में भी जाना जाता है। अचल सरोवर के आसपास मंदिर हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिरों में प्रसाद चढ़ाने आते थे। इससे प्रसाद की दुकानें खुल गईं। धीरे-धीरे लोगों ने खोवा की भी दुकानें खोलनी शुरू कर दी। प्रसाद बनाने वाले दुकानदारों को भी सुविधा होने लगी। उन्हें खोवा लेने के लिए दूर नहीं जाना पड़ता था। धीरे-धीरे यहां खोवा की दुकानें बढ़ने लगीं। वर्तमान में यह बाजार थोक खोवा मंडी के रुप में भी जाना जाता है।
सबसे अलग है यह बाजार
शिक्षा का केंद्र होने के चलते अचल बाजार को स्टेशनरी के रुप में प्रसिद्धि मिली। इसलिए यहां 100 से भी अधिक छोटी-बड़ी कॉपी-किताबों की दुकानें हैं। शहर के बीचों-बीच में दो डिग्री कॉलेज और पांच के करीब इंटर कॉलेज हैं। इससे छात्रों को स्टेशनरी की जरूरत पड़ने लगी और धीरे-धीरे यहां का बाजार बढ़ता चला गया। आजादी के बाद से तो अचल पर कॉपी-किताबों की दुकानें काफी तेजी से बढ़ी। धार्मिक पुस्तकें भी बिकती हैं।
राजाराम मित्र, समाजसेवी
अलीगढ़ की सबसे बड़ी खोवा मंडी यहीं है। चूंकि चारों ओर मंदिर है, श्रद्धालु प्रसाद चढ़ाने आते हैं। इससे धीरे-धीरे खोवा की दुकानें बढ़ने लगीं और यह थोक खोवा की मंडी के रुप में बाजार परिवर्तित हो गया। पूरे शहर के लोग यहीं खोवा लेने आते हैं। सबसे अच्छी बात है कि स्टेशनरी की दुकानें भी यहां बहुतायत में हैं, जिससे विद्यार्थियों की भीड़ लगी रहती है।
निखिल वाष्र्णेय, नौकरी