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डॉक्टरों की रिपोर्ट से अलीगढ़ कोर्ट भी 'बीमार',जानिए गंभीर मामले की हकीकत

जिस मेडिकल रिपोर्ट पर तल्ख टिप्पणी कर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सरकार को सुधार के आदेश दिए हैं, ऐसी ही रिपोर्ट से अलीगढ़ की अदालतें भी परेशान हैं।

By Mukesh ChaturvediEdited By: Published: Mon, 05 Nov 2018 08:55 AM (IST)Updated: Mon, 05 Nov 2018 08:55 AM (IST)
डॉक्टरों की रिपोर्ट से अलीगढ़ कोर्ट भी 'बीमार',जानिए गंभीर मामले की हकीकत
डॉक्टरों की रिपोर्ट से अलीगढ़ कोर्ट भी 'बीमार',जानिए गंभीर मामले की हकीकत

अलीगढ़ (लोकेश शर्मा)। जिस मेडिकल रिपोर्ट पर तल्ख टिप्पणी कर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सरकार को सुधार के आदेश दिए हैं, ऐसी ही रिपोर्ट से अलीगढ़ की अदालतें भी परेशान हैं। डॉक्टरों की अस्पष्ट लिखावट अदालती कार्रवाई में अड़चन बन रही है। मुसीबत यह कि जब मुकदमा गवाही के मोड़ पर आता है तो डॉक्टर को तलाशने में ही साल-दो साल निकल जाते हैं और सुनवाई को लंबी खिंच जाती है। लंबित मुकदमों को जल्द निपटाने के लिए यहां दिसंबर 2016 में हुई निगरानी समिति की बैठक में यह मुद्दा काफी गरमाया था। इसके लिए जिला प्रशासन को स्पष्ट आदेश दिए गए थे। यह भी कहा कि भविष्य में मेडिकल या पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डॉक्टर अपने नाम की मुहर भी लगाएं। मगर, समस्या जस के तस बनी रही। अब हाईकोर्ट ने इसका संज्ञान लिया है। शायद, शासन-प्रशासन पर अब कोई फर्क पड़े।

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महत्वपूर्ण है मेडिको लीगल रिपोर्ट

मुकदमों के निस्तारण में मेडिको लीगल रिपोर्ट महत्वपूर्ण होती है। अपराधिक मामलों में डॉक्टरों की इसी रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट आरोप तय करती है और संबंधित धाराओं में फैसले सुनाए जाते हैं। अस्पष्ट रिपोर्ट को न कोर्ट पढ़ पाती और न ही वकील ही समझा पाते। डॉक्टर की मदद से रिपोर्ट समझी जाती है। यही नहीं, मेडिकल-पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर डॉक्टरों अस्पष्ट हस्ताक्षर से भी सुनवाई लंबी खिंच जाती है। हस्ताक्षर देखकर पता नहीं चलता, किसके हैं। ऐसे उस डॉक्टर को तलाशने में लंबा समय बीत जाता है।

हाईकोर्ट के आदेश

डॉक्टरों की खराब लिखावट पर हाईकोर्ट बेंच ने प्रमुख सचिव गृह, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाओं के प्रमुख सचिव व डीजी को कंप्यूटराइज्ड मेडिको लीगल रिपोर्ट उपलब्ध कराने के आदेश दिए हैं। इसके लिए रिपोर्ट की टाइपिंग के लिए अस्पतालों मेंं कंप्यूटर व प्रिंटर उपलब्ध कराने को कहा है। ये आदेश कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के बाद दिए। साथ ही यह भी कहा कि रिपोर्ट पढऩे के लिए डॉक्टरों को बुलाना उचित नहीं है, इससे मरीजों का इलाज बाधित होता है। तीन माह में कंप्यूटर, प्रिंटर उपलब्ध कराने के निर्देश हैं।

लंबी खिंच जाती है सुनवाई

जिला शासकीय अधिवक्ता धीरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि यह बात सही है कि मेडिको लीगल रिपोर्ट पढऩे में दिक्कत आ रही है, डॉक्टरों की लिखावट ही ऐसी होती है कि रिपोर्ट पढऩे और समझने में समय लगता है। इससे सुनवाई लंबी खिंच जाती है। लखनऊ बेंच ने उचित आदेश दिए हैं। पहले भी ये मुद्दा उठ चुका है।

रिपोर्ट स्पष्ट होना जरूरी

सीएमओ डॉ. एमएल अग्रवाल का कहना है कि इस संबंध में हमने चिकित्सकों से कह रखा है कि जो भी रिपोर्ट व दवाएं लिखी जाएं, वे स्पष्ट हों। जिसे पढऩे में दिक्कत न आए।


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