उन्नत बीज उत्पादन का हब बनेगा अलीगढ़, ये होंगे फायदे Aligarh News
उड़द चना मटर धान सरसों बाजरा और मक्का की उम्दा पौध तैयार करने में कृषि वैज्ञानिकों को सफलता मिली है।सिंचाई के लिए पानी भी कम प्रयोग होगा।
लोकेश शर्मा, अलीगढ़ । वे दिन दूर नहीं जब खेतों में कम सिंचाई की रोग रहित फसलें लहलहाएंगीं। क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र पर बीजों की कुछ ऐसी प्रजातियां तैयार की जा रही हैं जो न सिर्फ कम समय में फसलें तैयार करेंगीं, बल्कि रोग अवरोधक क्षमता भी सामान्य फसलों से कई गुना अधिक होगी। सिंचाई के लिए पानी भी कम प्रयोग होगा। इन बीजों पर अब तक हुए शोध के परिणाम सुखद रहे हैं। उड़द, चना, मटर, धान, सरसों, बाजरा और मक्का की उम्दा पौध तैयार करने में कृषि वैज्ञानिकों को सफलता मिली है।
पौध में नहीं लगे कीट
कलाई (हरदुआगंज) स्थित 50 एकड़ में फैले अनुसंधान केंद्र में विभिन्न प्रकार के बीजों पर शोध कार्य चल रहा है। उड़द की पौध तैयार हो चुकी है। कई ब्लॉकों में इसकी बुवाई की गई थी। शोध में पाया कि कुछ ब्लॉक में पौधे की पत्तियां पीली पड़ चुकी हैं, जबकि इनके दो फीट दूर लगी पौध में कोई रोग नहीं लगा। पत्तियां हरी हैं। यही स्थिति चने की तैयार पौध में देखने को मिली। आधुनिक तकनीक से तैयार की गई पौध रोग मुक्त थी, जबकि सामान्य तरीके से तैयार पौध कीटों से प्रभावित थी। चना, मटर, मसूर, मक्का, बाजरा के भी परिणाम अच्छे रहे हैं।
बिना खाद के धान
धान पर भी शोध में कृषि वैज्ञानिक सफल रहे। 31 ब्लॉक में यहां धान की रोपाई की गई थी। कुछ ब्लॉकों में बिना खाद के पौध तैयार हो चुकी है, कोई रोग भी नहीं लगा। वहीं, कम पानी में भी पौध पनप गई। इसे कृषि वैज्ञानिक उपलब्धि मान रहे हैं। उनका कहना है कि धान में सर्वाधिक पानी की जरूरत होती है, किसान उर्वरक का प्रयोग भी करते हैं। जबकि, केंद्र पर तैयार पौध में इनका उपयोग नहीं किया गया। उप्र कृषि अनुसंधान केंद्र लखनऊ व हैदराबाद केंद्र से मिले बीजों पर हुए शोध में भी सफलता मिली है।
सरसों की दो किस्में तैयार
छेरत स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में दो साल के शोध के बाद सरसों की वरुणा व आरएच-0749 प्रजाति तैयार हो चुकी है, जो किसानों के लिए उपलब्ध है। इसकी पैदावार सामान्य से अधिक 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इनसे 40 फीसद तेल निकलेगा। केंद्र के अध्यक्ष डॉ. अरविंद कुमार सिंह बताते हैं कि 20 क्विंटल बीज तैयार किया गया है।
पानी भी लगेगा कम
क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के प्रभारी डॉ.प्रमोद कुमार का कहना है कि अत्याधिक रसायन का प्रयोग, भूजल दोहन से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हो रही है। इसीलिए ऐसे किस्म के बीज तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें रसायन की जरूरत नहीं होगी, पानी भी कम लगेगा।