अलीगढ़ नुमाइश 2022 : फीका रहा जलसे का रंग, ये थी खास वजह
शहर का मशहूर सालना जलसा अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। अगर अब तक के हाल को देखा जाए तो यह साल दुकानदारों के लिए काफी दर्द भरा रहा है। पहले दुकानदारों की इच्छा जाने बिना बे-मौसम जलसे का आयोजन थोपा गया।
अलीगढ़, जागरण संवाददाता। जलसे की शुरुआत में दावा किया जा रहा था कि इस बार के सभी कार्यक्रम खास होंगे। जनता को जलसे जोड़ा जाएगा। वीवीआईपी कल्चर की व्यवस्था खत्म होगी। कम से कम खर्च में ज्यादा से ज्यादा कार्यक्रम होंगे और स्थानीय प्रतिभाओं को भरपूर मौका मिलेगा, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी अफसर कोहिनूर के आनंद तक सिमटे रहे। नुमाइश की जरूरत को न किसी ने पहचानने की कोशिश की औ न कुछ नया करने पर विचार हुआ। बड़े अफसरों ने तो दिलचस्पी ही नहीं ली। हर दिन पानी की तरह लाखों रुपये जरूर खर्च किए गए, लेकिन इस बात पर किसी मे ध्यान नहीं दिया कि शहर के लोगों को इससे कैसे जोड़ा जाए? गंगा जमुनी तहजीब की पहचान को और कैसे बढ़ाया जाए। अगर आने वाले दो तीन साल और यही हाल रहा तो जलसे के इतिहास पर ही संकट आ सकता है। केवल मनोरंजन के लिए बजट को इस तरह उड़ाना ठीक नहीं है।
आयोजकों की जेब भारी, दुकानदार रहे खाली
शहर का मशहूर सालना जलसा अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है। अगर अब तक के हाल को देखा जाए तो यह साल दुकानदारों के लिए काफी दर्द भरा रहा है। पहले दुकानदारों की इच्छा जाने बिना बे-मौसम जलसे का आयोजन थोपा गया। फिर, कोरोना की तीसरी लहर ने दस्तक दे दी। इससे पुलिस-प्रशासन ने रात 11 बजे तक दुकानों को बंद कराना शुरू कर दिया। रिम-झिम बारिश ने भी खूब काम बिगाड़ा। अब अंतिम समय में तमाम दुकानदारों के सामने किराए और अन्य खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है। वहीं, कार्यक्रम आयोजको की इस बार खूब मौज रही हैं। अफसरों ने छोटे-छोटे कार्यक्रमों पर भी आंख बंद कर नोट उड़ाए। कोहिूनर के साथ कृष्णांजलि मंच के लिए बड़े स्तर पर पैसा खर्च हुआ। जिस कार्यक्रम को ढाई लाख में कराया जा सकता था, उसके लिए पांच लाख तक दिए गए। राजनीतिक दवाब के चलते न चाहते हुए भी अफसरों को यह धनराशि देनी पड़ रही थी।
शव वाहन व एंबुलेंस में ढोया सामान
बड़े अफसर होने की फीडिंग के लिए अधीनस्थों को हड़काने वाले साहब का दो दिन पहले बिस्तर बंध गया। अधीनस्थ ही नहीं, समकक्ष अधिकारियों की भी साहब की ढेरों शिकायतें थीं। जनप्रतिनिधियों तक के भी फोन नहीं उठाते थे। एक अधीनस्थ अधिकारी परेशान हुए कि अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। ठीक होने के बाद भी दफ्तर में कदम नहीं रखा। सेवानिवृत्त होने वाले हैं, अब शायद ही लौटकर आएं। जिले के प्रथम नागरिक के पुत्र से भी साहब की एक दिन खूब तकरार हुई थी। अफसोस, साहब की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। यही नहीं, साहब के कार्यकाल में किसी कर्मचारी को समय से वेतन नहीं मिला। एक ही कार्यक्रम पर फोकस करने के फेर में सारे कार्यक्रमों का बंटाधार कर दिया। महामारी की जांच तक प्रभावित हो गई। सोमवार को साहब जिले से विदा हुए। अधीनस्थ यह देखकर हैरान रह गए, कि साहब अपना सामान शव वाहन व एंबुलेंस में ढोकर ले गए।
आरोपों से बचना होगा कड़ी चुनौती
विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। जिले में अब अगले कुछ दिन चुनाव मय होने वाले हैं। इसमें हर दल के राजनेताओं को जनता के सामने अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ेगा। जनप्रतिनिधि पांच सालों में हुए विकास कार्यों का रिपोर्ट कार्ड दिखाएंगे तो विपक्षी दल के उम्मीदवार उनकी कमियों को उजागर कर घेरने की कोशिश करेंगे। प्रशासनिक अफसरों के लिए भी इस समय में निष्पक्ष रहकर राजनीतिक दलों व नेताओं का सामना करना चुनौतीपूर्ण रहेगा। इन चुनावों में आरोप-प्रत्यारोप की बात आम है। विपक्षी सत्ता पक्ष के दवाब में प्रशासनिक मशीनरी पर काम करने का आरोप लगाते हैं तो सत्ता पक्ष वाले भी विरोधियों के इशारों पर काम करने की बात कहने से नहीं चूकते हैं। ऐसे में अफसरों के लिए इस समय में पारदर्शी बने रहना ही ठीक रहता है। कई बार चुनाव के दौरान लगे आरोप भी सरकार बनने के बाद अफसरों के लिए मुश्किल खड़ी कर देते हैं।