बृंदावन दास की मैनस्क्रिप्ट का तजकिस्तान में हो रहा अध्ययन Aligarh news
18वीं शताब्दी के मशहूर परसियन लेखक बृंदावन दास खुसगो की मैनस्क्रिप्ट (शायरों की बायोग्राफी) का आज तजकिस्तान के लोग भी अध्ययन कर रहे हैं।
जेएनएन [अलीगढ़] : 18वीं शताब्दी के मशहूर परसियन लेखक बृंदावन दास खुसगो की मैनस्क्रिप्ट (शायरों की बायोग्राफी) का आज तजकिस्तान के लोग भी अध्ययन कर रहे हैं। फारसी में लिखी गई मैनस्क्रिप्ट का तजकिस्तान की लेखिका प्रो. जमीरा गफ्फारोबा ने वहां की किरलिक भाषा में अनुवाद कर अपने देशवासियों को तोहफा दिया है। प्रो. जमीरा की पुस्तक 'सफीना-ए-खुसगोÓ के नाम से अनुवादित हुई। प्रो. जमीरा ने इस पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ परसियन रिसर्च की एडवाइजर प्रो. आजरमी दुख्त सफवी के साथ 2015 में काम किया। सबसे पहले परसियन भाषा में 2015 में इंस्टीट्यूट ऑफ परसियन रिसर्च ने प्रो. जमीरा की किताब 'सफीना-ए-खुसगोÓ प्रकाशित की थी। 2019 में उन्होंने किरलिक भाषा में पुस्तक का अनुवाद तजकिस्तान में कराया।
परसियन का बड़ा लेखक माना जाता है
बृंदावन दास खुसगो को परसियन का बड़ा लेखक माना जाता है। उनके जन्म के बारे में लेखकों की अलग-अलग धारणा है। कुछ मथुरा में जन्म मानते हैं तो कुछ बनारस में। मथुरा, बनारस के साथ बृंदावन दास पटना, आगरा व लाहौर (अब पाकिस्तान में) भी रहे। इंस्टीट्यूट ऑफ परसियन रिसर्च में आयोजित सेमिनार में भाग लेेने आईं प्रो. जमीरा ने दैनिक जागरण को बताया कि खुसगो ने 148 शायरों की बायोग्राफी लिखी। उसके तीन वॉल्यूम तैयार किए। इस लेखन में उन्हें दस साल लग गए। लेखन की शुरुआत 1724 में की। 1734 में काम पूरा हुआ।
ईरान से शुरू किया लेखन
प्रो. जमीरा के अनुसार बायोग्राफी लिखने की शुरुआत खुशगो ने ईरान के शायर से की थी। इसमें जमाली देहलवी, सिराजुद्दीन अली खान, मिर्जा दोरोबिक कश्मीरी प्रमुख हैं। जमाली देहलवी के बारे में ज्यादा लिखा है। देहलवी के घर पर खुसगो 17 साल रहे। इसलिए बायोग्राफी कहानी के रूप में लिखी है। इनके बारे में 50 पेज से अधिक लिखे हैैं। खुसगो ने लेखन का समापन भारतीय सरफ सिंह मुंशी की बायोग्राफी लिखकर किया था।
अमीर को समर्पित
इंस्टीट्यूट ऑफ परसियन रिसर्च के डॉ. ऐहतशामुद्दीन के अनुसार खुसगो ने बायोग्राफी को अमीर खां को समर्पित किया। अमीर उन्हें हर रोज दो रुपये वजीफा के रूप में देते थे।
पिता ने किया देहली पर शोध
प्रो. जमीरा का एएमयू से काफी लगाव है। उनके पिता अब्दुल्ला गफ्फारोबा भी एएमयू में दो साल पढ़े। यहां उन्होंने गालिब देहलवी पर रिसर्च किया। ऐसा करने वाले वह अपने देश के पहले शोधार्थी थे।