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नौकरी छोड़ पूजा से बनींं अन्‍नपूर्णा, अब जगाएंगी हिंदुत्‍व की अलख Aligarh news

डा. पूजा शकुन पांडेय से बनीं मां अन्नपूर्णा भारती अब हिंदुत्व के साथ ही धर्म की अलख जगाएंगी। वह गांव-गांव सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रसार करेंगी। गांवों में हवन-पूजन अखंड रामायण पाठ भजन-कीर्तन आदि कार्यक्रम आयोजित कराए जाएंगे जिससे नई पीढ़ी जुड़ सके।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Mon, 19 Jul 2021 03:23 PM (IST)Updated: Mon, 19 Jul 2021 04:24 PM (IST)
नौकरी छोड़ पूजा से बनींं अन्‍नपूर्णा, अब जगाएंगी हिंदुत्‍व की अलख Aligarh news
डा. पूजा शकुन पांडेय अब मां अन्नपूर्णा भारती बन गयीं/

अलीगढ़, जेएनएन । डा. पूजा शकुन पांडेय से बनीं मां अन्नपूर्णा भारती अब हिंदुत्व के साथ ही धर्म की अलख जगाएंगी। वह गांव-गांव सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रसार करेंगी। गांवों में हवन-पूजन, अखंड रामायण पाठ, भजन-कीर्तन आदि कार्यक्रम आयोजित कराए जाएंगे, जिससे नई पीढ़ी जुड़ सके।

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हिंदुत्‍व की ललकार हैं पूजा शकुन पांडेय

अखिल भारत हिंदू महासभा की राष्ट्रीय सचिव डा. पूजा शकुन पांडेय हिंदुत्व की ललकार हैं। हिंदुत्व की रक्षा के लिए उन्होंने कालेज से नौकरी छोड़ दी। महासभा ज्वाइन की। अलीगढ़ समेत पूरे पश्चिमी यूपी में हिंदुत्व की अलख जगाती रहीं। महासभा की तरफ से तमाम कार्यक्रम आयोजित किए, जिसके माध्यम से उन्होंने हिंदुत्व को जोड़ने का काम किया। इसके बाद धीरे-धीरे वैराग्य की ओर मन बढ़ता चला गया, फिर संत की परंपरा से जुड़ गईं। वर्तमान में निरंजनी अखाड़ा में महामंडलेश्वर के रुप में हैं। पूजा शकुन से अब मां अन्नपूर्णा बन गई हैं। अब वह गांव-गांव में धर्म की अलख जगाने का निर्णय लिया है। मां अन्नपूर्णा ने कहा कि हमारे यहां पहले गांव-गांव में कथा-भागवत और धार्मिक कार्यक्रम होते रहते थे, रामचरित मानस का पाठ होता था, भजन-कीर्तन होते थे, मगर अब सब बंद होते जा रहे हैं। कुछ जगहों पर होते हैं तो मार्केटिंक की शुरुआत हो गई है। सबसे अधिक गांवों में यह प्रचलन तेज हो गया है। मां अन्नपूर्णा ने कहा कि गांव हमारी संस्कृति का मूल आधार हैं, वहां आज भी परंपराओं का निर्वहन किया जाता है, इसलिए गांव की यदि मूल संस्कृति बदल गई तो हमारा धरातल खिसक जाएगा। इसलिए गांवों में धर्म की अलख जगानी हैं। गांवों में रामचरित मानस का पाठ शुरू कराया जाएगा। इससे बच्चों को भी जोड़ा जाएगा। भजन-कीर्तन आदि कार्यक्रम होंगे। गांव-गांव में आरती की परंपरा की शुरुआत की जाएगी। पहले के समय में गांवों में संध्या आरती जरूर होती है, अब वो परंपरा समाप्त होती जा रही है, उसे शुरू कराना होगा। क्योंकि इससे बच्चों के अंदर संस्कार आता था, वो धर्म के प्रति दृढ़ विश्वास से जुड़ते थे। बड़े होने पर भी मंदिरों में जाकर पूजन हवन किया करते थे।

गांव में चौपालों पर होती थी धर्म की बातें

मां अन्नपूर्णा ने कहा कि पहले गांवों की चौपालों में भी धर्म की बातें होती थीं, मगर उसे गांवों में भूलते जा रहे हैं, हमारे बड़े-बुजुर्ग खूब चर्चा किया करते थे, मगर उन्हें भी अब फुर्सत नहीं है। हम सबको उस परंपरा को फिर से शुरू करना होगा। पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है, हमारे बच्चे अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। उन्हें होटल, रेस्टोरेंट में जाना अच्छा लगता है, मगर मंदिर में जाना नहीं अच्छा लगता है। वह धूम-धड़ाका और नाच-गाने में मस्त रहते हैं, यदि यह पीढ़ी बिगड़ गई तो फिर देश को संभालना मुश्किल हो जाएगा। विदेशी ताकतें यहीं चाहती हैं, इसलिए अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वो इन बातों को समझे और अपने बच्चों को संस्कार से जुड़े। शिक्षा संस्कारित होनी चाहिए। लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद की कहानियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए, तभी देश आगे बढ़ेगा।


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